Sexual Burnout: जब बॉडी तो present हो, पर माइंड ‘off mode’ में चला जाता है

क्या आपने कभी महसूस किया है कि शरीर intimacy में मौजूद है, पर दिमाग कहीं और? जानिए sexual burnout आखिर होता क्या है और क्यों कई महिलाएँ इसे पहचान भी नहीं पातीं।

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Deepika Aartthiya
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Photograph: (Freepik)

हम इंटीमेसी को अक्सर सिर्फ़ शरीर से जोड़ते हैं, जबकि सेक्स असल में एक मेंटल एक्सपीरियंस है। जब दिमाग थक जाता है, स्ट्रेस्ड या overwhelmed रहता है, तब आप फ़िज़िकली तो उस पल में मौजूद रहती हैं लेकिन मेंटली नहीं। यही सेक्सुअल बर्नआउट है, एक ऐसी सिचुएशन जहाँ बॉडी रूटीन निभा रही होती है, पर दिमाग और इमोशंस शटडाउन मोड में चले जाते हैं। कई महिलाएँ इसे अपनी गलती समझ लेती हैं, जबकि असल में ये उनके इमोशनल लोड और लगातार प्रेशर का नतीजा है। सेक्सुअल बर्नआउट को समझना और पहचानना ज़रूरी है।

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Sexual Burnout: जब बॉडी तो present हो, पर माइंड ‘off mode’ में चला जाता है

  1. Sexual Burnout कैसे पहचाने? 

कुछ signs आपको बताते हैं कि आपका दिमाग थक गया है और आपको एक ब्रेक चाहिए। जैसे

  • इंटीमेसी के दौरान माइंड कहीं और चला जाना

  • ज़रा-सी टच पर irritation 

  • Sex “टास्क” जैसा लगना

  • आप फिज़िली प्रेज़ेंट तो हो, पर इमोशनल एंगेजमेंट ज़ीरो हो जाए 

  • पार्टनर से दूरी बनने लगना

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2. सेक्सुअल बर्नआउट आखिर होता कैसे है?

काम, घर, इमोशनल प्रेशर, ओवरथिंकिंग, बॉडी इमेज कंसर्न्स इन सबका सीधा असर sexual desire पर पड़ता है। जब रोज़मर्रा की थकान, ज़िम्मेदारियों और मेंटल ओवरलोड से दिमाग लगातार अलर्ट, anxious या स्ट्रेस्ड रहता है, तो उसे प्लेज़र के लिए स्पेस ही नहीं मिलता। ऐसे में Nervous system सरवाइवल मोड में चला जाता है और बॉडी डिज़ायर की जगह पर करती है “प्रोटेक्ट” मोड को प्राथमिकता देने लगती है। हालांकि बाहर से सब नॉर्मल लगता है, इसलिए महिलाएँ सोचती हैं कि “शायद मुझमें ही कमी है।” जबकि बर्नआउट chronic stress का एक नेचुरल response है।

3. महिलाओं में बर्नआउट ज़्यादा क्यों होता है?

इसका कारण है महिलाओं का पुरुषों की अपेक्षा में दोगुना तिगुना मेंटल लोड होना जैसे घर, काम, रिश्ते, फीलिंग्स, guilt, अनगिनत उम्मीदें। इसके साथ “अच्छा पार्टनर बनना है” जैसा सोसायटल प्रेशर कई बार औरत को अपने बॉडी के सिग्नल्स सुनने का भी मौका नहीं देता। जब हर चीज़ की जिम्मेदारी माइंड पर हो, तो सेक्सुअल डिज़ायर नैचुरली पीछे छूट जाती है।

4. “Performance pressure” भी बर्नआउट को बढ़ाता है

कई महिलाओं को लगता है कि उन्हें बिना मन से भी इंटीमेसी में परफॉर्म करना है, अच्छा पार्टनर बनना है, atmosphere बनाना है, पार्टनर को satisfy करना है। कई बार ये अनदेखा प्रेशर भी डिज़ायर को खत्म कर देता है। सेक्सुअल बर्नआउट वहीं पैदा होता है जहाँ इंटीमेसी नेचुरल कनेक्शन न होकर एक “expectation” बन जाती है। जब बॉडी रिलेक्स नहीं होती, प्लेज़र नैचुरली नहीं आ सकता और हर एक्सपीरियंस बस exhausting सा लगने लगता है।

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5. महिलाओं को बर्नआउट पहचानने में इतनी दिक्कत क्यों होती है?

बचपन से लड़कियों को अपनी बॉडी और डिज़ायर्स को suppress करना सिखाया जाता है। उन्हें इन टॉपिक्स को इग्नोर करने को बोला जाता है। “अच्छी लड़कियाँ ऐसी बातें नहीं करती” या “पार्टनर को खुश रखना ज़रूरी है” जैसी कंडीशनिंग महिलाओं को अपने सेक्सुअल signs पहचानने से रोकती है। इसलिए बर्नआउट जैसी सिचुएशन में भी महिलाएँ कन्फ्यूज़्ड रहती हैं कि आखिर उनके साथ हो क्या रहा है?

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