निधी सबरवाल: एक सोच जिसने आस्था को कर्म में बदला और बनीं महिलाओं के लिए आशा की किरण

निधी सबरवाल जिन्होंने मंदिरों में चढ़े पवित्र फूलों को एक नई पहचान दी। उनका मकसद न केवल पर्यावरण की रक्षा करना है, बल्कि उन महिलाओं को सशक्त बनाना है जिनके पास सीमित अवसर हैं। आइये जानते हैं उनके बारे में अधिक-

author-image
Priya Singh
एडिट
New Update
Nidhi Sabbarwal

Nidhi Sabbarwal Inspirational Story: आज कल के समय में जहाँ पूजा-पाठ पर लोगों का भरोषा बढ़ रहा है वहीं मंदिरों में चढ़ी हुई सामग्री से पर्यावरण को गहरी छति भी पहुंच रही है। लेकिन लोग इस ओर अधिक ध्यान नही देते हैं मंदिरों से निकलने वाली सामग्री को अक्सर नदियों और जलाशयों में डाल दिया जाता है जिससे कई प्रकार की पर्यावरण सम्बंधी समस्याएं सामने आती हैं। इन्हीं समस्याओं को देखकर एक महिला ने इस सामग्री को उपयोग में लाने का सोचा और वो महिला हैं निधी सबरवाल। जिन्होंने मंदिरों की पवित्र सामग्री को एक नई पहचान दी। उनका मकसद न केवल पर्यावरण की रक्षा करना है, बल्कि उन महिलाओं को सशक्त बनाना है जिनके पास सीमित अवसर हैं। यह बातचीत उनकी प्रेरणादायक यात्रा, संघर्षों और महिलाओं के लिए उनके सपनों को उजागर करती है। उन्होंने न केवल आस्था को सम्मान दिया, बल्कि उसे उद्देश्य में बदलकर समाज को एक नई दिशा दिखाई।

Advertisment

निधी सबरवाल: एक सोच जिसने आस्था को कर्म में बदला और बनीं महिलाओं के लिए आशा की किरण

1. यह एक अलग क्षेत्र है जिसमें आप काम कर रही हैं! क्या कभी किसी ने आपको कमजोर करने की कोशिश की और आपने खुद को फिर से कैसे संभाला?

यह यात्रा चुनौतीपूर्ण भी रही और बहुत अद्भुत भी। मंदिरों में चढ़े फूलों की रीसाइक्लिंग के क्षेत्र में काम करना आसान नहीं था। कई बार लोगों ने मेरे विचार को गलत बताया और कहा कि यह कभी सफल नहीं होगा। तब मुझे भी अपने रास्ते पर शक होने लगा, लेकिन मैं खुद को हमेशा याद दिलाती रही कि मैंने अपनी कम्पनी कल्याणम की शुरुआत क्यों की थी। मंदिरों में चढ़े फूलों को फिर से उपयोग में लाना और उन महिलाओं को नया जीवन देना, जिनके पास ज्यादा मौके नहीं थे।

Advertisment

हमने जो छोटे-छोटे कदम उठाए, वे मुझे प्रेरणा देते रहे। हमारे बनाए प्रोडक्ट्स को आकार लेते देखना और महिलाओं को आत्मनिर्भर बनते देखना मेरे लिए बहुत बड़ा मोटिवेशन था। मैंने सीखा कि असफलताएं इस रास्ते का हिस्सा हैं, लेकिन अगर आपके पास जुनून, हिम्मत और अपने मकसद पर विश्वास हो, तो कोई आपको नहीं तोड़ सकता।

2. आपकी यात्रा का सबसे बड़ा टर्निंग पॉइंट कौन-सा था जिसने आपके करियर की दिशा बदल दी?

मेरे जीवन का सबसे बड़ा मोड़ वो था जब मैंने दिवाली के समय मंदिर में चढ़ी पूजा सामग्री नदियों में फेंकते देखा। गाज़ियाबाद में, जहाँ मैं बड़ी हुई, लोग मंदिर की पूजा की सामग्री सीधे हिंडन नदी में डालते थे। यह देखकर मुझे बहुत दुख हुआ, क्योंकि जो चीज़ श्रद्धा के लिए थी, वही पर्यावरण को नुकसान पहुँचा रही थी।

Advertisment

हालाँकि मुझे इस पूजा सामग्री के मैनेजमेंट से जुड़ी कोई जानकारी नहीं थी, फिर भी मैं पीछे नहीं हट पाई। यह एक छोटी शुरुआत थी, मंदिर में चढ़े फूलों को इकट्ठा करने से लेकर आज एक मिशन बन चुका है। यह सिर्फ सामग्री का उपयोग नहीं था, यह परंपरा थी, पर्यावरण की रक्षा थी और महिलाओं को सशक्त बनाना था। इसने मेरी ज़िंदगी और करियर दोनों को नया उद्देश्य दिया।

3. क्या कभी कोई ऐसा भावनात्मक पल आया जब लगा कि आपकी मेहनत सिर्फ आपके लिए नहीं, बल्कि और भी महिलाओं के लिए फ़र्क़ ला रही है?

