कामकाजी महिलाओं को क्यों सुननी पड़ती हैं ये 5 बातें?

कामकाजी महिलाओं को अक्सर घर, परिवार और करियर को लेकर ताने सुनने पड़ते हैं। जानिए समाज की वे बातें जो हर वर्किंग वुमन को सुननी पड़ती हैं और क्यों यह मानसिकता बदलने की जरूरत है।

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Vaishali Garg
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Photograph: (wforwoman)

भारत में महिलाओं के लिए काम करना जितना मुश्किल नहीं है, उससे कहीं ज्यादा मुश्किल है लोगों की बातें सुनना। जब कोई महिला घर से बाहर निकलकर करियर बनाना चाहती है, तो समाज की नजरों में यह एक ‘चुनौतीपूर्ण निर्णय’ बन जाता है। लोगों को उसकी तरक्की से ज्यादा उसके घर, कपड़ों, वक्त और परिवार की चिंता रहती है। एक कामकाजी महिला के लिए दफ्तर और घर दोनों ही मैनेज करना कोई आसान काम नहीं होता, लेकिन फिर भी उसे लगातार सवालों और तानों का सामना करना पड़ता है।

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कामकाजी महिलाओं को क्यों सुननी पड़ती हैं ये 5 बातें

“घर संभालना भी तो तुम्हारी ज़िम्मेदारी है”

कामकाजी महिलाओं के लिए सबसे बड़ा सवाल यही होता है कि वे घर और दफ्तर दोनों को कैसे मैनेज करेंगी। अक्सर उनसे यह उम्मीद की जाती है कि वे दफ्तर में चाहे जितनी मेहनत कर लें, लेकिन घर की ज़िम्मेदारियाँ तो उनकी ही रहेंगी। यह सवाल पुरुषों से कभी नहीं पूछा जाता, क्योंकि समाज में अब भी यही धारणा बनी हुई है कि घर का काम सिर्फ महिलाओं का होता है।

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“बच्चों का ध्यान कौन रखेगा?”

अगर कोई महिला शादीशुदा है और उसके बच्चे हैं, तो यह सवाल उसके कानों में बार-बार गूंजता है। लोग मानते हैं कि बच्चों की परवरिश सिर्फ माँ की ज़िम्मेदारी होती है। एक कामकाजी पिता से कभी कोई यह नहीं पूछता कि वह अपने बच्चों के लिए कितना वक्त निकाल पाता है, लेकिन एक माँ से यह सवाल हर वक्त किया जाता है। और अगर उसने डे केयर या घर के किसी अन्य सदस्य के सहारे अपने बच्चों की देखभाल का इंतज़ाम कर लिया, तब भी उसे ‘लापरवाह माँ’ का टैग मिल ही जाता है।

“तुम्हें पैसों की ज़रूरत ही क्या है?”

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कई बार लोग यह मानकर चलते हैं कि महिलाओं के काम करने की वजह सिर्फ आर्थिक मजबूरी होती है। अगर किसी महिला का पति अच्छी कमाई कर रहा है या उसका परिवार आर्थिक रूप से स्थिर है, तो लोग यह सवाल उठाने लगते हैं कि उसे काम करने की क्या ज़रूरत है। यह सोच इस बात को नज़रअंदाज कर देती है कि एक महिला सिर्फ पैसों के लिए नहीं, बल्कि अपनी पहचान, आत्मनिर्भरता और आत्मसम्मान के लिए भी काम कर सकती है।

“इतनी देर तक बाहर रहना ठीक नहीं”

अगर कोई महिला देर तक काम करती है, ऑफिस की मीटिंग्स में शामिल होती है या अपने करियर को गंभीरता से लेती है, तो यह सवाल उठना तय है। देर तक बाहर रहने पर उसे समाज से ‘अच्छी लड़की’ न होने का तमगा मिल जाता है। घर से बाहर रहकर करियर बनाने वाले पुरुषों को यह सुनने की ज़रूरत नहीं पड़ती, लेकिन महिलाओं से यह उम्मीद की जाती है कि वे वक्त पर घर लौटें और बाकी जिम्मेदारियों को निभाने में कोई कमी न छोड़ें।

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“तुम्हारे पति/परिवार को दिक्कत नहीं होती?”

अगर कोई महिला शादीशुदा है और नौकरी कर रही है, तो यह सवाल तो जैसे उसकी ज़िंदगी का हिस्सा बन जाता है। लोग यह मानकर चलते हैं कि शादी के बाद महिलाओं को सिर्फ अपने पति और परिवार की खुशी के बारे में सोचना चाहिए। अगर उसका परिवार ‘उदार’ है और उसे काम करने की इजाजत दे रहा है, तो लोग उसे खुशकिस्मत कहते हैं, जैसे कि नौकरी करना उसका हक नहीं, बल्कि किसी की दी हुई ‘इजाजत’ हो।

क्या कामकाजी महिलाओं को हमेशा सफाई देते रहना पड़ेगा?

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समाज की यह सोच कि महिलाओं की प्राथमिकता सिर्फ घर और परिवार होनी चाहिए, अब भी नहीं बदली है। यही वजह है कि कामकाजी महिलाओं को हर कदम पर सवालों और तानों का सामना करना पड़ता है। उन्हें हमेशा साबित करना पड़ता है कि वे घर और दफ्तर दोनों संभाल सकती हैं, कि वे ‘अच्छी माँ’ और ‘अच्छी पत्नी’ भी हैं और ‘अच्छी प्रोफेशनल’ भी। लेकिन सवाल यह है कि क्या उन्हें हमेशा सफाई देते रहना पड़ेगा?

कामकाजी महिलाओं को यह तय करना होगा कि वे समाज की बातों से कितनी प्रभावित होती हैं। अगर पुरुष बिना किसी सफाई के अपने करियर पर ध्यान दे सकते हैं, तो महिलाओं को भी यह हक मिलना चाहिए। ज़रूरत इस बात की है कि महिलाएं खुद के फैसले खुद लें, बिना इस डर के कि समाज क्या कहेगा।