The Burden on Working Women: भारतीय समाज में वर्किंग महिला होना बहुत मुश्किल है क्योंकि आपसे बहुत सारी अपेक्षाएं की जाती हैं। इसके साथ ही यह भी शर्त रखी जाती कि अगर आपके घर से बाहर जाकर काम करना है तो घर के काम भी संभालने पड़ेंगे। ऐसे में अगर परिवार सपोर्टिव मिल जाए तो यह सफर आसान भी हो जाता है। वर्किंग महिलाएं अपनी पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ के बीच में स्ट्रगल करती हैं जिसके बारे में कोई बात नहीं करता है। उनके लिए जितने जरूरी परिवार और बच्चे होते हैं, उतना ही प्यारा उनके लिए करियर भी होता है लेकिन इस बात को कोई नहीं समझता है। चलिए जानते हैं कि वर्किंग महिलाओं के सामने क्या चैलेंज आते हैं जिनके बारे में कोई बात नहीं करता है-
जानिए वर्किंग महिलाओं के क्या स्ट्रगल हैं?
बर्नआउट
वर्किंग महिलाएं अक्सर ही बर्नआउट का शिकार हो जाती है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उनके ऊपर जॉब का प्रेशर होता है और घर वालों की भी अपेक्षाएं होती हैं। इसमें ऐसा लगने लग जाता है कि आप किसी काम के नहीं है या फिर आप में कोई एनर्जी बची नहीं है। आप खुद को खाली महसूस करना लग जाते हैं। इस कारण आपकी नींद भी पूरी नहीं होती है और आप हमेशा गुस्से में और उदास रहते हैं। ऐसे में आपको बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है। आप अपने इमोशंस को भी मैनेज नहीं कर पाते और इस स्ट्रगल के बारे में कोई बात नहीं करता। अक्सर महिलाओं को लेजी या फिर कामचोर कह दिया जाता है।
वर्क लाइफ में कठिनाई
वर्क लाइफ में महिलाओं को बहुत सारी परेशानियां आती हैं जिसके बारे में वह किसी से बात नहीं करती और इन परेशानियों के बारे में कोई दूसरा भी बात नहीं करना चाहता। परिवार वालों को यह चिंता होती है कि उनकी बहू या फिर मदर घर के सारे काम करे और उनकी देखभाल करे। वहीं ऑफिस में किसी को आपकी पर्सनल लाइफ से कोई भी फर्क नहीं पड़ता है। इस कारण महिलाएं खुद स्ट्रेस में रहने लग जाती है।
दूसरों की देखभाल
महिलाओं को हमेशा ही ऐसे देखा जाता है कि दूसरों की देखभाल करना उनकी जिम्मेदारी है। घर में कोई बीमार हो जाए या फिर किसी को कुछ जरूरत पड़ जाए तो हमेशा महिला की तरफ ही देखा जाता है. आज भी कुछ घर ऐसे हैं जहां पर एक पानी के गिलास के लिए महिला की तरफ देखा जाता है, घर के बाकी काम करना तो दूर की बात है। ऐसे में महिलाएं वर्क और परिवार के बीच में बैलेंस नहीं बना पाती और कई बार अपने करियर को ही दाव पर लगा देती हैं।
इमोशनल सपोर्ट की कमी
वर्किंग महिलाओं को इमोशनल सपोर्ट नहीं मिलता। उन्हें कोई मेंटल सपोर्ट नहीं मिलता। परिवार वाले कभी यह नहीं कहते हैं कि तुमहें काम पर ध्यान देना चाहिए और जॉब वे संभाल लेंगे बल्कि उसे ताने सुनाए जाते हैं कि यह एक सेल्फिश मदर है या फिर इसे अपने परिवार की कोई चिंता नहीं। यह तो बाहर घूमने के लिए जॉब कर रही है। इमोशनल सपोर्ट की कमी के कारण महिलाएं मेंटल हेल्थ समस्याओं से गुजर रही होती हैं। इस कारण महिलाएं अपने करियर में भी ग्रोथ नहीं कर पाती।
गिल्ट
महिलाओं के मन में गिल्ट डाला जाता है कि शादी या फिर बच्चे होने के बाद भी वह जॉब कर रही हैं। महिलाओं को तो अपना घर संभालना चाहिए। ऐसी बातों के कारण महिलाओं को गिल्ट आने लग जाता है कि वह कुछ गलत कर रही हैं या फिर वह सेल्फिश हैं लेकिन समाज को 'सेल्फिश वूमेन' शब्द को भी दोबारा से डिफाइन करने की जरूरत है। अगर आप 'खुद बारे में सोचने को' या फिर 'अपनी वेल बीइंग को प्राथमिकता देने को' सेल्फिश बोल रहे हैं तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है। हर महिला को सेल्फिश होना चाहिए। इसमें कुछ भी गलत नहीं है। अगर महिलाएं अपने बारे में नहीं सोचेंगी तो उनके बारे में कोई और भी नहीं सोचेगा।