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Shaili Chopra: Journalist, author, and founder of SheThePeople & Gytree | Photo by Naina Peris
पुरस्कार विजेता पत्रकार और SheThePeople तथा Gytree की संस्थापक शैली चोपड़ा ने अपनी पाँचवीं किताब 'हॉट, बॉदर्ड एंड अनअपॉलोजेटिक' की घोषणा की है। यह किताब भारत में मिडलाइफ़ और मेनोपॉज़ के अनुभवों की गहराई से पड़ताल करेगी। ब्लूम्सबरी इंडिया द्वारा 2026 में प्रकाशित होने वाली यह किताब भारतीय महिलाओं की बिना फ़िल्टर और बेहद वास्तविक कहानियों को सामने लाएगी, जहाँ हर महिला का सफ़र अलग और अनोखा है।
शैली चोपड़ा की नई किताब मिडलाइफ़ और मेनोपॉज़ पर खोलेगी सच के धमाके
चोपड़ा ने कहा कि "भारत को (पेरि)मेनोपॉज़ पर एक किताब की ज़रूरत है क्योंकि लाखों महिलाएँ चुपचाप उस तूफ़ान से गुज़र रही हैं, जिसका नाम तक नहीं है। हम मज़ाक करते हैं, हम इसे छुपाते हैं, फ़ोन पर स्क्रॉल करते हैं, और आगे बढ़ते रहते हैं—जबकि हमारे शरीर बदल रहे होते हैं और हमारा मन जवाबों के लिए चीख रहा होता है।"
‘हॉट, बॉदर्ड एंड अनअपॉलोजेटिक’ उन अनकहे सवालों और लंबे समय से दबे संवादों को आवाज़ देगा। मेडिकल दृष्टिकोण, व्यक्तिगत कहानियों और सांस्कृतिक समझ के ज़रिए यह किताब उस विषय पर बातचीत शुरू करेगी, जिसे हमेशा टैबू मानकर टाल दिया गया है।
शैली चोपड़ा ने कहा कि “यह कोई मैनुअल नहीं है, यह एक आईना है। ताकि महिलाएँ खुद को देख सकें और कम अकेला महसूस करें।”
क्लिनिकल नज़र से आगे मेनोपॉज़
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार 2026 तक भारत में 40 करोड़ से ज़्यादा महिलाएँ मेनोपॉज़ के दौर में होंगी। यह जीवन का स्वाभाविक और अनिवार्य अध्याय है, जिसे अब भी बीमारी या शर्म का विषय समझा जाता है। जबकि मेनोपॉज़ एक बड़ा परिवर्तन है, जो ईमानदारी, हास्य और थोड़ी-सी बग़ावत का हक़दार है।
‘हॉट, बॉदर्ड एंड अनअपॉलोजेटिक’ का मक़सद मिडलाइफ़ पर होने वाली बातचीत को परदों के पीछे से निकालकर घरों, दफ़्तरों, खेल के मैदानों, कॉफ़ी डेट्स, किटी पार्टियों और हर जगह तक पहुँचाना है।
यह हर उस महिला के लिए है जिसे सिर्फ “हॉर्मोनल” कहकर नज़रअंदाज़ कर दिया गया, जो ब्रेन फ़ॉग और मूड स्विंग्स से जूझ रही है, और उस समाज से लड़ रही है जो इस पड़ाव को मानने से भी कतराता है। यह उन महिलाओं के लिए भी है जो अब तक अपने असली रूप को स्वीकार करने से डरती रही हैं।
"यह सिर्फ़ हॉर्मोन्स की बात नहीं है, बल्कि उनके चारों ओर फैली चुप्पी की है। महिलाएँ डरती हैं कि कहीं उन्हें जज न कर दिया जाए, नज़रअंदाज़ न कर दिया जाए या बस 'बहुत इमोशनल', 'बहुत हॉर्मोनल' कहकर ख़ारिज न कर दिया जाए। इसलिए वे चुप रहती हैं। लेकिन अब वक़्त आ गया है बात करने का, हँसने का, रोने का, गुस्सा दिखाने का और इस दौर को ईमानदारी से अपनाने का," शैली चोपड़ा कहती हैं।
