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पीरियड्स से जुड़ी बातें अक्सर समाज में वर्जित मानी जाती हैं। इसे लेकर लोग खुलकर बात करने से कतराते हैं। लेकिन हाल के वर्षों में कला ने इस चुप्पी को तोड़ने का साहसिक कदम उठाया है। "मेन्स्ट्रुअल आर्ट" एक ऐसा नया ट्रेंड है जिसमें कलाकार पीरियड्स के अनुभवों, भावनाओं और जटिलताओं को अपनी कला के माध्यम से व्यक्त कर रहे हैं। यह कला न केवल एक क्रिएटिव अभिव्यक्ति है बल्कि सामाजिक बदलाव का भी प्रतीक बन रही है।
पीरियड्स और कला: मेन्स्ट्रुअल आर्ट का बढ़ता चलन
मेन्स्ट्रुअल आर्ट एक ऐसी कला शैली है जिसमें पीरियड्स से जुड़े मुद्दों और अनुभवों को चित्रित किया जाता है। यह कला चित्रकला, मूर्तिकला, प्रदर्शन कला (परफॉर्मेंस आर्ट) और डिजिटल आर्ट के माध्यम से प्रस्तुत की जाती है। इसका उद्देश्य पीरियड्स से जुड़े मिथकों और शर्म को खत्म करना है।
समाज पर मेन्स्ट्रुअल आर्ट का प्रभाव
1. टैबू तोड़ने की पहल
मेन्स्ट्रुअल आर्ट के माध्यम से कलाकार पीरियड्स पर खुलकर बात करने की कोशिश कर रहे हैं। यह कला लोगों को शिक्षित करने और जागरूकता बढ़ाने का एक सशक्त माध्यम बन रही है।
2. महिलाओं के अनुभवों का सम्मान
यह कला महिलाओं के व्यक्तिगत और सामाजिक अनुभवों को प्रमुखता देती है। यह बताती है कि पीरियड्स सिर्फ एक जैविक प्रक्रिया नहीं बल्कि महिलाओं के जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
कुछ प्रमुख उदाहरण
1. रूपक और रंग
कई कलाकार पीरियड्स के अनुभवों को व्यक्त करने के लिए लाल रंग का उपयोग करते हैं। यह रंग न केवल रक्त का प्रतीक है बल्कि जीवन,सशक्तिकरण और पुनर्जन्म का भी संकेत देता है।
2. स्थापना कला (Installation Art)
मेन्स्ट्रुअल आर्ट में इंस्टॉलेशन कला का भी व्यापक उपयोग हो रहा है। सैनिटरी पैड, टैम्पोन और अन्य उत्पादों का उपयोग करके बनाए गए ये इंस्टॉलेशन कला के साथ-साथ जागरूकता फैलाने का काम करते हैं।
3. डिजिटल आर्ट
सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर पीरियड्स से संबंधित कला तेजी से लोकप्रिय हो रही है। यह युवा पीढ़ी को इस विषय पर खुलकर चर्चा करने के लिए प्रेरित करती है।
क्यों जरूरी है मेन्स्ट्रुअल आर्ट?
यह कला न केवल पीरियड्स को सामान्य मानने का संदेश देती है बल्कि समाज में इसके प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण को भी बढ़ावा देती है। यह महिलाओं के स्वास्थ्य, अधिकारों और उनकी कहानियों को सामने लाने का एक शक्तिशाली माध्यम है। मेन्स्ट्रुअल आर्ट महिलाओं के अनुभवों को समझने और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम है। यह कला हमें सिखाती है कि पीरियड्स से जुड़ी बातें शर्म की नहीं बल्कि गर्व की होनी चाहिए। समाज को इस पहल को स्वीकार करना चाहिए और इसे सशक्तिकरण के एक माध्यम के रूप में देखना चाहिए।