/hindi/media/media_files/uj6pd8CUZB5NaBugHipd.png)
file image
"कुछ जख्म शरीर पर नहीं, पर परवरिश में दिखते हैं" माता-पिता अक्सर अपने अतीत का डर, तकलीफ़े और trauma जाने-अनजाने में बच्चों में transfer कर देते हैं। यह तकलीफ़े, डर और trauma शारीरिक रूप से नहीं दिखता पर मन और मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर डालता हैं, जिससे बच्चों की जिंदगी में इसका असर दिखता हैं। कुछ ऐसा trauma होता हैं, जो पीढ़ी दर पीढ़ी बहता रहता हैं, पर बच्चों को अनजाने रूप से प्रभावित करता हैं। उनका छुपा दर्द, तकलीफ़े और डर चुप-चाप उनके अचेतन मन(unconscious mind) में छाप छोड़ता जाता हैं, उनके व्यक्तितत्व में देखा भी जा सकता है।
Trauma Hierarchy: कैसे parents अपना trauma बच्चों को transfer कर देते है?
1. अधूरा दुख या गिल्ट
भारतीय परिवारों में अक्सर पीढ़ी डर पीढ़ी ऐसा दुख बहता रहता हैं जिसे बताया नहीं जाता पर उसका असर हर बच्चे पर हो रहा होता हैं। कहीं बार यह दुःख overprotecting या कंट्रोल का रूप ले लेता हैं। अक्सर माँ-बाप अपनी असफलता का गिल्ट बच्चों की ज्यादा चिंता या ख्याल में दिखाते हैं, जिससे बच्चे अंदर ही अंदर घुँटन महसूस करते हैं और इसे ही स्वीकार कर अपने आने वाली पीढ़ी को परंपरा के रूप में थोप देते हैं।
2. भावनात्मक रूप से उपलब्ध न होना
अक्सर माता-पिता लंबे समय तक बच्चे के लिए पास होकर भी भावनात्मक रूप से उपलब्ध नहीं होते, तो बच्चा अंदर से अकेला महसूस करना और खुद को 'कमजोर' और 'असुरक्षित' महसूस करने लगता हैं। बच्चों की बातें टालना, उन्हें बिना कारण के डांटना और अपने दर्द और तकलीफों में इतने उलझे रहना कि उन्हें भूल जाना यह सब बच्चों तक अपने trauma को पहुंचाना ही हैं।
3. Silent Parenting (चुप्पी साध कर पालन-पोषण)
माता-पिता अपनी बातें, दर्द और तकलीफ को चुप-चाप सहते रहते हैं, और बच्चों को नहीं बताते हैं , जिसका असर बच्चों को मानसिक रूप से कमजोर और आत्मविश्वास में कमी लाता हैं। बच्चों की गलती पर डांट की बजह उन्हें दूर कर देना और कहना तू समझदार हैं समझ जाएगा अक्सर ऐसे वाक्य है जो बच्चों को माँ -बाप से उपेक्षित करते हैं, और लंबे समय में trauma के रूप मे उभरते हैं।
4. Dream Projection (अपने सपने थोपना)
भारतीय समाज में माँ-बाप अपने सपनों को बच्चों पर थोप देते हैं, जिस सपने को वो साकार नहीं कर पाएं या समाज में अधिक प्रभावी देखते हैं, अक्सर बच्चों से भी वैसा करने की आश लगाते हैं, और यह उन्हें खुद की आजादी और सपनों में बाधा बंता हैं। माँ-बाप कहते हैं: "मैं तोआईएएस या डॉक्टर नहीं बन पाया/पाई, पर तू जरूर बनना ", अक्सर ऐसें वाक्य बच्चों की स्वयं के जीवन की आजादी पर भी प्रश्न बना देते हैं।
5. जब दर्द की भाषा विरासत बन जाए (Inherited Coping Patterns)
भारतीय माताओं को आपने कहते सुना होगा: "हमने यह दर्द सहा, जैसा तुम्हें सिखाया और सहना होगा"। परिवारों में दर्द, तकलीफ और असुरक्षा का बोझ बच्चों को विरासत में देना चाहते हैं। समाज में सिखाया जाता हैं की कंट्रोल ही केयर हैं, जिसके कारण वे overprotectiveness को ही अपना प्यार समझते हैं।