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Teens & Emotions
Teens & Emotions: माँ-बाप और बच्चों के बीच सबसे बड़ा गैप जेनरेशन का होता है । माँ- अपने तरीक़ों के हिसाब से आज के समय में बच्चों को पालना चाहता है जो ग़लत है इससे बच्चों और पेरेंटस के बीच में दूरियाँ आने लगती है। एक बच्चे की सबसे नाज़ुक उम्र टीनेजर में होती है जिसमें वह बचपन से निकल रहा होती है लेकिन अभी वह पूरा जवान भी नहीं होता है।
ऐसे समय में बच्चे के शरीर में शारीरिक और मानसिक बदलाव बहुत हिस्सा के रहे होते है। जिसके कारण वह बहुत सी भावनाओं से गुजरता है कई बार उसे माँ-बाप भी नहीं समझ पाते थे जिसके कारण बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। चलिए जानते है इस ब्लॉग में बच्चों की इमोशनल सपोर्ट कैसे कर सकते है-
Teens & Emotions: कैसे माँ बाप करें teens के emotion के साथ डील
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उनको ध्यान से सुने
आप बच्चे को ध्यान से सुने । उसके पास बैठें देखें वह क्या कह रहा है? उसकी बातों में आप रुचि दिखाए। इससे उनको इस बात की तसल्ली हो गई उनके माँ-बाप उन्हें सुनते है। वह अगली बार जब भी किसी समस्या में होगे आपसे बात ज़रूर करेंगे। -
मजूद रहे
जब भी बच्चों को आपकी ज़रूरत हो आप वहाँ पर मजूद होने की कोशिश करें। हर बार तो नहीं लेकिन ज़्यादातर आप उनके पास हो। इसके अलावा वैसे भी रोज़ कुछ समय बच्चों के साथ बिताए इससे आपके साथ वे सहज होंगे। -
नज़रअन्दाज़ ना करें
कई बार माँ-बाप बच्चों की बातों की नज़रअन्दाज़ कर देते है। बच्चे उन्हें कुछ समस्या बताते लेकिन वे उस पर ध्यान ही नहीं देते है । जिसके कारण कई बार अंदर ही अंदर एक लड़ाई लड़ता रहता है और कई बार वह आत्महत्या तक पहुँच जाता है। -
प्रेशर मत डाले
माँ-बाप बच्चों पर प्रेशर भी डालने लग जाते है जिससे उनकी मानसिक सेहत पर प्रभाव पड़ता है। माँ-बाप बच्चों के ऊपर पढ़ाई का या करियर का इतना प्रेशर डाल देते है जिससे उसकी मानसिक हालत पर प्रभाव पड़ने लगता है। इसलिए बच्चों पर प्रेशर मत डाले। -
प्यार करें
कई बार परेंट्स बच्चों को प्यार नहीं जताते है उन्हें लगता है अगर इनके साथ स्ट्रिक्ट नहीं हुए तो हाथ से निकल जाएँगे लेकिन यह ग़लत है। उनके साथ बैठकर समय व्यतीत करें और प्यारी बातें करें। कभी उनके साथ मूवी देखने निकल जाए। कभी वॉक पर, लोंग ड्राइव पर।ऐसे बच्चे भावनात्मक तौर पर ज़्यादा सेहतमंद होते है। -
संतुलन रखें
बच्चों के साथ बिल्कुल संतुलत रहे। इसे यह मतलब है कि यहाँ पर ग़लत हाँ उन्हें तरीक़े से समझाएँ और यहाँ पर बच्चा ठीक है वहाँ आप उसे सुने भी। इसके साथ वख्त उसे लेक्चर भी मत दे। कभी-कभी उसकी भी सुन ले।