Famous Women Freedom Fighters Of India: हमें आजादी बहुत ही मुश्किलों से मिली है। आज हम जिस आजादी की हवा में सांस ले रहे हैं उसमें कई महान वीरों का बलिदान शामिल है। लोगों ने बहुत ही बहादुरी से अंग्रेजों का डटकर सामना किया और भारत के आजादी की लड़ाई लड़ी। इसमें औरतों की भी अहम भूमिका रही। बहुत सी साहसी महिलाओं ने ब्रिटिश रूल के खिलाफ अपनी आवाज उठाई और देशभक्ति का परिचय दिया। आइये जानते हैं भारत की इन महिलाओं के बारे में जिन्होंने भारत की आजादी में अपना अमूल्य योगदान दिया-
भारत की कुछ प्रसिद्द महिलाएं जिनका देश की आज़ादी में रहा अहम योगदान
1. रानी लक्ष्मीबाई
झांसी की रानी नाम से प्रसिद्ध रानी लक्ष्मीबाई बहुत ही महान योद्धाओं में से एक हैं। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ अपना साहस, देशभक्ति, आत्मसम्मान और ताकत दिखाई। 1857 के रिवोल्ट में झांसी की रानी की अहम भूमिका रही। साथ ही साथ यह बाकी महिलाओं के लिए भी प्रेरणा बनी।
2. सरोजिनी नायडू
सरोजिनी नायडू भारत की प्रसिद्ध महिलाओं में से एक हैं। इन्हें नाइटेंगल ऑफ़ इंडिया भी कहा जाता है। वह एक उत्कृष्ट कवयित्री, एक महान स्वतंत्रता सेनानी और एक उम्दा ओरेटर भी थीं। 1925 में उनको इंडियन नेशनल कांग्रेस का प्रेसिडेंट भी नियुक्त किया गया था। इन्होंने खिलाफत मूवमेंट और क्विट इंडिया मूवमेंट में बढ़-चढ़कर योगदान दिया। साथ ही साथ इन्होंने औरतों के राइट्स और उनकी पढ़ाई के लिए भी बहुत काम किया।
3. बेगम हज़रत महल
बेगम हज़रत महल को अवध की बेगम भी कहा जाता है। इन्होंने भी इंडिया के फर्स्ट वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस (1857-58) में महत्वपूर्ण रोल निभाया। इन्होंने उस समय के बड़े-बड़े स्वतंत्रता सेनानी जैसे कि नाना साहेब और तात्या टोपे के साथ भी रिवोल्ट में काम किया। 1984 में भारत की सरकार ने उनके सम्मान में एक स्टांप भी जारी किया।
4. एनी बेसेंट
एनी बेसेंट एक आयरिश महिला थीं, जिन्होंने इंडियन नेशनल कांग्रेस को ज्वाइन किया और भारत के पॉलीटिकल एक्टिविटीज में अहम भूमिका निभाई। वह कांग्रेस की प्रथम महिला प्रेसिडेंट बनी। 1916 में उन्होंने इंडियन होम रूल मूवमेंट भी एस्टेब्लिश किया। उन्होंने न्यू इंडिया नामक एक अखबार भी स्टार्ट किया। साथ ही साथ कई प्रकार के विद्यालय और कॉलेजेस भी बनाएं, जैसे बनारस का सेंट्रल हिंदू कॉलेज हाई स्कूल।
5. विजया लक्ष्मी पंडित
विजय लक्ष्मी पंडित मोतीलाल नेहरू की बेटी थीं। वह कांग्रेस पार्टी की प्रेसिडेंट भी थीं। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ नॉन कोऑपरेशन मूवमेंट में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। 1940 और 1942 में वह अरेस्ट भी हुई। भारत की आजादी के बाद भी उन्होंने विदेश के कई कांफ्रेंस में जाकर भारत का नेतृत्व किया।