/hindi/media/media_files/2025/10/09/honor-killing-2025-10-09-02-22-49.png)
Photograph: (Pinterest(Diane+Hindustan Times))
A Planned Murder: जब एक महिला अपनी पसंद से अपना जीवन साथी चुनती हैं, तो वह उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता और उसके अधिकार को दर्शाता हैं, जो कानून उसे देता हैं, पर समाज का इस अधिकार को चुनने पर उसे मौत के घाट उतार देना कितना हैं सही? भारत में हर साल 1000 से अधिक ऑनर किलिंग के मामले सामने आते हैं, और अधिकतर किस्से उत्तरी भारत के ऐसे राज्यों से आते हैं, जो सम्पन्न और शांतप्रिय कहे जाते हैं, फिर भी विचारों में क्यों पिछड़े हुए हैं?जब एक लड़की अपने परिवार के विरुध्द या असहमति से अपना जीवन साथी चुनती हैं, तो वह किस अर्थ में गलत हैं? लेकिन फिर भी सामने पाती हैं मौत।
ऑनर के नाम पर हत्या: क्या महिला की पसंद गुनाह है?
जीवन की स्वतंत्रता एक मौलिक अधिकार फिर भी मौत ?
भारत जहां जाति और लिंग आधारित भेदभाव संवैधानिक रूप से वर्जित हैं, वही देश में संविधान बनने से लेकर अब तक ऐसी हिंसा जो सिर्फ अपना जीवन का एक निर्णय लेने के लिए हो, कितनी सही हैं? 1947 में आजादी के समय ऐसी कई महिलाएं थी जिन्होंने अपने परिवार के नाम पर अपनी इच्छा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से समझौता किया और जिन्होंने नहीं किया उन्हे मौत के घाट उतार दिया गया, तो यह कहना गलत नहीं होगा कि समाज नारी को सदैव उतनी ही स्वतंत्रता देता हैं जितने में उसकी व्यवस्थता पर आंच न आए।
भारत जिसके नागरिकों ने स्वतंत्रता के लिए इतना कष्ट सहा, उसी देश में आजादी पाने से लेकर आज आजादी के 79 साल तक भारत का एक नागरिक जो हर अर्थ में गरिमामय जीवन जीने की स्वतंत्रता रखता हैं, उसे अपना अधिकार चुनने के जुल्म में यह समाज के रखवाले कहे जाने वाले लोग और इज्जतदार परिवार के सदस्य होने के नाते उस इंसान को अपना जीवन त्यागना पड़ता हैं।
इज्जत के नाम पर हत्या कितनी हैं सही?
जब एक नारी अपने जीवन का महत्वपूर्ण निर्णय लेती हैं, तो वह वास्तविक रूप में स्वतंत्रत महसूस करती हैं जो उसकी कार्य करने की क्षमता, मानसिक और व्यवहारिक स्तर पर भी देखा जा सकता हैं। लेकिन वही जब एक नारी सिर्फ इसलिए जीवन से हाथ धो बैठे क्योंकि उसने अपना जरूरी और निजी फैसला खुद लिया तो वास्तव में यह समाज की ऐसी दोहरी सोच को दर्शाता हैं जो नारी को सिर्फ अपनी हाथ की कठपुतली बनाने में खुश और प्रभावशाली समझता हैं। यह समाजिक मुद्दों का दोहरा चक्र है जो सिर्फ नारी तक सीमित नहीं कहीं बार उसके किए हुए फैसले और सामाजिक असुरक्षा का परिचायक भी बन जाता हैं।
समाज घर की बेटी और बहू को इज्जत का प्रतीक मानता हैं, और जब घर की बेटी अपनी पसंद से पर अपने परिवार की न मर्जी या उनकी पसंद को नकारते हुए अपना जीवनसाथी चुनती हैं या प्रेम-विवाह करती तो इज्जत (honor) के नाम उसे मौत के घाट उतार दिया हैं, यह हिंसा सिर्फ उस महिला तक सीमित नहीं उसके चुने हुए साथी को भी मौत के घाट उतार देती हैं, यह कहना गलत नहीं होगा कि यह सब समाज पहले से ही तय करता हैं, और समाज इसे सही नजरिया भी कहता हैं। एक परिवार अपनी बेटी को अपनी पसंद से जीवन जीने देने की जगह, उसे इज्जत के नाम पर मारकर कई सालों या जीवन भर जेल में सड़ने को अपनी मान-मर्यादा की रक्षा समझते हैं।
भारतीय कानून (Indian Law) इस पर क्या कहता हैं?
भारतीय न्याय संहिता के अनुसार ऐसी हत्या को हत्या की श्रेणी में रखा जाता हैं, जिसके लिए भारतीय कानून आजीवन कारावास या फांसी की सजा का प्रावधान रखता हैं।भारतीय कानून मौलिक अधिकारों के अंदर इसे अनुच्छेद 14, 15, 19, और 21 का हनन मानता हैं, पर इसके लिए seperate provision नहीं रखता पर विवाह अधिनियम,1954 के तहत inter-caste और inter-religious marriage को कानूनी मान्यता देता हैं, जिससे ऑनर किलिंग को कानून के समक्ष चुनौती मिलती हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने इसे विकास यादव केस (2016) में इसे "Rarest of Rare" में गिना और इसके लिए सख्त सजा का प्रावधान भी किया हैं। शक्ति वाहिनी केस (2018) में ऑनर किलिंग को गरिमामय जीवन के अधिकार का उलंघन माना गया और राज्यों के सुरक्षा उपायों के निर्देश भी दिए गए।
समाज कि दोहरी सोच पर कब तक?
यह कहते हुए तारजुव होता हैं, कि ऑनर किलिंग भारत के पिछड़े क्षेत्रों से लेकर विकसित कहे जाने वाले शहरों जैसे दिल्ली, लखनऊ और ग्वालियर में भी होती हैं, और समाज इसे इज्जत बचाना और परिवार की सही सोच का हवाला भी देता हैं। इज्जत के नाम पर किसी महिला की हत्या एक सोची समझी सामाजिक साजिश हैं जिसे समाज सही होने का खिताब भी देता हैं, पर क्या आज भी यह सही हैं?
जब नारी को आज आर्थिक आजादी हो सकती हैं तो अपना निजी जीवन का फैसला लेने की आजादी चाहे कोई इस पर सहमति रखे या न रखे वह सदैव रखती हैं। समाज को अपने नजरिए और और अपने इस दोहरी दृष्टिकोण में बदलाव लाने की जरूरत हैं, समाज किसी व्यक्ति विशेष के निजी जीवन के फैसले पर प्रश्न का अधिकार जब तक नहीं रखता जब तक वह सामाजिक ढांचे के लिए हानिकारक न हो, पर कब तक ये कुटिलता के बीज समाज अपने ही भीतर बोता और उन्हें काटने के लिए आतुर रहेगा?
नारी की स्वतंत्रता किसी की विचारधारा से अलग हैं, और यह उसके मानवीय अधिकार भी हैं, तो समाज को ऑनर किलिंग पर प्रश्न ही नहीं खड़े करने चाहिए, पर अपनी खोखली जड़ों पर भी काम करना चाहिए।