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Photograph: (Freepik)
कुछ साल पहले तक जब मम्मी या कोई दोस्त अचानक भूल जाती थी कि चाबी कहाँ रखी या किससे क्या बात की थी, तो मैं मुस्कुरा देती थी। लेकिन अब मैं खुद दिन में तीन बार ये सोचने लगी हूं कि फोन कहाँ रखा, लंच किया या नहीं, और अगली मीटिंग किससे है।
और इस भूलने की आदत के साथ जो चीज़ आई, वो थी अचानक मूड स्विंग्स एक पल में रोना, अगले ही पल गुस्सा। शुरू में लगा, शायद काम का प्रेशर है, कभी लगा बच्चों की शरारतें, और कई बार परिवार का सपोर्ट ना मिलना। लेकिन सच कुछ और ही था।
क्या आप 40 के बाद मूड स्विंग्स, भूलने की आदत या थकान महसूस कर रही हैं? जानिए मेरी पेरिमेनोपॉज़ जर्नी
असली बदलाव: ये मैं थी, मेरा शरीर था
42 की उम्र में, दो बेटियों की माँ और एक प्रोफेशनल होने के नाते मैं हमेशा खुद को स्ट्रॉन्ग और ऑर्गनाइज़्ड मानती थी। लेकिन पिछले एक साल से ऐसा लगने लगा कि जैसे दिमाग धुंधला हो रहा है, याददाश्त जवाब दे रही है और हर छोटी बात बड़ी लगने लगी है। ना तो ये डिप्रेशन था, ना ही बर्नआउट। ये था Perimenopause वो दौर जब शरीर चुपचाप बदलाव की ओर बढ़ता है, बिना किसी अलार्म के।
क्या आपको पता है कि Estrogen की कमी दिमाग पर असर डालती है?
हमें स्कूलों में मासिक धर्म के बारे में तो पढ़ाया गया, लेकिन ये कोई नहीं बताता कि estrogen की गिरती मात्रा का सीधा असर आपकी याददाश्त, मूड और फोकस पर भी होता है यह सब उस समय जब आपकी Periods अभी भी आ रही होती हैं।
Fabulous Over Forty की सलाह से शुरू हुआ बदलाव
जब मैंने Fabulous Over Forty सेशन में Dr. Sudeshna Ray को सुना, तब जाकर समझ में आया कि न्यूट्रिशन यानी पोषण कितना बड़ा रोल निभाता है। उन्होंने कहा कि हमें अपने शरीर के संकेतों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए बल्कि उन्हें समझकर उनके मुताबिक चलना चाहिए।
खुद की देखभाल: सुनना, समझना और अपनाना
- मैंने अपनी दिनचर्या में छोटे लेकिन जरूरी बदलाव किए:
- अपने पीरियड्स ट्रैक करने लगी
- रोज़ाना हल्की एक्सरसाइज की आदत डाली
- हर बार ‘हां’ कहने की जगह ‘ना’ कहना सीखा
- और सबसे जरूरी प्रोटीन को सीरियसली लेना शुरू किया
Gytree’s Chocolate Protein Blend ने जोड़ा सुकून का स्वाद
जब मैंने Gytree’s Chocolate Protein Blend को आज़माया, तो वो सिर्फ एक हेल्थ सप्लीमेंट नहीं, बल्कि एक छोटा-सा आराम देने वाला रिचुअल बन गया। इसमें सिर्फ प्रोटीन ही नहीं, बल्कि विटामिन्स और एडैप्टोजेन्स भी थे जो एनर्जी डिप्स और एंग्ज़ायटी को संतुलित करने में मदद करते हैं। और हां, इसका स्वाद ऐसा कि दिन के आखिर में कुछ मीठा और हेल्दी पाने का मन करता है।
मूड स्विंग्स और भूलने की बीमारी कोई कमजोरी नहीं, संकेत हैं
अब मैं समझ चुकी हूं कि ये सब बदलाव मेरी हार नहीं, बल्कि शरीर का मुझसे बात करने का तरीका है। पेरिमेनोपॉज़ कोई बीमारी नहीं, ये एक फेज़ है जो अगर समझदारी से जिया जाए, तो हम खुद को बेहतर जान पाते हैं।
महिलाओं के लिए जरूरी है बातचीत और जानकारी
अगर आप 35-45 की उम्र में हैं, और आपको भी ऐसा लग रहा है कि चीजें हाथ से निकल रही हैं तो प्लीज़ इसे इग्नोर मत कीजिए। बात कीजिए, जानकारी लीजिए, और अपने शरीर को वो दीजिए जो वो मांग रहा है।
पेरिमेनोपॉज़ के सफर में सबसे बड़ी सीख यही रही शरीर हमें संकेत देता है, बस हमें सुनना सीखना होगा। यह लेख एक कोशिश है उन सभी महिलाओं के लिए जो खुद को फिर से पहचानना चाहती हैं। perimenopause कोई अंत नहीं, एक नई शुरुआत है।