शाह बानो केस से सीखी गई बात: Section 125 (CrPC) कैसे महिलाओं को मजबूती देता हैं?

1978 में शाह बानो, जिनके किरदार से " हक" के जरिए जानते ही होगे। जब शाह बानो के पति ने उन्हें 43 वर्ष की शादी के बाद तलाक दे दिया तो तलाक के बाद गुजारा भत्ता नहीं दिया था। तब शाह बानो ने धारा 125 CrPC के तहत सुप्रीम कोर्ट में याचिका दी।

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Nainsee Bansal
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Women laws

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1978 में शाह बानो बेगम, जो इंदौर की एक 62 वर्षीय महिला थी, जिसके किरदार से आप यामी गौतम की भूमिका " हक" से जानते ही होगे। जब शाह बानो के पति मोहम्मद अहमद खान ने उन्हें 43 वर्ष की शादी के बाद तलाक दे दिया तो मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत तलाक के बाद गुजारा भत्ता देना, पति का दायित्व नहीं बनता था। तब शाह बानो ने धारा 125 CrPC जो सभी नागरिकों पर लागू होती हैं, चाहे वह किसी धर्म का हो के तहत मामला सुप्रीम कोर्ट में गया था।

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शाह बानो केस से सीखी गई बात: section 125 (CrPC) कैसे महिलाओं को मजबूती देता हैं?

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला 

सुप्रीम कोर्ट ने 1985 केऐतिहासिक फैसले में मुस्लिम महिलाओं को भी तलाक के बाद भरण-पोषण का अधिकार हैं अगर वे खुद का खर्च नहीं उठा सकती हैं। इस फैसले के बाद राजनीतिक दबाव में आकर सरकार ने मुस्लिम महिला (तलाक पर संरक्षण) अधिनियम, 1986 पास किया, जिससे यह गुजारा भत्ता का अधिकार सीमित होता हुआ दिखा था। लेकिन बाद में कई मामलों में अदालतों ने फिर से स्पष्ट किया कि Section 125 CrPC मुस्लिम महिलाओं पर भी लागू होती हैं।

क्या हैं धारा 125 CrPC के महिलाओं को कानूनी फायदे?

भरण पोषण का अधिकार 

अगर कोई महिला अपने पति से अलग रह रही हैं या तलाकशुदा हैं और खुद का भरण पोषण नहीं कर सकती, तो वह इस धारा के तहत अदालत में गुजारा भत्ता की मांग कर सकती हैं।

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धर्म की कोई बाध्यता नहीं

यह धारा सभी नागरिकों पर बिना किसी धर्म के भेदभाव के लागू होती हैं, चाहे वह हिंदू हो, चाहे वह मुस्लिम हों या किसी अन्य धर्म की। यह धारा धार्मिक स्वतंत्रता के साथ साथ समानता का भाव भी सभी महिलाओं को देती हैं।

तीन तलाक के बाद भी अधिकार 

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया हैं कि मुस्लिम महिलाएं भी तीन तलाक के बाद इस धारा के तहत गुजारा भत्ता मांग सकती हैं, भले ही मुस्लिम महिला अधिनियम 2019 भी लागू हो।

कौन गुजारा भत्ता या भरण पोषण मांग सकता हैं

पत्नी, नाबालिग बच्चे और माता-पिता भी इस धारा के तहत भरण पोषण मांग कर सकते हैं।

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पति की जिम्मेदारी

अगर पति सक्षम हैं लेकिन पत्नी को भरण-पोषण नहीं दे रहा, तो अदालत उसे आदेश दे सकती हैं कि वह हर महीने एक निश्चित राशि पत्नी को दे।

अंतरिम भरण-पोषण

मुकदमे के दौरान भी महिला अंतरिम भरण-पोषण की मांग कर सकती हैं, ताकि उसे तुरंत राहत मिल सके।

अदालत की प्रकिया 

महिला को मजिस्ट्रेट कोर्ट में आवेदन देना होता हैं, जिसमें वह अपने हालात और पति की उपेक्षा का विवरण देती हैं।

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क्यों हैं यह धारा इतनी आवश्यक?

आज भी महिलाओं को लेकर समाज में उतनी जागरूकता नहीं हैं। वह महिलाओं के साथ होने वाले शोषण को सामाजिक प्रक्रिया मानता हैं। इसलिए कानूनों का इतना सशक्त और महिलाओं को आर्थिक सुरक्षा देना आवश्यक हैं। यह उन पुरुषों पर कानूनी दबाव बनाती हैं जो शादी के बाद अपनी जिम्मेदारियों से भागते हैं। यह समानता और न्याय की दिशा में एक मजबूत कदम हैं।

Section 125 CrPC