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आजकल के जमाने में जहां सारे बच्चे, चाहे वे पुरुष हो या महिला पढ़ाई से लेकर जॉब तक सारे काम के लिए बाहर जाते हैं, लेकिन वहीं आज भी कुछ पेरेंट्स अपनी यंग लड़कियों या लड़कियां जो अभी पढ़ने या जॉब की उम्र में हैं उनको सामाजिक चिंता या समाज में फैले डर के कारण बाहर शहर से नहीं जाते देते हैं। कई बार तो यह स्थिति इतनी गंभीर होती हैं कि उन्हें घर से बाहर नहीं देने दिया जाता यह उन पर मानसिक दबाब और एक सामाजिक अलगाव भी पैदा करता हैं जिससे खुद को हीन और घुटता हुआ महसूस करना आम हैं, लेकिन क्यों उन्हें इस सोच का सामना करना पड़ता हैं ?और उनके मानसिक स्वास्थ्य पर कितना गहरा असर पड़ता हैं जब उन्हें घर से बाहर अपनी जिंदगी जीने का मौका नहीं दिया जाता हैं?
Locked In, Stressed Out: जब लड़कियों को बाहर जाने से रोका जाता हैं
पेरेंट्स क्यों हैं इतने चिंतित ?
सवाल यह है कि पेरेंट्स लड़कियों के बाहर जाने से इतने परेशान क्यों रहते हैं? खतरा तो लड़के और लड़की दोनों के लिए समान है, फिर रोक-टोक सिर्फ लड़कियों पर ही क्यों? इसका कारण हमारी सामाजिक संरचना में छिपा है, जहाँ समाज लड़कियों को सदैव घर की चारदीवारी में सीमित रहने और घरेलू कामों में हाथ बँटाने को ही उनके जीवन का उद्देश्य समझता है।
जब महिलाओं को शिक्षा और काम करने की आज़ादी मिली, तो इस पारंपरिक सोच को चुनौती मिली जिसे आज भी बहुत से लोग स्वीकार नहीं कर पाते। यही कारण है कि वे बंदिशों के ज़रिए अपनी बात मनवाना चाहते हैं और यह भूल जाते हैं कि लड़की भी स्वतंत्र रूप से जीने का समान अधिकार रखती है।
यह स्थिति जेंडर डिस्क्रिमिनेशन (लैंगिक भेदभाव) को दर्शाती है, जो बताती है कि समाज आज भी महिलाओं को घर में ही “सुरक्षित” मानता है और उनके जीवन के महत्वपूर्ण अधिकारों को उनका हक नहीं समझता।
आजादी न मिलना क्यों पैदा करता हैं मानसिक तनाव ?
घुटन और अपनी आजादी का प्रश्न
अक्सर जब शुरुआत से उसी ढर्रे की आजादी सबको मिलती हैं तो हम उसी आजादी के आदी हो जाते हैं लेकिन जब आसपास अलग माहौल हो और वह एक व्यक्ति को न मिले तो वह घुटन और तनाव महसूस करता हैं। वैसे तो यह सीखा हुआ व्यवहार हैं कि पर्मिशन मिलने पर ही उस काम को किया जाएगा और न मिले तो घुटन को चारों तरफ का जाल बना लिया जाएगा, ऐसे में घुटन के चलते दिमाग नए तरीके और सुझाव नहीं ढूढ़ पाता हैं। और साथ ही इससे disturbs mental peace भी होती हैं।
अधूरी इच्छा और सपनें
जब एक ही परिवार में भाई के साथ अलग ट्रीट्मेंट हो और महिला होने के नाते आपसे अलग तो कई तरह के मन मे सवाल लेकर आता हैं, कई बार ये दबाब और अलग भेदभाव(Gender Discrimination) इतने गहरे होते हैं कि यह अंदर से कचोटने लगते हैं, और सवाल आता हैं मेरे सपने और इच्छाओं का क्या ? लेकिन यह भेदभाव सिर्फ शारीरिक आजादी का नहीं मानसिक जंजाल भी बन जाता हैं।
पहचान पर सवाल
जब महिला होने के नाते उसे सपने पूरे करने की आजादी नहीं मिलती तो उसे अपनी पहचान पर सवाल दिखने लगते हैं। और यह सवाल कई बार बहुत गहरे और आहत पहुँचाने वाले होते हैं। खासतौर पर जब इच्छा का जीवन न मिले तो इससे तनाव और ऐंगज़ाइइटी होना सामान्य बन जाता हैं लेकिन यह सवाल बड़े मानसिक रोगों में भी तबदील हो जाते हैं।
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