पाँच ऐसी चीजें जो पेरेंट्स को अपने बच्चों से कहनी चाहिए

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Swati Bundela
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भारतीय समाज में मां-बाप और उनके बच्चों के बीच फांसला रहता ही ही। वे बच्चो के साथ ज्यादा खुलते नहीं है। उन्हें लगता है अगर हम थोड़ा भी इनको खुला छोड़ेंगे तो ये बिगड़ जाए। इसलिए वे बच्चो के साथ बैठते नहीं ही उनके साथ खुलकर बात नहीं करते।उनसे उनकी परेशानियां नहीं पूछते जिस कारण बच्चे उनसे बात नहीं कर पाते और वे अंदर ही अपनी बातों को दबाते रहते है और कई बार बच्चे डिप्रेशन में चले जाते है।आज हम बात करने वाले है ऐसी बातों की जो बढ़ते बच्चों के साथ मां-बाप को करनी चाहिए-

1.गलती करने से मत डरो-

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हमारे समाज में बच्चो को गलती करने से रोका जाता है। उन पर परफेक्ट बनने का जोर डाला जाता है। उन्हें गलती करने पर सुनाया जाता है। गलती ना हो जाए इस डर से वे कुछ करते नहीं है क्योंकि गलती ना करने का उन पर प्रेशर डाला जाता हैं।इसकी जगह उन्हें कहना चाहिए गलती करने से हमें कभी नहीं डरना चाहिए क्योंकि इंसान गलतियों से ही सीखता है। गलती करने पर उसे डांटना नहीं उसे आगे बढ़ने का साहस देना चाहिए।

2.मेंटल हेल्थ भी जरूरी है-

हमारे देश में आज मानसिक स्वास्थ को ज़्यादा तरजीह नहीं दी जाती है लेकिन इसका स्वास्थ्य होना हमारे लिए बहुत ज़रूरी है।माँ-बाप बच्चों पर कई बार पढ़ाई का प्रेशर डाल देते है जिससे उनकी मानसिक स्वास्थ्य ख़राब होने लगता है। जिसके कारण बच्चे कम ही उम्र में डिप्रेशन और स्ट्रेस आदि चीजों से गुजरते है।माँ-बाप को बच्चों की पढ़ाई से ज़्यादा मानसिक स्वास्थ पर ज़ोर देना चाहिए उन्हें कहना चाहिए बच्चे पढ़ाई से पहले मेंटल हेल्थ को सही रखना ज़रूरी है।

3.आप जैसे हो वैसे पर्फ़ेक्ट हो-

हमारे अंदर शुरू से यह भेदभाव वाली चीजें डाली जाती है जैसे तुम ज़्यादा सुंदर हो, तुम्हारा रंग साफ़ है, तुम्हारा काला है, यह तुम्हारे बाल कैसे है? तुम अपने फ़ेस पर कुछ लगाया करो कितना ख़राब है। ऐसी चीजों से हमारे अंदर भरा जाता है कि तुम जैसे हो वैसे ठीक नहीं हो लेकिन इसके जगह हमें कहना हम सब अपने-अपने तरीक़े से सुंदर है। बात है कि हम अपने आप को स्वीकार  नहीं करते।

4.तुम्हारा जेंडर नहीं तुम्हारी पसंद तुम्हें डिफ़ाइन करती है-

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आज भी बहुत से घरों में ट्रेडिशनल सोच के हिसाब से लड़का-लड़की को उनके जेंडर के हिसाब से काम दिए जाते है। उन्हें पढ़ाई भी ऐसे ढंग से करायी जाती है लेकिन किसी का जेंडर नहीं डिफ़ाइन करता है है कि वह क्या है या क्या कर सकता है।

5.समाज की चिंता मत करो- 

हमारे दिमाग़ पर बचपन से ही समाज का दबाव बना होता है जिस कारण हम कई बार इस समाज के प्रेशर और डर के कारण जो हम चाहते है वे कर नहीं पाते है।हमारे माँ-बाप भी हमें इस प्रेशर को झेलने में मदद करते है।पेरेंट्स को चाहिए कि वे बच्चों को कहे तुम्हें जो अच्छा लगता है करो समाज की चिंता मत करो।

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