Why Indians Are Badly Obsessed With Fair Skin: अगर आपका भी रंग गोरा नहीं है तो आपकी जिंदगी में कुछ भी अच्छा नहीं होने वाला है, आप कॉन्फिडेंट नहीं हो सकते हैं और ना ही आपकी लव लाइफ अच्छी रहेगी। यह हम नहीं कह रहे हैं। यह समाज के बनाए हुए बेटी स्टैंडर्ड हैं। इन सब चीजों के पीछे मूवी, टीवी सीरियल्स और गानों का भी पूरा हाथ है जहां पर खुलेआम रंगवाद किया जाता है। गोरे रंग की बहुत ज्यादा तारीफ की जाती है। इसके साथ ही इसमें फेयरनेस प्रोडक्ट्स का भी बहुत बड़ा योगदान है जहां पर गोरे रंग को बहुत ज्यादा ग्लोरिफाई किया जाता है और इसे सुंदरता का पैमाना बनाया जाता है। भारतीय फेयरनेस इंडस्ट्री का मूल्य 45 मिलियन डॉलर से अधिक है। -
भारतीय लोग "Fair" Skin को लेकर क्यों इतने Obsessed हैं?
यह सब 1919 में शुरू हुआ था जब भारत को पहली फेयरनेस क्रीम अफगान स्नो में मिली लेकिन 1975 में एक प्रसिद्ध भारतीय कंपनी फेयरनेस का दावा लेकर आई जिसने पूरा खेल बदल दिया। अगर आप ध्यान से इन फेयरनेस क्रीम ब्रांड एडवर्टाइजमेंट को देखें तो आप समझेंगे कि जिसका रंग सांवला होता है, उसमें आत्मविश्वास की कमी और नापसंद दिखाया जाता है। जिस पल वो फेयरनेस क्रीम लगाना शुरू कर देती है तब से उसकी जिंदगी में सब कुछ अच्छा होने लग जाता है। लोगों उसे चाहने लग जाते हैं और वह जीवन में सफल भी हो जाती है। भारत में में से सात लोग फेयरनेस प्रोडक्ट्स का उपयोग करते हैं।
मीडिया और मनोरंजन उद्योग जो चित्रित करते हैं उसका आम लोगों पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है, वे गलत और अवास्तविक सौंदर्य मानकों (Unrealistic Beauty Standards) को बढ़ावा देने और दूसरों की असुरक्षा (Insecurities) पर मजाक करने के अलावा कुछ नहीं कर रहे हैं।
अब जब हम रेसिजम, शादी और त्वचा के रंग के बारे में बात कर रहे हैं तो इस बात में भी कोई शक नहीं है कि हम हमेशा एक गोरी दुल्हन चाहते हैं। गोरेपन का जुनून केवल महिलाओं तक ही सीमित नहीं है, बल्कि एक अध्ययन में पाया गया कि महिलाओं के फेयरनेस क्रीम के 30% ग्राहक पुरुष थे और यही कारण है कि बाद में 2005 में भारत की पहली पुरुषों की फेयरनेस स्क्रीन पेश की गई। सिर्फ यहीं नहीं है। बॉलीवुड फेयर स्किन ऑब्सेशन अगले स्तर पर है। यहां तक कि बॉलीवुड के सबसे बड़े एक्टर्स भी फेयरनेस प्रोडक्ट्स को प्रमोट करते हैं।
भारत में बहुत कुछ बदल गया है। यहां तक कि चंद्रमा के अज्ञात क्षेत्र दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला दुनिया का पहला देश बन गए हैं लेकिन हम अभी भी रंगवाद से उबर नहीं पाए हैं। रंगवाद, वर्गवाद और जातिवाद एक साथ चलते हैं। सबसे पहले हमें अपना चीजों को देखने का नजरिया बदलना होगा और ऐसे प्रोडक्ट्स का उपयोग और प्रचार करना बंद करना होगा जो केवल नस्लवाद (Racism) को बढ़ावा देते हैं।