Why Society Still Holds Different Standards for Men and Women: जब बात समाज में पुरुषों और महिलाओं के प्रति रवैये की आती है तो यह कभी भी एक जैसा नहीं होता है। समाज में जिन बातों के लिए पुरुषों को अनुमति मिली होती है, वही बातों के लिए औरतों को मना किया जाता है। ऐसा बोला जाता है कि महिलाएं कभी भी पुरुषों की बराबरी नहीं कर सकती है। ऐसी सोच में कभी भी महिलाओं को आगे नहीं बढ़ने दिया जाता। महिलाओं को हमेशा ही कम महसूस कराया गया है। बहुत समय तक महिलाओं को इस बात का एहसास ही नहीं हुआ कि उनमें कितनी पोटेंशियल है या फिर वे कितनी इंटेलिजेंट हैं। उन्हें हमेशा ही लाचार बनाया गया है जो हमेशा दूसरों पर निर्भर रहती हैं। चलिए आज बात करते हैं कि क्यों समाज में अभी भी पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग रवैया है।
क्यों आज भी समाज में पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग विचार हैं
इसका सबसे बड़ा कारण पितृसत्तात्मक समाज है जहां पर महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार नहीं दिए जाते हैं। ऐसे में पुरुषों के पास ज्यादा पावर होती है। महिलाओं को यह महसूस कराया जाता है कि वह पुरुषों का मुकाबला नहीं कर सकती। उन्हें हमेशा ही पुरुषों के सामने झुककर रहना सिखाया जाता है और कभी भी उनका विरोध नहीं करने दिया जाता चाहे वे उनके साथ कितना गलत भी कर रहे हैं। दूसरा कारण यह भी है कि हमारे समाज में जेंडर रोल का प्रभाव अभी भी है। पुरुषों और महिलाओं से अपेक्षाएं अलग होती हैं जैसे घर का काम, बच्चे संभालना और दूसरों की देखभाल करना हमेशा औरतों के जिम्मेदारी में आता है। पुरुषों से अपेक्षा की जाती है कि वो कमाई करें और पूरे घर को आर्थिक रूप से सपोर्ट करें। इन जेंडर रोल के कारण भी महिलाओं और पुरुषों के बीच में भेदभाव किया जाता है।
महिलाओं को पुरुषों की सच में जरूरत?
हमारे समाज में एक महिला को तब तक इज्जत नहीं मिलती है जब तक उसकी शादी नहीं हो जाती है। ऐसी महिलाओं को बिल्कुल भी सम्मान नहीं दिया जाता है जो शादी नहीं करती है। ऐसा बोला जाता है कि एक महिला तभी संपूर्ण होती है जब उसके साथ उसका पति होता है और अकेले महिला को समाज में कभी भी जगह नहीं दी जाती है। आप चाहे सिंगल वूमेन देख लीजिए या फिर सिंगल मदर, उन्हें बहुत ज्यादा स्ट्रगल करना पड़ता है।
वहीं पर एक पुरुष को कभी नहीं बोला जाता है कि तुम्हें इसलिए शादी करनी चाहिए क्योंकि तुम अधूरे हो। पुरुष को हमेशा ही यह बताया जाता है कि तुम्हें किसी की जरूरत नहीं है। तुम अकेले ही काफी हो। इस सोच के कारण उनके ऊपर इमोशनल बोझ बहुत हद तक बढ़ जाता है और उन्हें अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का मौका ही नहीं मिलता है। ऐसा नहीं है कि ऐसी सोच का बोझ का असर सिर्फ महिलाओं के ऊपर पड़ता है बल्कि पुरुष भी इससे प्रभावित होते हैं। उन्हें भी बहुत सारी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जैसे घर की जिम्मेदारी अकेले उन पर आ जाती है। उन्हें लगता है कि वह अगर किसी के सामने रोने लग जाएंगे तो उन्हें कमजोर समझा जाएगा। इसलिए हमें ऐसे व्यवहार को खत्म करना होगा और पुरुषों और महिलाओं के साथ एक तरह का व्यवहार करना शुरू होगा क्योंकि हम सभी को प्यार और रिस्पेक्ट की जरूरत होती है। इसके साथ ही कोई भी व्यक्ति किसी से कम नहीं होता है। हर किसी की काबिलियत अलग होती है और हम उनकी तुलना एक-दूसरे से नहीं कर सकते हैं।