Things School Should Have Taught Us: एक बच्चे की जिंदगी की नींव के लिए दो लोग जिम्मेदार होते हैं, पैरेंट्स और स्कूल। पैरेंट्स बच्चे को स्कूल शुरू होने से पहले सीखते हैं और स्कूल बच्चे को बाकी की चीज़ों के बारे में जानकारी देता है। स्कूल बच्चों को पढ़ाई के साथ साथ बाहरी जिंदगी के लिए तैयार करने के लिए होता है लेकिन हमारे देश का एजुकेशन सिस्टम इस पर अमल नहीं कर पाया। जानिए स्कूल हमें पढ़ाई के अलावा क्या सीखा सकता था लेकिन सीखा नहीं पाया।
स्कूल हमें क्या क्या सीखा सकता था: Things School Should Have Taught Us
1. पीरियड्स नॉर्मल है
पीरियड्स को लेकर आज तक हमारे समाज में कई अंधविश्वास और धारणाएं उपस्थित हैं। पीरियड्स के बारे में एक लड़की को स्कूल में इन्फॉर्म किया जाता है लेकिन पीरियड्स के बारे में लड़कियों को अलग से बुलाया जाता है और लड़को से शेयर न करने को कहा जाता है। हालांकि, स्कूलों में पीरियड्स के बारे में दोनों लड़का और लड़की को बताना और एजुकेट करना चाहिए क्योंंकि इसके बारे में जानकारी होना नॉर्मल और जरूरी होता है और इससे शरमाने वाली कोई बात नहीं है।
2. सेक्स एजुकेशन
स्कूल ने सेक्स का नाम सुनकर ही सारे टीचर्स ऐसे रिएक्ट करते हैं जैसे उन्हें प्ता ही नहीं की यह क्या होता है। सेक्स बिल्कुल सामान्य प्रक्रिया है और इसके बारे में शरमाने की कोई जरूरत नहीं है। सेक्स के बारे में बच्चों को अँधेरे में रखने की वजह से यह बच्चों में इसके बारे में जानने की उत्सुकता बढ़ाता है जिसकी वजह से उन्हें सही ज्ञान नहीं मिल पाता। सेक्स को बच्चों से छुपाने की बजाए बच्चों को सेक्स एजुकेशन की वर्कशॉप दे और उन्हें सेफ तरीके से सेक्स करने के बारे में बताएं।
3. पढ़ाई सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं है
हमारा एजुकेशन सिस्टम, पढ़ाई, मार्क्स को इतनी अहमियत देता है की बच्चों को एक्स्ट्रा करिकुलार चीज़ों में फोकस करने पर रोका जाता है सिर्फ क्योंंकि तुम्हारे मार्क्स अच्छे नहीं हैं। जरूरी नहीं है की हर बच्चा पढ़ाई में अवल हो, हर बच्चा अलग होता है और उसमें हुनर भी अलग ही होते हैं। इसलिए किसी को फोर्स नहीं करना चाहिए क्योंकि हर एक व्यक्ति की अपनी ताकत और कमज़ोरी होती है और हमें यह समझना चाहिए।
4. जेंडर इक्वालिटी
स्कूल में जेंडर को लेकर भेदभाव होता ही है। स्कूल में लड़का लड़की के जेंडर की वजह से भेदभाव होता अक्सर देखा है। जैसे जब भी कोई किताबों का ढेर उठाना होता है तो टीचर्स लड़को को बुलाती हैं और वहीं दूसरी तरफ लड़कियों को बोर्ड साफ और सजाने को कहा जाता है। स्कूल में जेंडर के हिसाब से यह भेदभाव आगे जाकर बच्चों को इस सोच से बाहर नहीं आने देता और वह जीवन भर इससे है फॉलो करते हैं। इसलिए स्कूलों में जेंडर के हिसाब से भेदभाव नहीं होना चाहिए और सबके साथ एक जैसा सलुख करना चाहिए।
5. बड़े हमेशा सही नहीं होते
हमने स्कूलों में अक्सर देखा है, जब पैरेंट्स टीजर मीटिंग होती थी तब पैरेंट्स अक्सर टीचर्स से अपने बच्चे के बारे में कम्पलेंट करते हैं और टीचर्स बच्चे के बारे में पैरेंट्स को बताती हैं। इन दोनों की बात चीत में एक मुद्दा जो अक्सर उठता है वो होता है बच्चे के आर्गयू करके का। बल्कि सच्चाई तो यह है की अगर स्कूल यां घर में बच्चा अपना पक्ष भी रखता है तो दोनों उससे बेहस ना करने को कहते हैं। पर वो यह भुल जाते हैं की जरूरी नहीं माता पिता यां टीचर्स को सब कुछ पता हो, कई बार बच्चे को किसी विशेष टॉपिक पर ज्यादा ज्ञान हो सकता है और यह बिल्कुल ठीक है।