Ultrasound In Pregnancy: प्रेगनेंसी के दौरान कई प्रकार के चेकअप में अल्ट्रासाउंड शामिल होता है, जो बच्चे की हैल्थ विकास और अनचाहे समस्याओं की जांच के लिए किया जाता है। यह एक प्रकार की फोटोकॉपी होती है, जो शरीर के इंटरनल चेंजेस (Internal Changes) को आसानी से देखने में मदद करती है। प्रेगनेंट महिला के पेट पर एक रेडियोएक्टिव (Radioactive) जेल लगाया जाता है, जिससे शरीर के अंदर की अंतर्दृष्टि हासिल की जा सकती है। एक ट्रेंड डॉक्टर अल्ट्रासाउंड मेग्नेटिक प्रोब को पेट पर लगे जेल के साथ घुमाते हैं, जिससे हाई फ्रीक्वेंसी साउंड वेव्स उत्पन्न होते हैं और ये यूटेरस में से बच्चे के अंगों से टकराते हैं। इन साउंड वेव्स के परिणामस्वरूप गर्भस्थ शिशु के विभिन्न अंगों की इमेजेज अल्ट्रासाउंड मशीन की स्क्रीन पर प्रकट होती हैं, जो अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट के रूप में सामने आती है। आइए इस बारे में विस्तार से जानें।
क्यों प्रेगनेंसी के समय अल्ट्रासाउंड होता है अहम
अल्ट्रासाउंड के फायदे
अल्ट्रासाउंड के द्वारा हम प्रेग्नेंसी और डिलीवरी की एस्टीमेटेड डेट से लेकर गर्भस्थ शिशु की स्थिति और विकास के सभी पहलुओं पर सटीक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। यह एक नेचुरल प्रोसेस है और इसमें कोई रेडिएशन नहीं होती, बल्कि यह उल्ट्रासाउंड वेव्स का उपयोग करता है, जिससे गर्भस्थ शिशु को कोई नुकसान नहीं होता। प्रेगनेंट महिला को अल्ट्रासाउंड करवाने में कोई भी समस्या नहीं होती। सिर्फ पहली तिमाही में अल्ट्रासाउंड के लिए फुल ब्लैडर करने और यूरिन रोके रखने में थोड़ी परेशानी हो सकती है, लेकिन इससे भी वे किसी तरह का कष्ट नहीं पाती हैं।
विशेष परिस्थितियों में ज्यादा बार अल्ट्रासाउंड
प्रेगनेंट महिला की मेडिकल हिस्ट्री और विशेष स्थितियों के कारण, डॉक्टरों को अक्सर कई बार उल्ट्रासाउंड करना पड़ता है। उनमें निम्नलिखित शामिल हैं
1. अगर महिला की आयु 35 साल से अधिक है।
2. पहले से गर्भपात हुआ हो।
3. ट्विन या ट्रिपलेट प्रेगनेंसी की स्थिति हो।
4. गर्भावस्था के दौरान कोई समस्या उत्पन्न हो - जैसे बीच में ब्लीडिंग, पेट में दर्द, या पानी का निकलना।
कब और कौन सा अल्ट्रासाउंड
डेटिंग और हार्टबीट स्कैन अल्ट्रासाउंड का उपयोग करके, डेढ़ से दो महीने के बीच, प्रेगनेंसी के एंब्रियो में ट्विन या ट्रिपलेट प्रेगनेंसी की जानकारी मिलती है। एंब्रियो की आकार के आधार पर उसकी उम्र और एस्टीमेटेड डिलीवरी डेट तय की जाती है। यह अल्ट्रासाउंड शिशु की एस्टीमेटेड डिलीवरी डेट को सटीक रूप से देखने का सबसे अच्छा तरीका है। वाम निशान 7वें सप्ताह में प्रारंभ होता है, लेकिन किसी महिला को पेट दर्द हो, ब्लीडिंग हो या इससे पहले मिसकैरेज हो चुका हो, तो वैज्ञानिक 5वें सप्ताह में शिशु की हार्टबीट चेक करने के लिए अल्ट्रासाउंड कर सकते हैं। अगर गर्भस्थ शिशु की हार्टबीट सुनाई न दे रही हो, तो 10-15 दिन के बाद किसी-किसी मरीज का अल्ट्रासाउंड दोबारा करना पड़ सकता है। यह उल्ट्रासाउंड 7वे सप्ताह में फिर से किया जाता है, जिससे न्यूरल ट्यूब डिफ़ेक्ट या स्पाइना बिफिडा, एक्टोपिक प्रेगनेंसी की जांच भी होती है। एक्टोपिक प्रेगनेंसी की पुष्टि होने पर अबॉर्शन कराना पड़ता है, क्योंकि फैलोपियन ट्यूब में एम्ब्रियो का फिर से विकास नहीं हो पाता।
