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The Growing Impact Of Menstrual Education In Rural India: मासिक धर्म यानी पीरियड्स हर महिला के जीवन का यह एक सामान्य और प्राकृतिक हिस्सा होता है, लेकिन भारत के कई ऐसे ग्रामीण इलाके हैं जहां आज भी इसे शर्म से जुड़ा विषय माना जाता है। लोगों में पीरियड्स को लेकर जानकारी की कमी, सामाजिक सोच और मिथक अक्सर किशोरियों को भ्रम और असहजता की स्थिति में डाल देते हैं। हालांकि, वैसे तो पिछले कुछ वर्षों में सरकार, एनजीओ और जागरूकता के कई अभियानों के जरिए ग्रामीण भारत में पीरियड्स की शिक्षा को लेकर सकारात्मक बदलाव देखने को मिल रहा है।
ग्रामीण भारत में मासिक धर्म की शिक्षा का बढ़ता प्रभाव
1. सामाजिक बदलाव होना
पहले जहां पीरियड्स पर खुलकर बात करना भी वर्जित होता था, वहीं अब स्कूलों और समुदायों में इस पर चर्चा शुरू हो रही है। आज के समय लड़कियां अब संकोच की बजाय अपने शरीर और उसकी प्रक्रियाओं को समझने और उसके बारे में जानने लगी हैं।
2. शिक्षा संस्थानों में जागरूकता लाकर
आज के समय कई सरकारी और निजी स्कूलों में हेल्थ एजुकेशन का हिस्सा बनकर पीरियड्स से जुड़ी जानकारी दी जा रही है। टीचर्स भी अब खुलकर छात्राओं को सैनिटरी नैपकिन के इस्तेमाल, स्वच्छता और मानसिक स्थिति से जुड़ी अहम जानकारी देने लगी हैं।
3. अब सैनिटरी नैपकिन की पहुंच बढ़ गई है
सरकार की कई योजनाओं में से एक पीरियड्स से जुड़ी है इसके अंतर्गत जैसे “फ्री सैनिटरी पैड वितरण” ने ग्रामीण लड़कियों को बेहतर पीरियड हाइजीन की सुविधा दी है। साथ ही, स्थानीय महिलाएं खुद सेनेटरी पैड बनाने के काम से जुड़कर अपने आप को आर्थिक रूप से सशक्त बना रही हैं।
4. एनजीओ और स्वयंसेवी संस्थाओं की भूमिका से
पीरियड्स से जुड़ी कई एनजीओ हैं जैसे 'Goonj', 'Menstrupedia' और 'SHE' इन संगठनों ने गांवों में जाकर मासिक धर्म पर वर्कशॉप्स और सेशन्स के ज़रिए किशोरियों को न केवल जागरूक किया, बल्कि उनके अंदर आत्मविश्वास को भी बढ़ाया है।
5. पीरियड्स को लेकर मिथकों को तोड़कर
पहले के समय समाज में ऐसे विचार थे जो कि मासिक धर्म को अशुद्ध मानते थे। लेकिन अब इस सोच में बदलाव आ रहा है। अब गांवों की लड़कियां मंदिर, किचन या स्कूल से अलग-थलग नहीं रखी जातीं, बल्कि उन्हें उनके अधिकार और स्वास्थ्य की अहमियत समझाई जा रही है।