First Women: महान मैथमेटिशियंस से लेकर वैज्ञानिकों और शतरंज खिलाड़ियों तक सभी सफल प्रतिभाशाली दिमागों को अपने काम के माध्यम से प्रतिभा प्राप्त करने के लिए सराहा गया है, जिसमें अधिकतम पुरुष हैं। भाग्यश्री थिप्से एक ऐसे ब्रिलियंट माइंड की हैं, जिनकी सफलता और प्रतिभा की पर्याप्त प्रशंसा नहीं की गई है।
भाग्यश्री थिप्से की जर्नी (The journey of Bhagyashree Thipsay)
इंडियन वूमेंस चैंपियनशिप का खिताब पांच बार (1985-1994) 1991 में एशियन वूमेंस चैंपियनशिप, महाराष्ट्र गौरव पुरस्कार, 1986 में पद्मश्री, 1987 में अर्जुन पुरस्कार जीतने से लेकर आखिरकार 28वीं 'YMCA नेशनल बी वूमेंस चेस चैंपियनशिप' में जीत हासिल करने तक, जहां उन्हें 'चेस ग्रैंडमास्टर' का खिताब मिला। भाग्यश्री सिर्फ 12 साल की थीं जब उन्होंने शतरंज खेलना शुरू किया था और हम सभी ने अपने भाई-बहनों और माता-पिता के साथ इस तरह की शतरंज खेली है। यह उसके पिता थे जिन्होंने उसे शतरंज खेलना सिखाया और बाद में भाग्यश्री ने उन्हें ही हरा दिया।
वह शतरंज को करियर के रूप में अपनाना चाहती थीं और इसके साथ ही उनका पहला टूर्नामेंट एनुअल सांगली टूर्नामेंट' था। बी एन इंस्पायरर के अनुसार, 12वीं कक्षा को पार करने के बाद, उन्होंने शतरंज को अपने करियर के विकल्प के रूप में लेने का फैसला किया और इसे गंभीरता से खेलना शुरू कर दिया। 1979 में, उन्होंने मद्रास नेशनल 'वूमेंस चेस चैंपियनशिप' में भाग लिया। हालांकि, इस चैंपियनशिप में दस साल से एक ही विजेता था, जिससे भाग्यश्री हार गई थी और वह आठवें स्थान पर वापस आ गई। लेकिन छह साल बाद, वह फिर से नेशनल वूमेंस चेस चैम्पियनशिप की विजेता से मिलीं और उन्हें हरा दिया।
इन प्रतियोगिताओं के बाद, वह अपने करियर के दौरान कई प्रतियोगिताओं में खेली और वह शतरंज के किसी भी ओलंपियाड से कभी नहीं चूकी। उन्होंने तब से नौ शतरंज ओलंपियाड में भारत का प्रतिनिधित्व किया है और 1986 में FIDE द्वारा ‘इंटरनेशनल वूमेंस मास्टर' खिताब जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनीं। भाग्यश्री का विवाह प्रवीण थिप्से से हुआ है, जो एक प्रसिद्ध शतरंज खिलाड़ी भी हैं और उन्होंने कई पुरस्कार जीते हैं। उनके तेज करियर विकास और शानदार प्रदर्शन ने न केवल पूरे देश को गौरवान्वित किया है, बल्कि कई महिलाओं और युवा लड़कियों को भी प्रभावित किया है।