न्यूक्लियर ट्रांसलूसेंसी (एनटी) स्कैन उस समय किया जाता है जब प्रेगनेंसी का 11-14वें सप्ताह चल रहा हो। इस तकनीक में, बच्चे की नज़र के नीचे और गले के ऊपर की ओर एक क्षेत्र को स्कैन किया जाता है जिसे गली में तरल कहा जाता है। यदि यह 3 मिलीलीटर से अधिक हो, तो इसे डाउन सिंड्रोम जैसी प्रेगनेंसी संबंधी विकृति का संकेत माना जाता है। आगे, जेनेटिक टेस्टिंग, अर्थात शिशु के क्रोमोसोमों की जाँच की जाती है। डाउन सिंड्रोम के संदेह में, उल्ट्रासाउंड द्वारा शिशु की नाक की हड्डी और नेज़ल बोन का आकार स्कैन किया जाता है ताकि पता चल सके कि वह सही रूप से विकसित हैं या नहीं। यह जाँच करती है कि शिशु में कोई मेंटली नहीं है या वह कोई मेंटली विकलांग नहीं है। जब यह पुष्टि होती है, तो प्रेगनेंसी के 11-14 सप्ताह के बीच ही अबॉर्शन कराने की सलाह दी जाती है, बजाय उसे विकसित होने देने की। अबॉर्शन के 11 से 14 सप्ताह के बीच, अगर यूटरस में फेटस की नासिका की विकास में कोई समस्या है या न्यूक्लियर ट्रांसल्यूसेन्सी स्कैनिंग में नेक्सस से 3 मिमी से अधिक का अंश है, तो जेनेटिक स्टडी किया जाता है। इसमें शिशु के क्रोमोसोम की जांच की जाती है। अगर किसी प्रकार की गलती या समस्या पाई जाती है, तो अबॉर्शन किया जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि मेंटली असामान्य बच्चे को जन्म देना और उसकी देखभाल करना, अबॉर्शन से ज्यादा दुखदायी हो सकता है।
एनामली स्कैन अल्ट्रासाउंड (18-20 सप्ताह के बीच) प्रेग्नेंसी और शिशु के विकास की जांच के लिए बहुत जरूरी है। इस अल्ट्रासाउंड के माध्यम से शिशु के विभिन्न अंगों का विस्तार से निरीक्षण किया जाता है, जैसे कि हड्डियां, हृदय, मस्तिष्क, रीढ़ की हड्डी, चेहरा, किडनी, और पेट। इससे शिशु के विकास में किसी भी प्रकार की असमानता या अभिकल्पितता की पहचान की जा सकती है। अगर कोई गर्भस्थ शिशु में कोई विकृति है, जैसे कि क्लिफ्ट लिप, हाथ या पैर की कमी, या अन्य अंगों में विकृति, तो इसका समय रहते पता चल जाता है और उपचार की योजना बनाई जा सकती है। इस अल्ट्रासाउंड के माध्यम से ऐसे गर्भस्थ शिशु की निरीक्षण की जाती है, जिनमें कोई ऐसी समस्या हो सकती है जिसके कारण उन्हें जन्म के बाद सर्जरी की जरूरत हो सकती है।
ग्रोथ स्कैन और कलर डाॅप्लर स्कैन 32 से 36 सप्ताह के बीच प्रेगनेंट महिला के अल्ट्रासाउंड के दौरान शिशु के ब्रेन, हार्ट और अन्य पार्ट्स का ब्लड सर्कुलेशन जांचा जाता है ताकि उनकी ग्रोथ का पता चल सके। इसके साथ ही यह भी देखा जाता है कि क्या नॉर्मल डिलीवरी की संभावना है या नहीं, शिशु की पोजीशन के संदर्भ में, जैसे कि यूटेरस के निचले हिस्से में है या नहीं, या शिशु के सिर की पोजीशन के बारे में, कि क्या यह सिर नीचे की तरफ है या नहीं, जिसे ब्रीच बेबी कहा जाता है, और यह भी देखा जाता है कि शिशु के आसपास के एमनियोटिक फ्ल्यूड की मात्रा सही है या नहीं, शिशु का वजन और उसके गर्दन के आसपास की नाली के बारे में।
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