Estrogen सिर्फ़ महिला हार्मोन नहीं, पूरे शरीर की ताकत है

जब हम एस्ट्रोजेन के बारे में सोचते हैं, तो अक्सर इसे सिर्फ़ “महिला हार्मोन” कहकर छोटा कर दिया जाता है। लेकिन यह परिभाषा बहुत सतही है। एस्ट्रोजेन सिर्फ प्रजनन (reproduction) तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे शरीर का मास्टर रेगुलेटर है।

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The Meno Coach
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जब हम एस्ट्रोजेन के बारे में सोचते हैं, तो अक्सर इसे सिर्फ़ “महिला हार्मोन” कहकर छोटा कर दिया जाता है। लेकिन यह परिभाषा बहुत सतही है। एस्ट्रोजेन सिर्फ प्रजनन (reproduction) तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे शरीर का मास्टर रेगुलेटर है। यह दिल, हड्डियों, त्वचा, दिमाग और इम्यूनिटी तक को प्रभावित करता है। पेरिमेनोपॉज़ (menopause से पहले का समय) में जब एस्ट्रोजेन का स्तर घटने लगता है, तो महिलाओं को सिर्फ़ एक हार्मोन की कमी नहीं होती, बल्कि पूरे सिस्टम में बदलाव की लहर महसूस होती है। हाँ, यह सिर्फ़ ‘महिला’ ऑर्गन तक ही सीमित नहीं है।

Estrogen सिर्फ़ महिला हार्मोन नहीं, पूरे शरीर की ताकत

एस्ट्रोजेन और दिल

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एस्ट्रोजेन का सबसे अहम रोल दिल को सुरक्षित रखना है। यह अच्छे कोलेस्ट्रॉल (HDL) को बढ़ाता है और खराब कोलेस्ट्रॉल (LDL) को घटाता है। इसके साथ ही यह ब्लड वेसेल्स (रक्त वाहिकाओं) को लचीला रखता है ताकि ब्लड फ्लो आसानी से हो सके। पेरिमेनोपॉज़ में जैसे-जैसे एस्ट्रोजेन घटता है, वैसे-वैसे महिलाओं में ब्लड प्रेशर, ब्लॉकेज और दिल की बीमारियों का खतरा तेजी से बढ़ जाता है। यही वजह है कि मेनोपॉज़ के बाद महिलाओं में हार्ट डिज़ीज़ मौत का सबसे बड़ा कारण बन जाता है, यहां तक कि यह ब्रेस्ट कैंसर और दूसरी “महिला-विशेष” बीमारियों को भी पीछे छोड़ देता है।

एस्ट्रोजेन की इस कमी के दौरान पोषण (nutrition) बड़ी मदद करता है और इसमें प्रोटीन सबसे ज़रूरी है। एस्ट्रोजेन घटने पर महिलाओं की मांसपेशियां जल्दी कम होती हैं, हड्डियां कमजोर होती हैं और रिपेयर की क्षमता धीमी पड़ जाती है। ऐसे में प्रोटीन का सही सेवन मसल्स को मजबूत रखता है, ब्लड शुगर को बैलेंस करता है और त्वचा के लिए कोलेजन बनाने में मदद करता है। इसी ज़रूरत को देखते हुए Gytree ने भारत का पहला मेनोपॉज़-विशेष प्लांट प्रोटीन बनाया है। यह सिर्फ़ लक्षणों को कम करने के लिए नहीं, बल्कि लंबे समय तक ताकत और लचीलापन देने के लिए तैयार किया गया है। इसमें अडेप्टोजेन्स और ज़रूरी माइक्रोन्यूट्रिएंट्स मिलाए गए हैं जो महिलाओं की हार्मोनल ज़रूरतों के लिए बनाए गए हैं। इसके साथ ही Gytree का “Forty Plus” कैप्सूल महिलाओं को एक आसान और रोज़ाना का तरीका देता है जिससे वे पेरिमेनोपॉज़ के दौरान अपने शरीर को मज़बूत रख सकें।