ऐसे कई पल आए, लेकिन एक पल ने मुझे अंदर से बहुत छू लिया। एक महिला जो हमारे साथ काम करती थी, वो रोते हुए मेरे पास आई और बोली, “दीदी, पहली बार मैंने अपने पैसे से अपने बच्चों के लिए स्कूल की चीज़ें खरीदी हैं, अब मुझे किसी से माँगना नहीं पड़ा।” उसका पति कभी बेटियों की पढ़ाई में साथ नहीं देता था।

Advertisment

वो पल मेरे लिए बहुत बड़ा था। मुझे समझ आया कि यह सिर्फ मंदिर के फूलों को दोबारा इस्तेमाल करने की बात नहीं है, यह महिलाओं को सम्मान, आत्मनिर्भरता और एक उद्देश्य देने की बात है। जब मैं उनकी आंखों में आत्मविश्वास देखती हूँ, तो मुझे लगता है कि हम सही दिशा में हैं।

5. आपके लिए सफलता का मतलब क्या है? क्या यह सिर्फ कोई लक्ष्य हासिल करना है या इससे भी कुछ ज़्यादा?

जब मैंने कंपनी शुरू किया, तो मुझे लगा कि सफलता मतलब अपना काम बढ़ाना और ज़्यादा से ज्यादा फूलों को रीसायकल करना है। लेकिन धीरे-धीरे समझ आया कि असली सफलता कुछ और है, वो मुस्कान जब एक महिला पहली बार अपनी सैलरी पाती है, अपने परिवार के लिए कुछ करती है और खुद को आत्मनिर्भर महसूस करती है। हर अगरबत्ती जो हम बनाते हैं, वह न केवल पर्यावरण की मदद करती है बल्कि धार्मिक आस्था का सम्मान भी करती है। सफलता वो है जो बदलाव लाए, चाहे वो फूलों को दोबारा उपयोग करना हो या एक महिला को सशक्त बनाना, असली सफलता वहीं है।

Advertisment

6. इस पेशे में महिलाओं के लिए आपकी सबसे बड़ी सोच क्या है? आप अगली पीढ़ी के लिए क्या बदलाव देखना चाहती हैं?

मेरी सबसे बड़ी ख्वाहिश है कि महिलाएं सिर्फ रोज़गार तक सीमित न रहें, बल्कि अपनी ताकत और नेतृत्व को समझें। जब मैंने अपने बिजनेस की शुरू किया, तो कई महिलाएं सोचती थीं कि वे कभी कमाकर आगे नहीं बढ़ सकतीं। मैं उस सोच को बदलना चाहती हूँ। मेरी इच्छा है कि हर महिला खुद को एक लीडर, एक उद्यमी और बदलाव लाने वाली के रूप में देखे।

अगली पीढ़ी के लिए मैं यह धारणा खत्म करना चाहती हूँ कि कुछ काम सिर्फ पुरुषों के लिए होते हैं। मैं चाहती हूँ कि आर्थिक स्वतंत्रता हर महिला के लिए एक सामान्य बात हो, एक ज़रूरत नहीं, बल्कि उसका अधिकार हो। जब महिलाएं सशक्त बनती हैं, तो उनका पूरा समाज ऊपर उठता है।

Advertisment

7. महिलाओं की ताकत सिर्फ बातों तक सीमित न रहे, उसे जिया भी जाए। आपके अनुसार असली 'महिला सशक्तिकरण' क्या है?

असली महिला सशक्तिकरण सिर्फ शब्दों में नहीं, बल्कि कामों में दिखता है। जब एक महिला अपने फैसले खुद ले सके, अपनी कमाई से अपना जीवन चला सके और अपने काम पर गर्व कर सके, वही सच्चा सशक्तिकरण है। जब उसे किसी से इजाज़त लेने की ज़रूरत नहीं होती कि वो क्या सपना देखे या क्या हासिल करे, वो आज़ादी ही असली ताकत है।

सशक्तिकरण का मतलब सिर्फ मौके देना नहीं, बल्कि ऐसा माहौल बनाना है जहाँ महिलाओं को बार-बार साबित नहीं करना पड़े कि वे काबिल हैं। यह सोच और समाज को बदलने की बात है।

Advertisment

8. क्या आपको लगता है कि समाज में महिलाओं की सफलता को पुरुषों जितना सम्मान मिलता है? अगर नहीं, तो इसे बदलने के लिए क्या करना चाहिए?

आज भी जब कोई पुरुष सफल होता है तो कहा जाता है, "उसने मेहनत की है, इसीलिए आगे बढ़ा।" लेकिन जब कोई महिला सफलता पाती है, तो अक्सर सवाल उठते हैं, "क्या वो खुद से पहुँची है?", "किसने मदद की?" कॉर्पोरेट दुनिया में यह भेदभाव और भी गहरा है। पुरुष की तरक्की को काबिलियत माना जाता है, लेकिन महिला की सफलता पर शक किया जाता है।

इस सोच को बदलना ज़रूरी है। सफलता को मेहनत, समर्पण और टैलेंट से तौला जाना चाहिए, न कि जेंडर से। ऐसा माहौल बनाना चाहिए जहाँ महिलाओं को बार-बार साबित न करना पड़े कि वे उस मुकाम की हकदार हैं। जब हम महिलाओं की सफलता पर शक करना बंद करेंगे और उसकी उतनी ही इज्जत करेंगे जितनी पुरुषों की करते हैं, तभी असली बदलाव आएगा।