यह किताब सिर्फ़ व्यक्तिगत अनुभवों पर ही रोशनी नहीं डालेगी, बल्कि इस पर भी बात करेगी कि समाज, स्वास्थ्य सेवाएँ, कार्यस्थल और यहाँ तक कि परिवार भी मेनोपॉज़ पर कैसे प्रतिक्रिया देते हैं।
यह सवाल उठाएगी और यह बातचीत शुरू करेगी कि मिडलाइफ़ और मेनोपॉज़ उन सबके लिए हैं जो चुपचाप गुम नहीं होना चाहते। क्योंकि अगर हमें इस दौर से गुज़रना ही है, तो हम इसे अपने तरीक़े से जिएँगे—हँसी के साथ, गुस्से के साथ और शायद एक शानदार लिपस्टिक शेड के साथ।
शैली चोपड़ा की मेनोपॉज़ संवादों के प्रति प्रतिबद्धता
शैली चोपड़ा उन चुनिंदा आवाज़ों में से हैं जो लगातार उन मुद्दों पर रोशनी डाल रही हैं जिन्हें समाज अक्सर “असुविधाजनक” कहकर नज़रअंदाज़ कर देता है। अपनी आने वाली किताब के पन्नों से आगे भी, वह भारत भर में मिडलाइफ़ से गुज़र रही महिलाओं के साथ कैंपेन और मुलाक़ातों का नेतृत्व करती रही हैं, ताकि मेनोपॉज़ पर होने वाली धीमी-धीमी फुसफुसाहट को मुख्यधारा की बातचीत में बदला जा सके।
अब चोपड़ा “फैब्युलस ओवर फॉर्टी – द वेलनेस फ़ेस्टिवल” की मेज़बानी कर रही हैं, जो देश का पहला बड़ा मेनोपॉज़-केंद्रित समिट है। यह आयोजन 15 सितंबर को मुंबई के द ललित होटल में होगा। पूरे दिन चलने वाले इस फ़ेस्टिवल में अभिनेत्री तिस्का चोपड़ा, सोनी राज़दान, गीतांजलि किर्लोस्कर, डॉ. नोज़र शेरीआर और कई अन्य मशहूर हस्तियों के साथ खुली बातचीत होगी। इसके अलावा लाइव वर्कशॉप्स, शॉपिंग कॉर्नर, स्किनकेयर और न्यूट्रिशन लैब्स, साथ ही मूवमेंट सेशंस भी इसका हिस्सा होंगे।
भारत का पहला मेनोपॉज़ पर डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म
शैली चोपड़ा जल्द ही भारत की पहली मेनोपॉज़ पर आधारित डॉक्यूमेंट्री भी रिलीज़ करने जा रही हैं, जिसमें महिलाओं के मिडलाइफ़ की ओर बढ़ते सफ़र की असल और सच्ची झलक दिखाई जाएगी। यह फ़िल्म देशभर की प्रमुख आवाज़ों को शामिल करेगी और इस बात पर गहराई से नज़र डालेगी कि चालीस की उम्र के बाद महिलाएँ किन शारीरिक, मानसिक और सामाजिक चुनौतियों का सामना करती हैं—हॉर्मोनल बदलाव और मानसिक स्वास्थ्य की मुश्किलों से लेकर कार्यस्थल की बाधाओं और मेनोपॉज़ से जुड़ी सांस्कृतिक कलंक तक।
अपनी किताब ‘हॉट, बॉदर्ड एंड अनअपॉलोजेटिक’ में चोपड़ा अपने तीखे नज़रिए और ख़ास अंदाज़ को मिडलाइफ़ जैसे उस पड़ाव की ओर मोड़ती हैं, जिसे अब तक महिलाओं की ज़िंदगी का सबसे कम समझा गया और कम चर्चा में आया दौर माना जाता है।
महिलाओं के स्वास्थ्य और उनकी एजेंसी की प्रबल वकालत करने वाली चोपड़ा का मिशन है—सच्ची बातचीत की शुरुआत करना, पुराने सामाजिक नियमों को चुनौती देना और महिलाओं को यह ताक़त देना कि वे इस बदलाव को अपने तरीक़े से अपनाएँ।