‘Good Girl’ Syndrome: कब तक औरतें दूसरों को खुश करने के लिए जीती रहेंगी

‘Good Girl’ Syndrome: हमारे समाज में औरतों को बचपन से ही सिखाया जाता है कि उन्हें सबको खुश रखना है, घरवालों और समाज को। समय है कि इस सोच को बदला जाए औरतों को भी अपनी खुशी और अपनी पहचान के लिए जीने दीया जाए।

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Tamnna Vats
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Women managing job and home

Women managing job and home Photograph: (Pinterest )

How long will women keep living just to please others?: हमारे समाज में औरतों को बचपन से ही सिखाया जाता है कि उन्हें सबको खुश रखना है, घरवालों और समाज को। अपनी खुशियों और सपनों को भूलकर बस दूसरों की जरूरतें पूरी करती रहती हैं। लेकिन क्या ये सही है? क्या कोई इंसान सिर्फ दूसरों को खुश करने के लिए ही जीता है? समय है कि इस सोच को बदला जाए औरतों को भी अपनी खुशी और अपनी पहचान के लिए जीने दीया जाए।

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‘Good Girl’ Syndrome: कब तक औरतें दूसरों को खुश करने के लिए जीती रहेंगी?

औरतों की खुशी, पहचान और उम्मीदों का क्या कोई मोल नहीं 

जब औरत अपनी खुशी की बात करती है या कुछ अपने लिए करना चाहती है, तो लोग उसे स्वार्थी कहने लगते हैं। औरतों की पहचान बस माँ, बहन, पत्नी या किसी रिश्ते के रूप में ही देखी जाती है, एक औरत की तरह नहीं। उसके सपनों और उम्मीदों को अक्सर नजरअंदाज किया जाता है, जो बिलकुल सही नहीं है, इससे औरतों का आत्मसम्मान कम होता है और धीरे-धीरे वे अपने सपने और उम्मीदों को मन में कहीं दबा देती है। हर औरत को उसके अपने सपने और उम्मीदों के साथ जीने देना चाहिए।

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दूसरों को खुश रखने का दबाव बचपन से शुरू होता है 

बचपन से ही लड़कियों को यह सिखाया जाता है कि उन्हें घर, परिवार और समाज की हर बात माननी है और सबको खुश रखना है। अपनी इच्छाओं और पसंद को पीछे छोड़ते हुए दूसरों की जरूरतों को पहले रखना ही जैसे उनका फ़र्ज़ बना दिया जाता है। यही सोच धीरे-धीरे उनके मन में बैठ जाती है और वे अपनी खुशी को ज़रूरी नहीं समझतीं। समय के साथ इसे आदत बना लेती है।

समाज की उम्मीदें और औरतों की हकीकत

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समाज हमेशा उन औरतों को अपनाता है या समाज में देखना चाहता है जो सबकी बात माने, सबके लिए त्याग करे, हर समय मुस्कुराती रहे और कभी कोई शिकायत न करे। लेकिन हर औरत के कुछ सपने होते हैं, थकान, भावनाएं और परेशानियां होती हैं। दूसरों की उम्मीदों को पूरा करते-करते वो अपनी पहचान और खुशी को भूल जाती है। समाज में औरतों को भी इंसान की तरह समझा जाए, न कि सिर्फ जिम्मेदारियां निभाने वाली एक मशीन की तरह।

अपनी खुशी को हमेशा पीछे क्यों रखना पड़े?

हर बार औरत से ही ये क्यों कहा जाता है कि वो अपनी खुशी बाद में देखे? चाहे घर हो या ऑफिस, वो हर किसी का ख्याल रखती है, सबकी मदद करती है, लेकिन जब बात खुद की आती है तो उसे चुप रहना पड़ता है। क्या उसकी खुशी की कोई कीमत नहीं है? क्या वो सिर्फ दूसरों के लिए ही बनी है? औरत को भी हक है कि वो अपने बारे में सोचे, अपनी खुशी को भी ज़रूरी समझे और अपनी ज़िंदगी अपने तरीके से जिए। 

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वक़्त है सोच में बदलाव लाने का 

औरतें सिर्फ रिश्तों तक ही सीमित नहीं रहनी चाहिए, ब्लकि अपनी खुद की पहचान बनाएं। हर औरत के अंदर कुछ खास होता है, कुछ बनने और अपने सपनों को पूरा करने की ताकत होती है। लेकिन जिम्मेदारियों और समाज की सोच की वजह से वो खुद को पीछे छोड़ देती है। ये ज़रूरी है कि वो अपने बारे में सोचे, अपने फैसले खुद ले और अपनी काबिलियत पर भरोसा करे। औरत सिर्फ किसी की माँ, बहन या पत्नी नहीं है, वो खुद भी एक इंसान है और उसे अपनी पहचान बनाने का पूरा हक है।

आत्मसम्मान औरत समाज women