Permission Politics: क्यों औरतों के हर फैसले से पहले पूछा जाता है घरवालों ने मना तो नहीं किया

Permission Politics: आज भी हमारे समाज में जब कोई औरत अपने लिए कुछ फैसला लेती है, जैसे नौकरी करना, पढ़ाई करना, शादी से मना करना या अकेले कहीं जाना, तो सबसे पहले लोग पूछते हैं, "घरवालों ने मना तो नहीं किया?"

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Tamnna Vats
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Photograph: (Image Credit: Pinterest)

Why is every decision of a woman followed by the question, “Did your family say no?”: आज भी हमारे समाज में जब कोई औरत अपने लिए कुछ फैसला लेती है, जैसे नौकरी करना, पढ़ाई करना, शादी से मना करना या अकेले कहीं जाना, तो सबसे पहले लोग पूछते हैं, "घरवालों ने मना तो नहीं किया?" ये सवाल जितना साधारण लगता है, उतना ही दिखाता है कि लोग अब भी मानते हैं कि औरत अपने फैसले खुद नहीं ले सकती, उसे हर बात के लिए घर वालों की इजाज़त लेनी पड़ेगी।

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Permission Politics: क्यों औरतों के हर फैसले से पहले पूछा जाता है, ‘घरवालों ने मना तो नहीं किया?’

औरतों को अपने फैसले लेने का पूरा हक है

हर इंसान को अपनी ज़िंदगी के फैसले लेने का हक होता है, चाहे वो मर्द हो या औरत। लेकिन जब औरतों को हर बात के लिए किसी की इजाज़त लेनी पड़ती है, तो साफ दिखता है कि हम अभी बराबरी वाले समाज में नहीं हैं। औरतें भी समझ रखती हैं, सोच सकती हैं और सही-गलत का फर्क अच्छे से जानती हैं। उन्हें अपने फैसलों के लिए बार-बार सफाई देने की ज़रूरत नहीं होनी चाहिए। ये बातें समाज की पिछड़ी सोच को दर्शाता है। 

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औरतों के लिए गए फैसलों पर शक़ क्यों जताया जाता है?

जब कोई मर्द अपने लिए कोई फैसला करता है, तो कोई नहीं पूछता कि "घर वालों ने मना किया क्या?" लेकिन जब बात किसी औरत की होती है, तो उसके हर फैसले को घर की मर्जी से जोड़ा जाता है। जैसे उसे खुद सोचने-समझने का हक ही नहीं है। लोगों को लगता है कि औरत अपने मन से कुछ तय नहीं कर सकती, उसे हर बात के लिए घर से पूछना चाहिए, और पूछना पड़ेगा, चाहे वो किसी भी उम्र की हो। ये सोच असल में औरत की आज़ादी को रोकने वाली है।

घर परिवार और समाज की चिंता या डर?

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अक्सर ये सवाल घर की चिंता बताकर पूछा जाता है, लेकिन असल में ये समाज के डर से जुड़ा होता है। लोगों को डर होता है कि अगर लड़की ने अपनी मर्जी से कुछ किया और कुछ गलत हो गया, तो लोग क्या कहेंगे? रिश्तेदार क्या बोलेंगे? यही डर औरतों की आज़ादी के बीच सबसे बड़ी रुकावट बन जाता है। कई बार घरवाले भी इसलिए औरतों को रोकते हैं क्योंकि उन्हें बचपन से यही सिखाया गया है कि लड़की को ज्यादा बोलना, बाहर जाना या अपने फैसले खुद लेना अच्छा नहीं माना जाता।

ख़ुद के लिए फैसला लेना आत्मनिर्भरता की ओर एक कदम 

हर बार औरत से ये पूछना कि "घरवालों ने मना तो नहीं किया?" ऐसा है जैसे उसकी आज़ादी पर शक करना। ये सोच औरतों को बराबरी का हक नहीं मिलने देती। अब ज़रूरत है इस सोच को बदलने की और औरतों को अपने फैसले खुद लेने की आज़ादी देने की। जब औरत अपने फैसले खुद लेने लगेगी, तभी वो सच में मजबूत बनेगी और समाज भी आगे बढ़ेगा।

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