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कैसे होता है मर्दों में Toxic Masculinity का संचार?

भले ही यह शब्द हम आज इस्तेमाल कर रहे हैं लेकिन हमारे समाज में टॉक्सिक मैस्क्युलिनिटी सदियों से चलती आ रही हैI फर्क बस इतना है कि आज लोग इस बारे में खुलकर बात कर रहे हैंI लेकिन क्यों आज भी हम इस अवधारणा में जकड़े हुए हैं?

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Sukanya Chanda
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How Does Toxic Masculinity Spread Among Men? (Image credit- The Guardian)

How Does Toxic Masculinity Spread Among Men: टॉक्सिक मैस्क्युलिनिटी पितृसत्तात्मक समाज के अनुचित मानतंड है जिसके बलबूते हम अपने समाज के लड़कों को गलत शिक्षा देते हैI परिणामस्वरूप उनका वैल्यू सिस्टम भी गलत विचारधारा से घिरा हुआ रहता हैI यह व्यवहार एक ज़हर की भांति होती है जो किसी एक इंसान से पूरे परिवार एवं समाज में फैलता ही रहता है और दुख की बात यह है कि इसका परिणाम न केवल लड़कियों को बल्कि लड़कों को भी भुगतना पड़ता है क्योंकि टॉक्सिक मैस्क्युलिनिटी एक ऐसे पुरुष की व्यक्तित्व को दर्शाती है जिसके जैसे बनने से आपके अंदर की इंसानियत खत्म हो जाती है और आप खुलकर जी नहीं पातेI 

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आखिर क्या कारण है टॉक्सिक मैस्क्युलिनिटी का

सामाजिक मानदंड

हमारे समाज ने ही लड़कों से ऐसी अवास्तविक अपेक्षाएं लगाकर रखी है कि जिसे पूरा करते-करते लड़के भी इसके झांसे में आ जाते है और ऐसा करने वाले केवल पुरुष ही नहीं बल्कि इन सब से सहमत महिलाएं है क्योंकि लड़का हो या लड़की उन्हें बचपन से ही लैंगिक असमानता का पाठ पढ़ाया जाता है कि कौन से कार्य लड़कों के लिए और कौन से लड़कियों के लिए सूटेबल हैI इसलिए चाहे लड़कियां कितना भी आगे क्यों ना बढ़ जाए आज भी लड़के 'लड़कियों का काम' करने में शर्माते हैI 

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उनकी परवरिश

किसी भी बच्चे की पहली शिक्षा उसके परिवार से होती है उसके माता-पिता उसे क्या सिखाते हैं और वह क्या देखता है यदि वह अपने पिता को अपनी मां के साथ दुर्व्यवहार करने देखे और उसे यह सिखाया जाए कि लड़कों को सबसे ऊपर रहना चाहिए और सबको समान रूप से इज्जत देने की जगह डोमिनेंट बनना चाहिए तो क्या उसमें भी गलत बातों का संचार नहीं होगा? शायद वह भी अपनी पत्नी के साथ ऐसा ही व्यवहार करे या अपने बेटे को ऐसी ही सीख देंI 

मीडिया का इनफ्लुएंस

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जब हम समाज की बात करते है तो इसमें मीडिया भी शामिल है चाहे वह फिल्म हो या कोई शो वहां पर लड़कों की इमेज अलग ही दिखाई जाती है कि एक लड़का तभी आकर्षक लगता है जब उसकी अच्छी खासी बॉडी हो, वह सबसे लड़ सके उन्हें मार सके और केवल उसका ही नेतृत्व होI फिट रहना गलत नहीं लेकिन अवास्तविक बॉडी इमेज लड़कों को भ्रमित कर सकती है और मारपीट कर दूसरों की इज्जत हासिल नहीं की जाती, इज्जत तो एक दूसरे को बराबर सम्मानपूर्वक ट्रीट करने से मिलती हैI 

अवास्तविक स्टैंडर्ड

यदि आप इंसान हैं तो आप गलती अवश्य करेंगे आप अपनी गलतियों को सुधारेंगे भी, उन्हें कबूल करने की हिम्मत भी रखेंगे और यदि आपको चोट पहुंचे तो आप रोएंगे भीI यह सब तो वास्तविक है ना? लेकिन लड़कों को इसकी इजाज़त नहीं क्योंकि हमारे पितृसत्तात्मक समाज में ऐसे व्यवहार लड़कों को कमजोर बनाती है और लड़के कमजोर नहीं पड़ सकते! कमजोरी तो लड़कियों की निशानी है इसलिए यदि कोई लड़का रोता है तो उसे कहा जाता है कि "लड़कियों के जैसे क्यों रो रहे हो?" क्योंकि वह पुरुष है तो वह किसी लड़की के सामने झुक नहीं सकता लेकिन समाज भूल जाता है कि पुरुष एक इंसान ही है और इंसान की प्रकृति है भावनाओं को महसूस करना और जरूरत पड़ने पर मदद मांगनाI

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कमजोर पड़ने का डर

इन सबके चलते कोई भी मर्द अपनी भावनाओं को या फिर अपने हालातो को किसी के साथ भी बांटने से डरता है क्योंकि उन्हें यह डर है कि यदि वह किसी से अपनी बातें शेयर करेंगे तो वह 'कमजोर' दिखेंगे और मर्द को तो दर्द नहीं हो सकताI इन सब के चलते वह अपनी गलतियों को समझने की क्षमता भी खो बैठते हैं और उन्हें स्वीकारना तो दूर की बात क्योंकि यदि वह अपनी गलतियों को अपनाएंगे तो वह 'कमजोर' पड़ सकते हैI यदि वह अपने अंदर चल रहे इस बवंडर को किसी से ना भी बाटे लेकिन यह दर्द उन्हें अंदर ही अंदर खा जाएगी जिससे उनकी मानसिक स्थिति दुर्बल पड़ सकती है और इसका असर उसके प्रियोजनों पर भी हो सकता हैI 

असमानता की सोच

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टॉक्सिक मैस्क्युलिनिटी आज लैंगिक असमानता का सबसे बड़ा कारण है क्योंकि जिस समाज में पुरुष अपने आसपास महिलाओं को समान अवसर देने से कतराते है उन्हें अप्रिशिएट करने से डरते है उस समाज में लड़कियों को अपने योग्यता सिद्ध करने के लिए क्या कुछ नहीं करना पड़ताI यदि किसी वर्कप्लेस में महिला आपसे उच्च स्तर पर हो या फिर आपकी बीवी आपसे ज्यादा कमाए या फिर आपसे यह आशा की जाए कि आप घर संभाले तो यह तो किसी पुरुष के आन के विरुद्ध है! लेकिन असली मर्द वही जो जिम्मेदारियां बांटना जाने, जो अपने पार्टनर को आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करना जानेI जब हम सब इस टॉक्सिक मैस्क्युलिनिटी के चंगुल से निकलेंगे तभी समाज में असली बदलाव आएगाI

toxic Masculinity महिला बॉडी इमेज पितृसत्तात्मक समाज
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