Fair Skin: गोरा रंग सुंदरता का पैमाना या समाज का आईना?

ओपिनियन: भारत में गोरे रंग के प्रति आकर्षण एक ऐसी सच्चाई है जिससे हम इनकार नहीं कर सकते। विज्ञापनों से लेकर फिल्मों तक, हर जगह "गोरापन" ही खूबसूरती का पर्यायवाची लगता है। लेकिन, क्या ये सोचना सही है?

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Vaishali Garg
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Society and Women's Choice

Why Indians Are Obsessed With Fair Skin: भारत में गोरे रंग के प्रति आकर्षण एक ऐसी सच्चाई है जिससे हम इनकार नहीं कर सकते। विज्ञापनों से लेकर फिल्मों तक, हर जगह "गोरापन" ही खूबसूरती का पर्यायवाची लगता है। लेकिन, क्या ये सोचना सही है? कहीं ये हमारी संस्कृति और इतिहास का एक विकृत प्रतिबिंब तो नहीं? आइए आज इस जटिल मुद्दे की तह तक जाएं और समझें कि आखिर क्यों भारतीय गोरे रंग के इतने दीवाने हैं?

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गोरा रंग सुंदरता का पैमाना या समाज का आईना?

इतिहास के पन्नों में छिपे निशान

इस आकर्षण के पीछे कई ऐतिहासिक कारण उभरते हैं। सदियों का साम्राज्यवादी शासन, जहां अंग्रेजों की गोरी त्वचा को सत्ता और धन का प्रतीक माना जाता था, हमारे मानस पर गहरा प्रभाव छोड़ गया। यही नहीं, जाति व्यवस्था ने भी रंग को सामाजिक पदक्रम से जोड़ दिया, जहां ऊंची जातियों का सम्बन्ध गोरेपन से माना जाता था। ये नज़रिए पीढ़ियों से चले आ रहे हैं, और आज भी हमारे संस्कृति और मीडिया में व्याप्त हैं।

मीडिया का जादू: "फेयर एंड लवली" का प्रभाव

हमारा मीडिया, चाहे वो फिल्म हो, विज्ञापन हो या सोशल मीडिया, लगातार ऐसे सौंदर्य मानकों को पेश करता है जहां गोरा रंग ही आकर्षण का केंद्र होता है। निखरी त्वचा वाले मॉडल और अभिनेता हमें घेरते हैं, ये छवियां हमारे मन में ये धारणा स्थापित करती हैं कि गोरापन ही असली सुंदरता है। इसी के चलते, त्वचा गोरा करने वाले तेलों, क्रीमों और उपचारों का बाजार फल-फूल रहा है, ये वादे करते हैं कि वे हमें "परफेक्ट" रंग देंगे।

असली खूबसूरती क्या है?

पर सच कहां है? सच्ची सुंदरता तो त्वचा के रंग में नहीं, बल्कि अंदर की चमक में छिपी है। जो लोग अपनी संस्कृति, प्रतिभा, और आत्मविश्वास से जगमगाते हैं, वही असल में सबसे आकर्षक होते हैं। ये मानना की सफेद त्वचा ही सफलता और स्वीकृति की कुंजी है, सिर्फ हमारे आत्मविश्वास को कमजोर करता है और हमें असल खूबसूरती को देखने से रोकता है।

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बदलाव की लहर: आत्म-प्रेम और आत्म-स्वीकृति

आज के युवा गोरे रंग के जुनून को तोड़ते हुए, अपनी सांवली त्वचा को गर्व से स्वीकार कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर #DarkIsBeautiful जैसे अभियान रंगभेद के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। बॉलीवुड में भी अब पहले से कहीं ज्यादा विविधता दिखाई दे रही है, और सांवले रंग के कलाकारों को भी प्रमुख भूमिकाएं मिल रही हैं।

खुद को आजाद करो, रंगों का जश्न मनाओ

इस गोरेपन के जुनून से मुक्त होने के लिए जरूरी है कि हम अपने सौंदर्य मानकों पर फिर से विचार करें। हमें मीडिया के बनाए हुए तौरों से परे जाकर, अपनी अद्वितीय खूबसूरती को पहचानना चाहिए। चाहे हमारा रंग सांवला हो, गहरा हो या कहीं बीच का, हर त्वचा अपने आप में खूबसूरत है। आइए अपनी संस्कृति की विविधता का जश्न मनाएं, जहां हर रंग को बराबर का सम्मान मिले। अपनी प्राकृतिक त्वचा पर गर्व करें, और दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करें। भारत में गोरेपन के जुनून की जड़ें गहरी हैं, लेकिन बदलाव लाने की ताकत हमारे हाथों में है। आइए, इस सामाजिक मिथक को तोड़ें और हर रंग को मनाएं, क्योंकि असली खूबसूरती विविधता में ही है।

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