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जहां एम्प्लोयी को अधिक काम के लिए सराहा जाता हैं, वहीं उसका वर्क-लाइफ बैलन्स के खतरे को अक्सर नजरंदाज किया जाता हैं। आज के वर्किंग कल्चर में जहां एक्स्ट्रा वर्क को प्रमोट किया जाता हैं, वर्किंग hours के बाद एम्प्लोयी को एक्स्ट्रा बर्डन दिया जाता हैं, यह एक इंसान के मानसिक स्वास्थ्य और परिवार को समय देने को नजरंदाज करने जैसा ही हैं। इसलिए Right to Disconnect Bill को पास करने की मांगे उठाई जा रही हैं, जिससे वर्किंग hours के बाद एम्प्लोयी अपने काम को बंद करके सिर्फ अपने परिवार और वेल-बीइंग पर ध्यान दें न कि ऑफिस का बर्डन सर पर लादे चलता रहें।
Right To Disconnect: काम के बाद ‘नो रिप्लाई’ कहने का कानूनी अधिकार
क्या भारत राइट टू डिसकनेक्ट बिल को देगा मंजूरी ?
केरल ऐसा राज्य हैं जहां एम्प्लोयी के इस अधिकार को लेकर विधानसभा में बिल पेश किया गया, जो बिल अक्सर विदेशी कानून में हकीकत में लागू हैं। सबसे बाद प्रश्न हैं, कि क्या कंपनी इसके पक्ष में होगी ?
क्या भारत के मंत्री जो यह उद्घोषणा करते हैं कि एक दिन में 18 hours की शिफ्ट होनी चाहिए, वहाँ यह कानून होना कि वर्किंग आवर्स के बाद कर्मचारी अपने काम की जगह सिर्फ अपने परिवार और वेल-बीइंग पर ध्यान दें? अपने वेल-बीइंग और अपने परिवार को समय देना एक मानव अधिकार हैं पर आज के कल्चर जो सिर्फ काम को prority देता हैं, कैसे एक मानव के निजी जीवन के अधिकार को भूल सकता हैं?
कंपनी में अक्सर कर्मचारी को वर्किंग आवर्स के बाद भी अपने बॉस या बड़े अधिकारी से कॉल या मैसेज आते हैं, ऐसे में एम्प्लोयी द्वारा उन्हें इग्नोर करने पर उन्हें जॉब से निकालने या काम पर ध्यान न देने के बहाने बता कर डांट पड़ती हैं।
अधिकतर कंपनी में कुछ एम्प्लोयी जो उतनी ही सैलरी मे अधिक काम करते हैं कंपनी उन्हें जो वर्किंग आवर्स में पूरा काम करके अपने निजी समय में अपना जीवन इन्जॉय करते हैं, का उदाहरण देकर उन्हें प्रेरणा लेने को कहती हैं, जो अक्सर मानसिक तनाव भी पैदा करता हैं। लेकिन भारत एक्स्ट्रा काम और इस कल्चर जो एक्स्ट्रा एफर्ट को प्रमोट करता हैं सदैव सराहता हैं, तो ऐसे में क्या कंपनी अपने एम्प्लोयी के लिए इस बिल को लागू होने देंगी क्या ?
क्यों हैं राइट टू डिसकनेक्ट बिल इतना आवश्यक ?
राइट टू डिसकनेक्ट बिल सिर्फ एक बिल नहीं एक न्याय की उद्घोषणा हैं कि मानसिक स्वास्थ्य और परिवार के साथ समय देना भी आज के समय में जरूरी हैं। जहां एम्प्लोयी(Employee)को ऐसे मजदूर की तरह ट्रीट किया जाता हैं जो 24 घंटे उपलब्ध हो वह उसके मानव अधिकार (Human Rights) का शोषण ही हैं, देखा जाएं तो कंपनी इसे सही बताती हैं की यह उनके एम्प्लोयी का उनके प्रति रुझान और समर्पण बताता हैं, पर वास्तव में यह एम्प्लोयी के लिए frustation होता हैं, और उसे सिर्फ इसलिए चुप होता पड़ता हैं क्योंकि यह आर्थिक स्रोत हैं और उसे इसकी आवश्यकता होती हैं।
जब यह बिल पारित हो जाएगा तो एम्प्लोयी वर्किंग आवर्स के बाद डिसकनेक्ट हो पाएंगे या अपने निजी जीवन को सपोर्ट दे पाएंगे। यह उनके मानसिक स्वास्थ्य और कंपनी और एम्प्लोयी के बेहतर Work-Life Balance दोनों के लिए आवश्यक हैं।
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