Single Mothers: भारतीय समाज में एकल माताओं को अक्सर इस वजह से आंका जाता है क्योंकि वे पारंपरिक परिवार की आदर्श छवि को चुनौती देती हैं, जहाँ मां-बाप दोनों बच्चों के पालन-पोषण में होते हैं। साथ ही, महिलाओं की मातृत्व की भूमिका को लेकर सदियों पुराने रूढ़ीवादी विचार भी इसमें बाधा डालते हैं, जहां सिर्फ मां को ही देखभालकर्ता माना जाता है। तलाक़ का कलंक, आर्थिक स्थिति को लेकर शंका और बच्चों की परवरिश को लेकर अनावश्यक चिंताएं भी समाज में उनके लिए चुनौतियां खड़ी करती हैं।
आइए देखें 6 प्रमुख कारणों को
1. परिवार की आदर्श छवि
हमारे समाज में आदर्श रूप से एक परिवार में पति, पत्नी और बच्चे होते हैं। यह माना जाता है कि माता-पिता दोनों बच्चों के पालन-पोषण के लिए ज़रूरी होते हैं। एकल माता इस आदर्श से अलग होती है, जिससे कुछ लोगों को लगता है कि उनका परिवार अधूरा है।
2. माँ के रूप में महिला की भूमिका को लेकर रूढ़ धारणाएँ
समाज में यह धारणा मजबूत है कि माँ ही बच्चे की प्राथमिक देखभाल करने वाली होती है। पिता को कमाने वाला और अनुशासन देने वाला माना जाता है। एकल माता को दोनों भूमिकाएँ निभानी पड़ती हैं, जो कई लोगों के लिए परंपरागत सोच के विरुद्ध जाता है।
3. विवाह के टूटने का दोषारोपण
तलाक या पति के खोने पर अक्सर समाज महिला को ही ज़िम्मेदार ठहराता है। यह सोच एकल माता के लिए कलंक का कारण बन जाती है। भले ही वास्तविकता कुछ भी हो, एकल माता को ही परिवार टूटने का बोझ ढोना पड़ता है।
4. आर्थिक स्वतंत्रता को लेकर संदेह
एकल माता अकेली कमाने वाली होती है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति को लेकर संदेह पैदा होता है। यह सोच खासकर तब मजबूत होती है, जब उन्हें सरकारी सहायता लेनी पड़े। उन्हें अक्सर गैर-ज़िम्मेदार या आलसी समझ लिया जाता है।
5. बच्चों की परवरिश को लेकर चिंताएँ
कई लोगों को लगता है कि एकल माँ बच्चे को उचित परवरिश नहीं दे पाएंगी। उन्हें यह चिंता सताती है कि बच्चे बिगड़ जाएंगे या गलत रास्ते पर चले जाएंगे। साथ ही, यह भी माना जाता है कि एकल माँ बच्चे को पिता का प्यार नहीं दे पाएंगी।
6. पुरुषों की कमी को लेकर भ्रांतियाँ
कुछ लोगों को लगता है कि एकल माता पुरुष साथी की कमी महसूस करेंगी और गलत रास्ते पर जा सकती हैं। यह सोच एकल माताओं के चरित्र पर हमला है और उनके अकेले रहने के फैसले को गलत साबित करने की कोशिश है।