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Myths and Truths Related to the LGBTQ+ Community: LGBTQ+ (लेस्बियन, गे, बाइसेक्शुअल, ट्रांसजेंडर, क्वीयर/क्वेश्चनिंग और अन्य) समुदाय को लेकर समाज में कई तरह के मिथक (ग़लत धारणाएँ) प्रचलित हैं। इन मिथकों के कारण समाज में भेदभाव, गलतफहमियाँ और पूर्वाग्रह बढ़ते हैं। इस लेख में, हम LGBTQ+ समुदाय से जुड़े कुछ प्रमुख मिथकों और उनकी वास्तविक सच्चाई को समझेंगे।
LGBTQ+ समुदाय से जुड़े मिथक और सच्चाई
1. LGBTQ+ होना एक "चयन" (च्वाइस) है
सच्चाई
LGBTQ+ होना किसी का व्यक्तिगत चयन नहीं होता, बल्कि यह जैविक, मानसिक और भावनात्मक कारकों से प्रभावित होता है। जैसे कोई व्यक्ति अपनी त्वचा का रंग या जन्म स्थान नहीं चुनता, वैसे ही कोई अपनी यौनिकता (Sexuality) या लैंगिक पहचान (Gender Identity) भी नहीं चुनता।
2. समलैंगिकता (Homosexuality) अप्राकृतिक है
सच्चाई
समलैंगिकता पूरी तरह से प्राकृतिक है और यह केवल मनुष्यों तक सीमित नहीं है। शोध बताते हैं कि 1,500 से अधिक प्रजातियों में समलैंगिक व्यवहार देखा गया है। यह जैविक रूप से सामान्य है और इसे विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने 1990 में मानसिक बीमारी की सूची से हटा दिया था।
3. LGBTQ+ लोग मानसिक रूप से अस्वस्थ होते हैं
सच्चाई
LGBTQ+ लोग मानसिक रूप से उतने ही स्वस्थ होते हैं जितने कि अन्य लोग। हालांकि, समाज में मौजूद भेदभाव, पारिवारिक अस्वीकार्यता और सामाजिक दबाव के कारण वे अवसाद (Depression) और चिंता (Anxiety) जैसी मानसिक समस्याओं से अधिक प्रभावित हो सकते हैं।
4. ट्रांसजेंडर लोग भ्रमित होते हैं या यह एक फैशन ट्रेंड है
सच्चाई
ट्रांसजेंडर लोग भ्रमित नहीं होते, बल्कि वे अपनी पहचान को लेकर स्पष्ट होते हैं। यह कोई फैशन ट्रेंड नहीं है, बल्कि एक वास्तविक लैंगिक पहचान है। कई देशों में ट्रांसजेंडर पहचान को कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त है।
5. LGBTQ+ लोग बच्चों के लिए खतरा हैं
सच्चाई
यह एक बहुत ही खतरनाक और गलत धारणा है। शोध बताते हैं कि LGBTQ+ लोग किसी भी अन्य व्यक्ति की तरह ही नैतिक होते हैं और उनके खिलाफ ऐसा कोई प्रमाण नहीं है जो यह साबित करता हो कि वे बच्चों के लिए किसी भी प्रकार का खतरा हैं।
6. समलैंगिक माता-पिता के बच्चे भी LGBTQ+ ही होंगे
सच्चाई
किसी व्यक्ति की यौनिकता उनके माता-पिता की यौन पहचान से निर्धारित नहीं होती। शोध बताते हैं कि समलैंगिक माता-पिता के बच्चों में भी विषमलैंगिक (Straight) होने की उतनी ही संभावना होती है जितनी कि किसी अन्य परिवार में।
7. LGBTQ+ अधिकारों की मांग "पश्चिमी संस्कृति" से प्रभावित है
सच्चाई
इतिहास बताता है कि समलैंगिकता और ट्रांसजेंडर पहचान प्राचीन काल से विभिन्न संस्कृतियों में मौजूद रही हैं। भारत में खजुराहो के मंदिरों की मूर्तियों में समलैंगिक प्रेम के चित्रण मिलते हैं, और ट्रांसजेंडर समुदाय (हिजड़ा समुदाय) को ऐतिहासिक रूप से सम्मान प्राप्त था।
8. LGBTQ+ लोगों का सामान्य जीवन नहीं हो सकता
सच्चाई
LGBTQ+ लोग भी बाकी सभी लोगों की तरह एक सामान्य जीवन जी सकते हैं। वे शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं, नौकरी कर सकते हैं, रिश्ते बना सकते हैं, और समाज में योगदान दे सकते हैं। उनकी यौन पहचान उनके अन्य कौशलों और क्षमताओं को प्रभावित नहीं करती।