कौन हैं शाह बानो बेगम? जिसका किरदार निभाया यामी गौतम ने "हक" में

एक ऐसा judgement जिसने पूरे भारत को  महिलाओं के अधिकारों, धर्मनिरपेक्षता और कानून की समानता का नया अध्याय दिया। एक मुस्लिम महिला शाहबानो को जागरूक किया और अपना हक मांगने वह सर्वोच्च न्यायालय पहुंची जिसका किरदार निभाया हैं यामी गौतम ने "HAQ" में ।

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Nainsee Bansal
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HAQ

Photograph: (Instagram)

एक ऐसा judgement जिसने पूरे भारत को  महिलाओं के अधिकारों, धर्मनिरपेक्षता और कानून की समानता का नया अध्याय दिया। जहां मुस्लिम महिलाएं किसी भी समय तीन तलाक के जरिए अपने पति द्वारा घर से निकाल दी का सकती थी, उस सामाजिक क्रूरता ने एक मुस्लिम महिला शाहबानो को जागरूक किया और अपना हक मांगने वह सर्वोच्च न्यायालय पहुंची और आज पूरे भारत में महिलाओं के हक की सबसे बड़ी परिभाषा बनीं, जिसका किरदार निभाया हैं यामी गौतम ने "HAQ" में जो नवम्बर में सिनेमा घरों में रिलीज़ होगी।

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कौन हैं शाह बानो बेगम? जिसका किरदार निभाया यामि गौतम ने "हक" में

कौन थी शाह बानो और क्यों सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंची ?

शाह बानो बेगम इंदौर( मध्यप्रदेश) की निवासी थीं, उनकी शादी मोहम्मद अहमद खान से हुई थी, जो एक वकील थी। यह भी एक सामान्य मुस्लिम महिला की कहानी होती जो अपने पति द्वारा तीन तलाक देकर घर से निकाल दी गई पर उनके न्याय और अपने हक की लड़ाई ने उन्हें भारतीय कानून में ऐसा बदलाव लाया जिसे हर भारतीय कानून जानने वाला "शाह बानो लैंडमार्क judgement" के नाम से जाना जाता हैं।

शाह बानो को समस्या जब हुई जब 1978 में 43 वर्षों तक वैवाहिक जीवन के बाद, जब उनकी उम्र 62 वर्ष थी, पांच बच्चे और कोई आर्थिक सहारा नहीं था। उनके पति यानी मोहम्मद अहमद खान ने उन्हें तीन तलाक देकर घर से निकाल दिया।

लेकिन शाह बानो ने हार नहीं मानी और सुप्रीम कोर्ट में भारतीय दंड प्रकिया संहिता की धारा 125 के तहत गुज़ारा भत्ता (maintenance) की मांग की, जो सभी नागरिकों पर लागू होती हैं, चाहे वह किसी धर्म का हो।

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सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय (1985)

सुप्रीम कोर्ट ने शाह बानो के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा कि धारा 125 Crpc सभी नागरिकों पर लागू होती हैं, मुस्लिम महिला पर भी। यह निर्णय मौलिक अधिकार जो भारत में सभी नागरिकों को समान रूप से मिलते हैं पर कई अनुच्छेद और परिस्थितियों में बदला जाते हैं , लेकिन इस निर्णय ने बताया कि संवैधानिक अधिकार- जैसे समानता (अनुच्छेद 14) और  व्यक्तिगत स्वतंत्रता ( अनुच्छेद 21)- धार्मिक निजी कानूनों से ऊपर हैं।

यह फैसला महिलाओं के लिए एक कानूनी कवच बना, जिसने उन्हें तलाक के बाद भी आर्थिक अधिकार की मांग रखना और उन्हें गुजारा भत्ता देने का अधिकार देता हैं। इसने धर्मनिरपेक्ष कानूनों की प्राथमिकता को स्थापित करता हैं, विशेषकर महिलाओं के अधिकार में। इस केस ने समान नागरिक संहिता ( यूनिफॉर्म सिविल कोड) पर नेशनल डिबेट को भी जन्म दिया ।

इस केस ने भारत में ऐसा क्या बदलाव लाया जो वर्तमान तक इसकी गूंज हैं?

इस केस के बाद मुस्लिम महिलाएं अपने अधिकारों के लिए और सजग हुई जिसने मुस्लिम महिला संगठन को जन्म दिया, साथ ही मुस्लिम पुरुष वर्ग ने इसे नकारा और मुस्लिम लॉ में दखलंदाजी बताया।
मुस्लिम संगठनों के दबाव में राजीव गांधी सरकार ने 1986 में Muslim women (protection of Rights on Divorce)Act पारित किया, जिससे सुप्रीम कोर्ट के फैसले को कमजोर किया गया। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून की व्याख्या को मुस्लिम महिलाओं के न्याय के हक में किया। और शाह बानो कैसे आज भी महिला अधिकारों, धर्मनिरपेक्षता और कानून की समानताका प्रतीक  हैं। 

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यामि गौतम का किरदार पर चर्चा 

यामी गौतम जिनके किरदार अक्सर महिलाओं की अद्भुत संघर्षभरी दास्तां को सबके सामने लाते हैं, वहीं किरदार उन्होंने हक में निभाया हैं। "हक" की कहानी "बानो: भारत की बेटी" वोरा लेखिका की लिखी नाटकीय और काल्पनिक कहानी पर आधारित हैं। यह ऐसी कहानी हैं जिसने पुरुषवादी समाज को (Patricial society) को कठघरे में लाकर खड़ा कर दिया, यह उसके हक और अदम्य साहस की कहानी हैं।

यामी गौतम ने मूवी के दौरान हुए दिलचस्प टेक भी बताएं, जो खूब चर्चा का विषय बने हुए हैं, लेकिन बस कुछ दिन का इंतजार और आप और नजदीक से जान पाएंगे "शाह बानो को और उनके हक की लड़ाई" को " HAQ" में ।

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यामी गौतम मुस्लिम महिलाओं गुज़ारा भत्ता