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पुरुष घर के काम क्यों नहीं करते?

घर के काम का विभाजन और इसके प्रति दृष्टिकोण सदियों से समाज में चर्चा का विषय रहा है। भारतीय समाज में, विशेष रूप से, घर के कामों को आमतौर पर महिलाओं की जिम्मेदारी माना जाता है। पुरुषों द्वारा घर के काम न करने के पीछे कई कारक हैं।

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Srishti Jha
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Image credit: Salon.Com

Why don't men do household chores?: घर के काम का विभाजन और इसके प्रति दृष्टिकोण सदियों से समाज में चर्चा का विषय रहा है। भारतीय समाज में, विशेष रूप से, घर के कामों को आमतौर पर महिलाओं की जिम्मेदारी माना जाता है। यह विचारधारा न केवल परिवारों के भीतर बल्कि व्यापक सामाजिक ढांचे में भी गहरी जड़ें जमाए हुए है। पुरुषों द्वारा घर के काम न करने के पीछे कई कारक हैं, जिनमें सामाजिक, सांस्कृतिक और व्यक्तिगत मान्यताएँ शामिल हैं। यहां हम इन कारणों का विश्लेषण करेंगे और समझेंगे कि कैसे ये धारणाएँ हमारे समाज को प्रभावित करती हैं।

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पुरुष घर के काम क्यों नहीं करते?

1. सांस्कृतिक और पारंपरिक मान्यताएँ (Cultural and traditional beliefs)

भारतीय समाज में, पारंपरिक मान्यताओं और रीति-रिवाजों ने घर के कामों के वितरण को प्रभावित किया है। ऐतिहासिक रूप से, समाज ने पुरुषों और महिलाओं के लिए विशिष्ट भूमिकाएँ निर्धारित की हैं। पुरुषों को पारिवारिक भरण-पोषण करने वाला और महिलाओं को हाउसवाइफ के रूप में देखा जाता है। यह मानसिकता लड़कों और लड़कियों दोनों को बचपन से ही सिखाई जाती है, जिससे लड़कियों को घर के कामों में प्रशिक्षित किया जाता है और लड़कों को इससे अलग रखा जाता है। परिणामस्वरूप, बड़े होकर पुरुषों को घर के काम करना न केवल अनावश्यक बल्कि अवांछनीय भी लगता है।

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2. जेंडर आधारित भूमिकाएँ और समाजिक संरचना

पुरुषों को मजबूत, बाहरी दुनिया का सामना करने वाला माना जाता है, जबकि महिलाओं को देखभाल करने वाली और परिवार के घरेलू दायित्वों का निर्वाह करने वाली के रूप में देखा जाता है। इस प्रकार की धारणाएँ न केवल परिवारों के भीतर बल्कि कार्यस्थलों और अन्य सामाजिक संस्थानों में भी देखी जा सकती हैं। जेंडर आधारित भूमिकाओं का निर्धारण और उनका पालन हमारे समाज में गहराई से बसा हुआ है। पुरुषों को घरेलू कामों में भागीदारी न करने का सीधा संबंध समाज द्वारा निर्धारित पारंपरिक मर्दानगी के मानदंडों से भी है। 

3. शिक्षा और सोसायटी का प्रभाव 

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बच्चों को उनकी प्रारंभिक अवस्था में ही जेंडर आधारित भूमिकाओं के प्रति अवगत कराया जाता है। लड़कों को बाहर खेलने, साहसिक गतिविधियों में भाग लेने और करियर के प्रति केंद्रित रहने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। वहीं, लड़कियों को घरेलू कार्यों में रुचि दिखाने और उन्हें सीखने के लिए प्रेरित किया जाता है।

4. कार्य-जीवन संतुलन और दबाव (Work life balance and stress)

आधुनिक समाज में, पुरुषों पर परिवार के भरण-पोषण का दबाव बढ़ता जा रहा है। वे अक्सर लंबे वर्क आवर और करियर की बढ़ती मांगों का सामना करते हैं, जिससे वे घर के कामों में समय नहीं दे पाते है। लेकिन महिलाएं भी आजकल घर तथा ऑफिस दोनों की जिम्मेदारियां संभालती हैं, लेकिन सामाजिक अपेक्षाओं के कारण, महिलाओं को दोनों क्षेत्रों में कुशलता से संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता होती है, जबकि पुरुष अक्सर घरेलू जिम्मेदारियों से छूट जाते हैं।

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5. परिवर्तन के आसार (Chances of change)

हालाँकि, नई पीढ़ी के पुरुष अधिक खुले विचारों वाले होते जा रहे हैं और घरेलू कार्यों में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए तैयार हो रहे हैं। कई प्रकारों मे सामाजिक आंदोलनों आदि ने भी इस बदलाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वे लिंग समानता और पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए समान जिम्मेदारियों की आवश्यकता के बारे में जागरूकता बढ़ा रहे हैं।

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