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रजो पर्व: नारीत्व और मासिक धर्म को सेलिब्रेट करने वाला त्योहार

एक ओर जहां भारत और दुनिया के कई इलाकों में मासिक धर्म को टैबू माना जाता है, वहीं उड़ीसा में इसे नारीत्व और उनकी प्रजनन क्षमता के सम्मान में एक अनूठे त्योहार के रुप में मनाने की परंपरा है। यहां जानिए इस त्योहार के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें।

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Srishti Jha
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Image Credit: Harsha

Raja Utsav: A festival celebrating womanhood and menstruation: एक ओर जहां भारत और दुनिया के कई इलाकों में मासिक धर्म को शर्मनाक और अपवित्र माना जाता है, वहीं इसके विपरीत दूसरी ओर भारत के एक समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर वाले राज्य उड़ीसा में इसे महिलाओं के नारीत्व और उनकी प्रजनन क्षमता के सम्मान में एक अनूठे त्योहार के रुप में मनाने की परंपरा है। रज त्योहार न केवल महिलाओं की शारीरिक शक्ति और प्रजनन क्षमता का सम्मान करता है, बल्कि समाज में उनके महत्वपूर्ण स्थान को भी स्वीकार करता है। यहां जानिए इस अनोखे त्योहार के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें।

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नारीत्व और मासिक धर्म को सेलिब्रेट करने वाला त्योहार

1. त्योहार का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व

रज, जिसे "रजो पर्व" या "राजापरब" भी कहा जाता है, ओडिशा राज्य में प्रमुखता से मनाया जाता है। इस त्योहार को देवी पृथ्वी यानि "भू देवी" के वार्षिक मासिक धर्म चक्र के रूप में देखा जाता है। मान्यता है कि इस समय पृथ्वी माता विश्राम करती हैं और अपनी उर्वरता को पुनः प्राप्त करती हैं। यह त्योहार मुख्यतः ओडिशा के आदिवासी और ग्रामीण क्षेत्रों में मनाया जाता है, जहां कृषि जीवन का केंद्र है। रजो पर्व के दौरान, लोग मानते हैं कि जैसे महिलाएँ मासिक धर्म के दौरान विश्राम करती हैं, वैसे ही भूमि भी इस समय विश्राम करती है, इसीलिए इन दिनों कृषि से संबंधित कोई भी कार्य नहीं किए जाते है।

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 2. तीन दिवसीय पर्व 

रज त्योहार को तीन दिनों तक मनाया जाता है, जिनके अलग-अलग नाम और महत्व होते हैं। इस वर्ष यह पर्व 14 -16 जून तक मनाया गया है।

पहला दिन: पहला दिन यानी पहिलारजा के दिन इस त्योहार की शुरुआत होती है। इस दिन  रसोई तथा घर के अन्य कार्य पुरुषो के द्वारा किए जाते है। महिलाएं आराम करती है, सजती संवरती है और सोलह श्रृंगार कर झूला झूलती है।

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दूसरा दिन: त्योहार के दूसरे दिन को मिथुन संक्रांति कहते हैं। यह दिन सबसे महत्वपूर्ण होता है, जब सूर्य मिथुन राशि में प्रवेश करता है। इस दिन महिलाऐं हल्दी और मुल्तानी मिट्टी का लेप लगा सुबह सवेरे स्नान करती है, नये वस्त्र पहनती हैं, सज-संवर कर अपने बालों में फूल लगाती है और विभिन्न पारंपरिक खेलों और गतिविधियों में भाग लेती हैं।

तीसरा दिन: यह दिन 'बासी रजा' के नाम से भी जाना जाता है, इस दिन महिलाऐं देवी पृथ्वी को स्नान कराती हैं, उनकी पूजा कर पकवान अर्पित करती हैं। धरती को विभिन्न प्रकार के फूलों से सजाया भी जाता है। रज पर्व के चौथे दिन बसुमति स्नान किया जाता है।

3. पारंपरिक खेल और संगीत का आयोजन 

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रज त्योहार के दौरान पारंपरिक खेल और संगीत का विशेष महत्व होता है। महिलाएँ और लड़कियाँ ऐसी कई गतिविधि में भाग लेती हैं। गाँवों में विशेष प्रकार के झूले बनाए जाते हैं, जिन्हें "रजो पिंग" कहा जाता है। इसके साथ ही, पारंपरिक संगीत और गीत इस उत्सव का अभिन्न हिस्सा होते हैं। लोग नाचते-गाते हैं, और ढोल, मृदंग जैसे वाद्ययंत्रों का आनंद लेते हैं।

4. विशेष भोजन और मिठाई

इस त्योहार के दौरान विशेष खाद्य पदार्थों का भी बड़ा महत्व है। उड़ीसा के पारंपरिक व्यंजन जैसे "पोड़ पीठा", "कांड़ा पकोड़ी" और "सज्जा लड्डू" आदि बनाये जाते हैं। ये मिठाइयाँ और स्नैक्स खासतौर पर त्योहार की खुशी और सामुदायिकता को बढ़ाने के लिए बनाये जाते हैं।

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5. महिलाओं के अधिकार और सम्मान का प्रतीक

रज पर्व उन पारंपरिक धारणाओं को चुनौती देता है, जो मासिक धर्म को वर्जित या टैबू मानती हैं। इसके विपरीत, यह त्योहार इस प्राकृतिक प्रक्रिया को जीवन और उर्वरता का प्रतीक मानता है और समाज को महिलाओं के प्रति अधिक संवेदनशील और सम्मानजनक दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रेरित करता है। यह त्योहार न केवल महिलाओं की जैविक प्रक्रियाओं का सम्मान करता है, बल्कि हमारे जीवन में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को भी रेखांकित करता है। रज पर्व हमें यह सिखाता है कि शारीरिक परिवर्तन और प्राकृतिक प्रक्रियाओं का सम्मान किया जाना चाहिए और उन्हें समाज में एक सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ अपनाया जाना चाहिए।

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