Karwachouth in India: करवा चौथ भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख और विशेष व्रत है, जिसे मुख्य रूप से महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए करती हैं। यह व्रत विशेष रूप से उत्तर भारत में धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन अब पूरे देश में और यहां तक कि विदेशों में भी इसे बड़े उत्साह के साथ मनाया जाने लगा है। करवा चौथ व्रत का महत्त्व न केवल धार्मिक है, बल्कि यह पति-पत्नी के बीच प्रेम, समर्पण और विश्वास का प्रतीक भी है।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
करवा चौथ का धार्मिक महत्व सिर्फ पति की लंबी उम्र की कामना तक सीमित नहीं है, बल्कि यह देवी पार्वती और भगवान शिव के साथ भी जुड़ा हुआ है। मान्यता है कि इस दिन माता पार्वती ने भगवान शिव से अपने पति की लंबी उम्र की कामना की थी, और इसीलिए विवाहित महिलाएं इस दिन माता पार्वती का आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।
सरगी और व्रत का महत्त्व
सरगी करवा चौथ व्रत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसे सूर्योदय से पहले सास अपनी बहू को देती है, जिसमें मिठाइयाँ, फल, मेवे, और अन्य पोषक आहार होते हैं। सरगी का उद्देश्य यह होता है कि महिला पूरे दिन ऊर्जा से भरपूर रहे और व्रत को अच्छे से निभा सके।
करवा चौथ का व्रत पति-पत्नी के रिश्ते में प्रेम और समर्पण को गहरा करने का प्रतीक है। इस व्रत के पीछे एक मान्यता यह भी है कि महिलाएं अपने पति के लिए दीर्घायु और स्वास्थ्य की प्रार्थना करती हैं, ताकि उनका दांपत्य जीवन सुखमय रहे।
करवा चौथ व्रत की पूजा विधि
करवा चौथ का व्रत पूजा विधि और रीति-रिवाजों के साथ जुड़ा होता है। इस दिन महिलाएं अपने सुहाग की लंबी उम्र के लिए पूरे दिन उपवास रखती हैं और संध्या के समय करवा चौथ की पूजा करती हैं। पूजा के दौरान मिट्टी के करवा (मटके) में जल भरकर भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश जी की पूजा की जाती है। महिलाएं इस दौरान करवा चौथ की कथा भी सुनती हैं, जो इस व्रत की पौराणिक महत्ता को दर्शाती है। पूजा के बाद चंद्रमा के उदय होने पर उसे जल अर्पित किया जाता है और पति द्वारा पानी पिलाने के बाद ही व्रत तोड़ा जाता है।
2024 में करवा चौथ व्रत की तिथि
2024 में करवा चौथ का व्रत 20 अक्टूबर, रविवार को रखा जाएगा। यह व्रत हर साल कार्तिक मास की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है, जो अश्विन मास के शुक्ल पक्ष में आता है। इस दिन महिलाएं सूर्योदय से पहले सरगी (सास द्वारा दी गई विशेष भोजन सामग्री) ग्रहण करती हैं और दिन भर निर्जला व्रत रखती हैं। वे पूरे दिन जल और अन्न ग्रहण नहीं करतीं और चंद्रमा के दर्शन के बाद ही व्रत का पारण करती हैं।