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बदलते भारत में महिला अधिकारों की लड़ाई: चुनौतियाँ और आशाएं

महिलाएं किसी भी समाज और देश का अभिन्न अंग होती हैं। इनकी ग्रोथ पूरे परिवार, समाज और देश की ग्रोथ होती है लेकिन फिर भी हमारे देश में मर्दों के मुकाबले महिलाओं का विकास उतना तेजी से नहीं हो रहा है।

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Rajveer Kaur
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Women

(Image Credit: Adobe Stock, Rehab India Foundation)

Challenges And Hopes Of Woman In Transforming India: महिलाएं किसी भी समाज और देश का अभिन्न अंग होती हैं। इनकी ग्रोथ पूरे परिवार, समाज और देश की ग्रोथ होती है लेकिन फिर भी हमारे देश में मर्दों के मुकाबले महिलाओं का विकास उतना तेजी से नहीं हो रहा है। भारत की बात की जाए तो देश का एक हिस्सा जहां पर महिलाओं के बेसिक राइट्स तो उन्हें मिल गए हैं। अब उनकी लड़ाई एक स्टेप आगे चली गई है लेकिन वहीं एक हिस्सा ऐसा भी है जहां पर आज भी आजादी के 75 सालों के बाद महिलाएं सामान्य हकों के लिए लड़ रही हैं। उन्हें बेसिक एजुकेशन और अधिकारों के लिए लड़ना पड़ रहा है तो आईए जानते हैं कि बदलते भारत में कैसे महिलाओं अपने अधिकारों के लिए लड़ रही हैं और उन्हें क्या चुनौतियों का सामना पड़ रहा है? और ऐसे में क्या आशाएं उन्हें दिख रही हैं-

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बदलते भारत में महिला अधिकारों की लड़ाई: चुनौतियाँ और आशाएं

सबसे पहले अगर हम चुनौतियों की बात करें तो आज भी भारत देश में महिलाएं चुनौतियों से भरी पड़ी हैं। आज की महिला पूरी तरह से आजाद है लेकिन उस आजादी में भी वह खुलकर सांस नहीं ले पा रही है।  उसे किसी न किसी तरीके से कैद करने की कोशिश की जाती है। अगर आज की महिला पढाई के बाद जॉब कर रही है और फाइनेंशली इंडिपेंडेंट है लेकिन फिर भी वह अपने डिसीजन खुद नहीं ले पाती है। घर से ऑफिस जाते समय उसे अपनी सुरक्षा का डर रहता है। उसके साथ कभी भी किसी भी मोड़, गली और नुक्कड़ में रेप, छेड़छाड़ या फिर एसिड अटैक जैसी घटनाएं हो सकती हैं। वर्कप्लेस पर हरासमेंट एब्यूज बहुत आम है। इसके बारे में ज्यादा बात भी नहीं की जाती है। महिलाओं को मर्दों के मुकाबले कम पे किया जाता है। इसके साथ ही राजनीति में महिलाओं की भागीदारी भी बहुत कम है। आज की युवा महिला लीडर बहुत कम उभर कर आ रही हैं। यह हम उन जगहों की बात कर रहे हैं जहां पर महिलाओं को बेसिक राइट्स मिले हुए हैं-

आज भी भारत के बहुत सारे हिस्से ऐसे हैं जहां पर औरतें अनपढ़ है। उन्हें पढ़ने नहीं दिया जाता है। इसके उल्ट उनसे घर के काम उनसे करवाए जाते हैं। पानी लेने के लिए उन्हें मीलों दूर तक चलना पड़ता है। उनके पास डिजिटल लिटरेसी नहीं है। वे अपने घरों में फैसला नहीं ले सकती हैं। आज भी उनके ऊपर मर्दों का दबदबा है। दहेज प्रथा और घरेलू हिंसा उनके साथ आम है। अगर घर में बेटी पैदा हो जाए तो उसे स्वीकार नहीं किया जाता है या फिर उसे जन्म से पहले ही मार दिया जाता है। 

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आशाओं के रूप में भी हमारे पास ऐसी बहुत सारी घटनाएं हैं जो यह शो करती हैं कि आने वाले समय में महिलाओं की दशा सुधर सकती है जैसे अभी महिलाओं की तरफ से पीरियड लीव का भी मुद्दा उठाया जा रहा है। इसके साथ ही इक्वल पे पर भी बहुत बड़ी बहस चल रही है। इसके साथ ही अभी ऐसी बहुत सारी घटनाएं भी है जो महिला सशक्तिकरण की तरफ इशारा करती है जैसे इस बार की 26 जनवरी परेड में 'नारी शक्ति' को हम सब ने देखा। साथी जब देश के सबसे बड़े प्रोजेक्ट जैसे इसरो की तरफ से लांच किए गए जिनमें से चंद्रयान-3 भी शामिल है। इसमें 54 महिला इंजीनियर और साइंटिस्ट्स ने सीधे रूप से काम किया। सरकार की तरफ से तरफ से  वूमेन रिजर्वेशन बिल भी को भी पास किया गया जो भी महिलाओं की राजनीति में भागीदारी बढ़ाने की तरफ इशारा करता है। 

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