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Last Rites: बेटियों को अंतिम संस्कार से क्यों दूर रखा जाता है?

टॉप-विडियोज़: भारतीय समाज में बेटियों को अंतिम संस्कार से दूर रखने के पीछे कई मिथक और धारणाएँ हैं। अविवाहित लड़कियों की पवित्रता और भूत-प्रेत के डर से दूर रखा जाता है।

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Trishala Singh
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Why Are Daughters Not Allowed to Perform Last Rites: भारतीय समाज में बेटियों को अंतिम संस्कार में शामिल होने से अक्सर रोका जाता है। इसके पीछे कई परंपरागत और सांस्कृतिक धारणाएँ हैं, जिनमें से कई असत्य और अवैज्ञानिक हैं। इस लेख में हम जानेंगे कि आखिर क्यों बेटियों को अंतिम संस्कार से दूर रखा जाता है और इन धारणाओं का क्या आधार है।

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बेटियों को अंतिम संस्कार से क्यों दूर रखा जाता है?

1. लड़कियाँ कमजोर होती हैं 

लड़कियाँ कमजोर होती हैं और श्मशान का नज़ारा नहीं देख सकतीं। यह धारणा पूरी तरह से पितृसत्तात्मक समाज की उपज है। यह मानना कि लड़कियाँ कमजोर होती हैं और श्मशान का नज़ारा नहीं देख सकतीं, सामाजिक पूर्वाग्रह है। वास्तव में, लड़कियाँ शारीरिक और मानसिक रूप से किसी भी परिस्थिति का सामना करने में सक्षम होती हैं। इस तरह की सोच केवल उनके आत्म-विश्वास को कमजोर करती है।

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2. क्या बालों का त्याग करेगी

बाल शेव करेंगी, लड़कियाँ अपने बाल और सौंदर्य के प्रति बहुत सचेत होती हैं। लड़कियों को सौंदर्य और बालों के प्रति सचेत होना एक सामान्य मानवीय स्वभाव है, लेकिन इसे अंतिम संस्कार से जोड़ना अनुचित है। बालों को शेव करना अंतिम संस्कार की प्रक्रिया का एक हिस्सा हो सकता है, लेकिन यह किसी व्यक्ति के प्रेम और सम्मान का मापदंड नहीं है। लड़कियाँ अपने माता-पिता से कम प्यार नहीं करतीं, और बालों का त्याग उनके प्रेम को कम नहीं कर सकता।

3. श्मशान घाट पर जाना सुरक्षित नहीं

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सुना है अविवाहित लड़कियाँ बहुत पवित्र होती हैं और भूत-प्रेत सबसे पहले इन्हें ही पकड़ते हैं, श्मशान घाट पर जाना सुरक्षित नहीं। यह एक अंधविश्वास है जो सदियों से चला आ रहा है। भूत-प्रेत का डर और अविवाहित लड़कियों की पवित्रता के मिथक के आधार पर उन्हें अंतिम संस्कार से दूर रखना बिलकुल अनुचित है। यह केवल उनके अधिकारों और स्वतंत्रता का हनन है। विज्ञान के युग में इस प्रकार की सोच को त्यागना आवश्यक है।

4. आत्मा को शांति नहीं मिलेगी

लड़कियाँ अगर अंतिम संस्कार करेंगी तो आत्मा को शांति नहीं मिलेगी, लड़के चाहे कितने भी नालायक हों, उनके छूने से आत्मा को निर्वाण मिलता है। यह धारणा पितृसत्तात्मक समाज की मानसिकता को दर्शाती है। आत्मा की शांति और निर्वाण प्राप्ति का संबंध किसी व्यक्ति के लिंग से नहीं है। यह मानना कि केवल लड़के ही आत्मा को शांति दे सकते हैं, लड़कियों के साथ अन्याय है। लड़कियाँ भी अपनी पूरी श्रद्धा और प्रेम से अंतिम संस्कार कर सकती हैं और आत्मा को शांति प्रदान कर सकती हैं।

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5. संपत्ति के अधिकार में होता है 

जो अंतिम संस्कार करता है, वह संपत्ति के अधिकार में होता है और लड़कियाँ इस खेल में नहीं हैं। यह विचार समाज में लिंग भेदभाव को बढ़ावा देता है। संपत्ति का अधिकार और अंतिम संस्कार का कार्य दोनों अलग-अलग मुद्दे हैं। लड़कियाँ भी संपत्ति के अधिकार में होती हैं और उन्हें इस खेल से बाहर रखना अनुचित है। यह उनके अधिकारों का हनन है और उन्हें आर्थिक दृष्टि से कमजोर बनाता है।

बेटियाँ अंतिम संस्कार में शामिल क्यों नहीं हो सकतीं, इस पर समाज में कई प्रकार की धारणाएँ और मिथक हैं। लेकिन इन सभी धारणाओं और मिथकों का कोई वैज्ञानिक और तार्किक आधार नहीं है। यह समय है कि हम इन परंपरागत धारणाओं को तोड़ें और लड़कियों को उनके अधिकार दें। लड़कियाँ भी अपने माता-पिता से उतना ही प्रेम करती हैं जितना कि लड़के, और उन्हें भी अपने माता-पिता के अंतिम संस्कार में शामिल होने का पूरा हक है। समाज को इन पूर्वाग्रहों से ऊपर उठकर लड़कियों को समान अधिकार और सम्मान देना चाहिए।

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