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Breaking Stereotypes : हर खेल को खेल सकतीं महिलाएं

तुम एक लड़की हो और ये खेल तुम्हारे लिए नहीं बना एक महिला स्पोर्ट्स पर्सन होने के नाते ये कईयों ने सुना होगा। आज जहां सब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के वर्ल्ड में जी रहें हैं

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Khushi Jaiswal
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Image credit: play and shine foundation

Breaking Sterotypes : Women In Sports : तुम एक लड़की हो और ये खेल तुम्हारे लिए नहीं बना एक महिला स्पोर्ट्स पर्सन होने के नाते ये कईयों ने सुना होगा। आज जहां सब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के वर्ल्ड में जी रहें हैं वही सिक्के के दूसरी ओर आज भी ये पिछड़ी सोच ना जाने कितनी ही महिलाओं से उनके सपने का आसमान छिंगा है। ये बोलना तो आसन है की आज के ज़माने में एक महिला पुरुषों को टक्कर दे रहीं हैं। लेकिन उसका क्या कीमत चुकाना पड़ रहा किसी को नहीं पता और वो महिला ऐसे पिछड़ी सोच को छोड़कर आगे भी बढ़ रहीं हैं तो उन्हें उस स्पोर्ट्स समिति के अध्यश के तौर पर बैठे पुरुष दबाने में लगें हैं। जिसका क्या परिणाम आता हैं ? एक बेटी आखिर में छोड़ देती हैं वो स्पोर्ट्स और उसका सपना और एक समाज बस चुप्पी साध कर अँधा, बहरा बनकर देखता रहता हैं। किसी के कान में जू तक नहीं रेंगती। खैर, चलिए आज समाज के लोगों के बारे में बात करते हैं जिन्हें लगता है की खेल का जेंडर होता हैं और उसे सिर्फ कोई विशिष्ट जेंडर का इंसान ही खेल सकता हैं।

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कोई भी खेल महिलाएं खेल सकतीं हैं 

समाज में हमेशा से एक सोच चलती आ रहीं हैं की एक महिला एक पुरुष से कमजोर हैं और उसे एक समाज कभी अच्छी एथेलिट के तौर पर एक्सेप्ट नहीं करता। वैसे तो महिलाए किसी के सविकारिता के मौहताज नहीं पर समाज की इस सोच का खोकला पन काफी गहरा हैं और उस सोच को आईना दिखाना भी जरुरी हैं। हमारे भारत के पास ऐसे कई बेटियों के उदाहरण हैं जिन्होंने ऐसी सोच को पछाड़ कर हर उस खेल में मुकाम हासिल किया हैं जिन्हें कभी सिर्फ पुरुषों को खेल माना गया था जैसे फोगाट सिस्टर्स, मैरी कॉम, मिथाली राज, सायना नेहवाल आदि।

 एक वक्त था जब महिलाओं के स्पोर्ट्स को टीवी पर दिखाया भी नहीं जाता था क्योंकि उसे कोई देखता ही नहीं था खैर वक्त ने करवट ली और हाली में आरसिबी के महिला टीम के द्वारा लाया गया ट्राफी ने कईयों का मुह बंद करवा दिया सिर्फ क्रिकेट ही नहीं बल्कि रेसलिंग, बॉक्सिंग, वेट लिफ्टिंग आदि में भी बेटियों ने गोल्ड लाकर देश का नाम रौशन किया हैं और साबित कर दिया हर खेल महिलाओं का खेल हैं।

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जरूरत हैं की हम आज के जमाने में हो रहें इन भेदभाव को छोड़ कर एक औरत को उसके सपनों का असमना हासिल करने के उनके पंखो को बढ़ाये ना की कुछ खोकले सोच के कारण काट दे और आखिर में यहीं कहूँगी की खेल का कोई जेंडर नहीं होता जिसने मेहनत की मुकाम उसीने हासिल किया हैं। एक बेटी हो या बेटा।

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