Story of Pilot Harita Kaur Deol: हरिता कौर देओल न केवल 1993 में भारतीय वायु सेना के लघु सेवा आयोग में शामिल होने वाली पहली सात महिलाओं में से एक थीं, बल्कि उन्होंने आईएएफ में अकेले उड़ान भरने वाली पहली महिला पायलट के रूप में इतिहास में अपना नाम भी दर्ज कराया। फ्लाइट लेफ्टिनेंट हरिता कौर देओल इंडियन एविएशन हिस्ट्री में साहस और महत्वाकांक्षा का एक शानदार उदाहरण हैं। उनकी एक ऐसी कहानी है जो कांच की छत को तोड़ देती है और बहुत सी युवा महिलाओं को बादलों के ऊपर उड़ने का सपना देखने के लिए प्रेरित करती है।
पायलट हरिता देओल की कहानी
हरिता का जन्म 1971 में चंडीगढ़ में हुआ था और वह एक आर्मी फैमिली में पली-बढ़ी थीं। उनके पिता भारतीय सेना में कर्नल थे और उन्होंने हरिता में अनुशासन और समर्पण की भावना पैदा की। हरिता को कम उम्र से ही उड़ान भरने में गहरी रुचि थी और उन्होंने अपनी पूरी शिक्षा के दौरान इस जुनून को बनाए रखा। जब 1992 में भारतीय वायुसेना ने महिला पायलटों के लिए अपने दरवाजे खोले, तो हरिता ने अटूट दृढ़ संकल्प के साथ कार्यक्रम में नामांकन करना शुरू कर दिया।
प्रशिक्षण शारीरिक और मानसिक रूप से चुनौतीपूर्ण था। हरिता और उनकी साथी महिला कैडेटों को अपने मेल कंपटीटर्स के खिलाफ अपनी ताकत का प्रदर्शन करने की आवश्यकता थी। उन्होंने बाधाओं के बावजूद अपने प्रशिक्षण में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया, एक्सिप्शनल पायलट कौशल और एविएशन के लिए जुनून दिखाया। उनके समर्पण के परिणामस्वरूप 1994 में एक उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल हुई। हरिता कौर देओल ने 22 साल की उम्र में भारतीय वायु सेना में महिलाओं के लिए एक बड़ी प्रगति की, और एक Avro HS-748 विमान का संचालन किया।
हरिता के इस पियोनियरिंग (Pioneering) कार्य ने कई महिलाओं को एविएशन करियर की आकांक्षा रखने में मदद की। उनकी कहानी एक पीढ़ी के लिए एक आदर्श बन गई, जिसने उन्हें अपने सपनों को पूरा करने और सामाजिक सीमाओं से मुक्त होने के लिए प्रेरित किया। 1996 में एक विमान दुर्घटना में उनकी ओर चालक दल के अन्य सदस्यों की मृत्यु हो गई।
हरिता कौर देओल की कहानी दृढ़ संकल्प की शक्ति और बाधाओं को तोड़ने के महत्व का प्रमाण है। वह भारतीय वायु सेना में महिला सशक्तिकरण की प्रतीक बनी हुई हैं। उन्होंने कई महिलाओं को प्रेरित किया है और उनकी कहानी यह समझाती है कि, सपनों की कोई हाइट नहीं होती आप जितने चाहे उतने बड़े सपने देख सकते हो।