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Photograph: (Pinterest)
2025 जहां AI जैसे मुद्दों की बात होती है, वहां आज भी 3.4 बिलियन लोग बिना सैनिटेशन फैसिलिटी के रह रहे हैं। टॉयलेट जैसी जरूरी सुविधा का न होना कोलेरा, डायरिया और कुछ केस में तो बच्चों की मौत होने की संभावना पैदा करता है। टॉयलेट की सुविधा न होना महिला की डिग्निटी, सेफ्टी और प्राइवेसी जैसे मुद्दों पर भी प्रश्न उठाता है। महिला जब घर से बाहर निकलती है तो सबसे पहले यह सोचती है कि उसे सेफ्टी और सैनिटेशन मिलेगा या नहीं।
भारत में आज भी महिला टॉयलेट फैसिलिटी न होने की वजह से शिक्षा और एंप्लॉयमेंट जैसे जरूरी मुद्दों को अक्सर नजरअंदाज किया जाता है, जिससे महिलाएं सफर करती हैं। टॉयलेट होना निजी और गरिमा का विषय है, लेकिन इस पर भी शायद ही किसी का ध्यान जाता हो। महिला जब लंबे समय तक सिर्फ यूरिन को इसलिए रोकती है क्योंकि पब्लिक टॉयलेट साफ नहीं होते या अलग टॉयलेट उपलब्ध ही नहीं होते। ज्यादातर मामलों में पब्लिक टॉयलेट भले महिला के लिए बने हों, लेकिन वे या तो गुटखा की छाप से रंगीन मिलेंगे या होते ही नहीं हैं। ऐसे में महिला जब लंबे समय तक साफ और सुरक्षित टॉयलेट फैसिलिटी का इंतजार करती है तो उसके मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर पड़ता है।
World Toilet Day: क्यों महिलाएं आज भी घर से बाहर टॉयलेट जाने को मजबूर हैं?
आइए जानते हैं कि टॉयलेट फैसिलिटी का न होना क्या समस्याएं लेकर आता है:
1. शारीरिक कमजोरी और बीमारी का न्यौता
आज भी भारत में open defecation जैसे पहलू नजरअंदाज होते हैं। इसकी वजह से बच्चों में कोलेरा, डायरिया और अनेक तरह की बीमारियां होती हैं। क्योंकि ग्रामीण इलाकों में अब भी टॉयलेट की फैसिलिटी नहीं होती है, जिससे बाहर गतिविधियों के होने से पानी का प्रदूषित होना या खाने पर उसका असर होना आम है। यह एक पूरी साइकिल है जो open defecation को नजरअंदाज न करने की चेतावनी देती है।
2. मेंटल हेल्थ पर असर
जब एक महिला को घर में जरूरी सुविधा नहीं मिलती है, तो सवाल उसकी निजता और गरिमा का भी होता है। ऐसे में जब लंबे समय तक यूरिन पास करने या टॉयलेट यूज़ करने का इंतजार करना पड़े तो मन पर असर होना स्वाभाविक है। मेंटल हेल्थ सिर्फ बड़े गहन मुद्दों से नहीं होती, यह छोटी सी दिखने वाली बात भी गंभीर होती है। एक इंसान को साफ और सुरक्षित टॉयलेट फैसिलिटी उसका हक है, पर इसे भी राजनीतिक मुद्दा बनाकर छोड़ दिया गया है।
3. शिक्षा और रोजगार में चुनौती
भारत में टॉयलेट सुविधा का स्कूल में न होने के कारण बच्चियों और महिलाओं को पीरियड्स के दौरान स्कूल नहीं जाने दिया जाता है। साथ ही उन्हें लंबे समय तक यूरिन रोकना पड़ता है क्योंकि सैनिटेशन फैसिलिटी भी नहीं होती हैं। ऐसे में अगर किशोरियां या महिलाएं शिक्षा नहीं ले पाएंगी तो बेहतर जॉब ऑपर्च्युनिटी को कैसे ले पाएंगी? शिक्षा स्वस्थ मन से होती है और स्वस्थ मन के लिए साफ टॉयलेट होना भी जरूरी है।
4. सेफ्टी और सिक्योरिटी का खतरा
महिला जब टॉयलेट जैसी फैसिलिटी के लिए घर से बाहर जाती है, तो उसकी निजता और गरिमा को ठेस तो पहुंचती ही है, साथ ही उसकी सुरक्षा का भी प्रश्न उठता है। ऐसे में महिला सुरक्षित कैसे महसूस करेगी? एक इंसान को रिलैक्स होने के लिए भी बहुत दूर और छुपकर जाना पड़ता है। ऐसे में उसकी निजता पर भी प्रश्न और सबसे अधिक उसकी सुरक्षा पर भी प्रश्न उठते हैं।
5. सांस्कृतिक पक्ष
संस्कृति भी एक प्रमुख कारण है कि क्यों टॉयलेट जैसी फैसिलिटी घर पर नहीं होती। टॉयलेट घर में होना hygiene से नहीं, पवित्रता से जोड़ा जाता है, इसलिए आज भी घरों में टॉयलेट नहीं बनाए जाते हैं। पब्लिक प्लेस पर male-dominating environment होने से public Toilets में भी women hygiene और फैसिलिटी को इग्नोर किया जाता है। no toilets for women in india एक ऐसा मुद्दा हैं जिस पर बात होना आवश्यक हैं।
Marking World Toilet Day in Chhattisgarh with over 200 women Sarpanches at the State-level Conclave on Sanitation.
— UNICEF India (@UNICEFIndia) November 19, 2025
The Hon’ble Deputy CM Shri Vijay Sharma highlighted how women’s leadership is shaping more resilient, dignified, and inclusive sanitation services across rural… pic.twitter.com/YFYFaEbo3l
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