एस्ट्रोजेन और हड्डियां

हड्डियां हमेशा टूटती और दोबारा बनती रहती हैं। एस्ट्रोजेन इस बैलेंस को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाता है और हड्डियों को जल्दी टूटने से रोकता है। लेकिन जैसे ही इसका स्तर घटता है, हड्डियां टूटने लगती हैं और नई हड्डी उतनी नहीं बनती। इससे बोन डेंसिटी (हड्डियों की मज़बूती) तेज़ी से घटती है। नतीजा होता है ऑस्टियोपोरोसिस और फ्रैक्चर का खतरा। रिसर्च बताती है कि मेनोपॉज़ के बाद पहले 5 से 7 साल में महिलाएं अपनी हड्डियों का करीब 20% हिस्सा खो देती हैं। यानी एस्ट्रोजेन की कमी मिडल एज में हड्डियों को कमजोर करने का सबसे बड़ा कारण है।

एस्ट्रोजेन और त्वचा

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त्वचा में एस्ट्रोजेन रिसेप्टर्स होते हैं जो कोलेजन, लचीलापन और नमी (hydration) बनाए रखते हैं। मेनोपॉज़ के समय एस्ट्रोजेन घटने से त्वचा पतली हो जाती है, उसमें कसाव कम हो जाता है और रूखापन बढ़ता है। यह सिर्फ़ दिखने की समस्या नहीं है — पतली त्वचा जल्दी चोट खाती है, धीरे-धीरे ठीक होती है और रोज़मर्रा की टेंशन से कमज़ोर हो जाती है। कई महिलाएं सबसे पहले बारीक झुर्रियों और त्वचा की चमक कम होने से नोटिस करती हैं, लेकिन असल में यह हार्मोन की कमी से आया बड़ा बदलाव है।

प्रजनन से आगे: एस्ट्रोजेन की बड़ी भूमिका

एस्ट्रोजेन का कमाल यही है कि यह सिर्फ प्रजनन तक सीमित नहीं है। यह दिमाग में मौजूद न्यूरोट्रांसमीटर पर असर डालता है, जिससे मूड, याददाश्त और नींद बेहतर रहती है। यह जोड़ों और टिश्यू को भी सपोर्ट करता है ताकि शरीर लचीला रहे। यहां तक कि यह इम्यून सिस्टम को भी प्रभावित करता है, इसी वजह से कई महिलाएं पेरिमेनोपॉज़ में बीमारियों से जल्दी थक जाती हैं। इसलिए एस्ट्रोजेन को सिर्फ़ प्रजनन हार्मोन कहना इसकी असली ताकत को कम आंकना है — यह तो पूरे शरीर के सिस्टम को एक साथ चलाने वाला कंडक्टर है।

बदलाव के साथ जीना

पेरिमेनोपॉज़ में एस्ट्रोजेन के उतार-चढ़ाव से महिलाएं खुद को पहले जैसा महसूस नहीं करतीं जैसे बेचैनी, नींद न आना, बदन दर्द या भूलने जैसी दिक्कतें होती हैं। यह अलग-अलग समस्याएं नहीं हैं, बल्कि एक ही हार्मोन की कमी का असर हैं जो शरीर के हर हिस्से से जुड़ा है। इसे समझने से महिलाएं यह जान पाती हैं कि यह कमजोरी या बीमारी नहीं, बल्कि एक नेचुरल बदलाव है जिसमें ध्यान और सपोर्ट की ज़रूरत है।

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स्ट्रेंथ ट्रेनिंग, पोषण से भरपूर खाना और स्ट्रेस मैनेजमेंट जैसे तरीके इस असर को कम करते हैं। वहीं जब लक्षण ज़्यादा गंभीर हों तो डॉक्टर से हार्मोन थेरेपी जैसे विकल्प भी लिए जा सकते हैं। लक्ष्य युवावस्था को पकड़कर रखने का नहीं है, बल्कि एस्ट्रोजेन की ताकत को समझते हुए शरीर को इस नए जीवन चरण में भी मज़बूत और संतुलित रखने का है।

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