पेरेंटिंग इतनी सिम्पल नहीं है जितनी हमें दिखती हैं । इसमें बच्चे पालने से लेकर उसको बढ़ा करना और वे सहीं ग़लत की पहचान कर सकें। ट्रेडिशनल सोच के हिसाब से पेरेंटिंग बच्चें के जन्म से लेकर उसको पालने, बढ़ा करना यह सभी ज़िम्मेदारियाँ एक औरत की है। आज हम बात करेंगे बच्चा पालने की ज़िम्मेदारी सिर्फ़ माँ की है?
पेरेंटिंग में सभी ज़िम्मेदारियाँ माँ की क्यों?
पेरेंटिंग में माँ और बाप दोनों इन्वोल्व होतें है लेकिन सिर्फ़ माँ को ही छोटे होते बच्चें को पालना पड़ता है। उसे ही उसकी हर चीज़ का ध्यान रखना पड़ता हैं चाहे वे उसकी पढ़ाई हो, बच्चे के लिए खाना बनाना हो। घर में बच्चें को कौन सी चीज़ चाहिए और कौन सी नहीं इन सब बातों का ध्यान उसे ही रखना पड़ता है।
माँ को छोड़नी पड़ती है जॉब
जब एक लड़की गर्भवती होती है तब से ही उसे सब जॉब छोड़ने के लिए कहा जाता है। जब बच्चा हो जाता है समाज सिर्फ़ लड़की को ही कहता है कि वह नौकरी छोड़कर घर पर बैठ जाए और बच्चा सम्भाले।सब महिला को ही जॉब छोड़ने के लिए कहने लग जाते है।यह हमारे समाज का औरतों के लिए दोगलापन है।आज भी यही सोचा जाता है कि बच्चे पालना सिर्फ़ औरत की ही ज़िम्मेदारी है।
बच्चा ग़लत काम करें दोष माँ पर ही क्यों?
अक्सर ही यह कह दिया जाता है कि जब बच्चा कोई ग़लत करे कि तुम्हारी माँ ने कुछ सिखाया नहीं है। समाज बहुत जल्दी ही माँ पर इल्ज़ाम लगा देता है।जबकि पेरेंटिंग में माता और पिता दोनों होते है फिर भी जब बच्चें की बुरी बातें और परवरिश की आती है सवाल माँ पर ही आता है।
पिता का फ़र्ज़ सिर्फ़ पैसे की सहायता करना?
हमारे समाज में पेरेंटिंग में पिता का फ़र्ज़ सिर्फ़ बच्चें को पैसे की सहायता हैं। बाक़ी बच्चे के प्रति जितने भी फ़र्ज़ वे सभी माँ के हैं। यह समाज का एक बहुत बढ़ा दोगलापन है। हमेशा औरत को हर चीज़ के लिए ब्लेम किया जाता है ।माना कि बच्चे को जन्म को माँ देती है लेकिन वे अकेला माँ का नहीं है। पिता का भी यह फ़र्ज़ बनता है वे भी बच्चे की परवरिश पर ध्यान ना दे। जितना वक़्त माँ बच्चे को देती हैं। उतना वक़्त पिता को भी बच्चे को देना चाहिए।