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भारत में National Crime Records Bureau के अनुसार लगभग 20.5% महिलाएं अपने पार्टनर के द्वारा शारीरिक और मानसिक हिंसा का शिकार हुई हैं, और यह हिंसा उनमें anxiety, डिप्रेशन और post-traumatic stress disorder जैसे Mental Health Issue पैदा करता हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और NIMHANS के अनुसार भारत में जब महिला मानसिक रूप से बीमार होती हैं तो उसे परिवार द्वारा त्याग दिया जाता हैं, खासकर जब उनका व्यवहार परिवार के लिए "अशुभ" या "आसमान्य" हो। यहाँ तक कि भारतीय कानून में शादी जैसी संस्था में पत्नी के अधिक मानसिक रूप से बीमार होने पर पति तलाक के लिए कानून से अपील कर सकता हैं। यह चिंता का सवाल हैं, कि क्या मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति बेहतर देखभाल और गरिमामय जीवन का अधिकार नहीं रखता?
Mental Health Law: मानसिक रोग से पीड़ित महिलाओं के लिए कानूनी सुरक्षा
भारत में मानसिक रोग से पीड़ित महिलाओं को कानूनी सुरक्षा मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम 2017, भारतीय न्याय संहिता की विशेष धाराओं, और मौलिक अधिकारों के माध्यम से दी जाती हैं। आइए, जानते हैं, इन प्रावधानों को :
1. मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017
यह अधिनियम मानसिक रोगियों को स्वतंत्रता, गरिमा और गैर भेदभाव के साथ उपचार का अधिकार देता हैं। इसके अंतर्गत धारा 18 हर व्यक्ति तक मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँचने का अधिकार देती हैं। वहीं इसकी धारा 19 रोगी को नजदीकी स्थान पर इलाज पाने का अधिकार भी रखती हैं। इसके साथ ही धारा 20 यह सुनश्चित करती हैं कि रोगी की consent और पहले से सूचना दिए बिना उपचार नहीं किया जा सकता हैं, सिवाय आपात स्थिति के अर्थात जब तक समस्या गंभीर न हो।
2. भारतीय न्याय संहिता (पूर्व IPC) की धारा 328
यदि किसी महिला आरोपी को मानसिक रोग हैं और वह अपने बचाव करने में असमर्थ पाई जाती हैं, तो ऐसी स्थिति में मैजिस्ट्रैट का उसका चिकित्सकीय मूल्यांकन (Medical Evaluation) कराना अनिवार्य हैं। यह धारा एक आरोपी को भी सही और जरूरी सुविधा जो एक बेहतर जीवन के लिए आवश्यक हैं, उपलब्ध कराती हैं।
3. गरिमामय जीवन का अधिकार
भारतीय संविधान मौलिक अधिकार के अनुच्छेद 21 के तहत हर नागरिक को गरिमामय जीवन का अधिकार देता हैं, ऐसे में जो व्यक्ति मानसिक या शारीरिक रूप से बीमार हैं उसके लिए यह और अधिक कड़क प्रावधान करता हैं, जिससे वह बेहतर सुबिधा पा सके।
4. लिंग और स्वास्थ्य के आधार पर भेदभाव से सुरक्षा
अनुच्छेद 15 यूं तो पारिभाषिक रूप से मानसिक स्वास्थ्य का प्रावधान नहीं रखता पर भारतीय संविधान की न्यायिक व्याख्या और सहायक कानूनों में इसका देर बढ़ाया गया और मानसिक और शारीरिक रूप से असमर्थ महिलाओं को समानता और गरिमा के अधिकार के लिए यह अनुच्छेद सभी नीतियों को सुनश्चित करता हैं।
5. स्वास्थ्य और शक्ति के विरुध्द शोषण से अधिकार
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 39(e) में राज्य (सरकार) का कर्तव्य हैं कि महिलाओं को स्वास्थ्य और शक्ति के विरुध्द शोषण से बचाया जाए।
6. घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005
मानसिक रोग से पीड़ित महिलाओं को अक्सर यौन हिंसा, घरेलू उत्पीड़न या उपेक्षा का सामना करना पड़ता हैं, इसलिए यह अधिनियम मानसिक उत्पीड़ना को शामिल करता हैं, और ऐसे में उसके खिलाफ प्रावधान भी रखता हैं।
7. POSH अधिनियम 2013
भारत में महिलाओं को कार्यस्थल पर मानसिक और यौन उत्पीड़न से सुरक्षा का प्रावधान इस कानून में किया गया हैं। क्योंकि भारत में कार्यस्थल पर महिलाएं अक्सर मानसिक उत्पीड़ना का शिकार होती हैं, ऐसे में उनकी सुरक्षा के लिए यह कानून बनाया गया।
इन कानूनों के होते हुए भी समाज में मानसिक रूप से बीमार महिलाओं को कई तकलीफों का सामना करना पड़ता हैं, जिसमें वह स्वयं को असमर्थ पाती हैं, ऐसे में सामाजिक जागरूकता औरMental Health Education होना बहुत आवश्यक हैं। लेकिन महिलाओं को इन कानूनों की जानकारी होनी चाहिए ताकि उनके खिलाफ होने वाली मानसिक उत्पीड़ना से वे लड़ सके और न्याय पा सके।