Single Motherhood: बिना पति के माँ बनना – साहस या समाज की नज़र में ‘कमी’?

आज के आधुनिक दौर में महिलाएं हर क्षेत्र में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करा रही हैं, शिक्षा से लेकर करियर और नेतृत्व तक। ऐसे में यह सवाल खड़ा होता है: क्या यह उसका आत्मनिर्भर और साहसी कदम है, या समाज इसे अब भी एक 'गलती' की तरह देखता है?

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Tamnna Vats
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Becoming a Mother Without a Husband – Courage or a 'Shortcoming' in Society's Eyes?: आज के आधुनिक दौर में महिलाएं हर क्षेत्र में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करा रही हैं, शिक्षा से लेकर करियर और नेतृत्व तक। लेकिन जब मामला मातृत्व से जुड़ा होता है, तो समाज की सोच अब भी पुरानी मान्यताओं से जुड़ी नजर आती है। खासकर तब, जब कोई महिला बिना विवाह के मां बनने का निर्णय लेती है। ऐसे में यह सवाल खड़ा होता है: क्या यह उसका आत्मनिर्भर और साहसी कदम है, या समाज इसे अब भी एक 'गलती' की तरह देखता है?

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Single Motherhood: बिना पति के माँ बनना – साहस या समाज की नज़र में ‘कमी’?

माँ बनना एक निजी फैसला है

मातृत्व हर महिला के लिए एक खास अनुभव होता है, लेकिन यह फैसला कब और कैसे लिया जाए, ये उसकी सोच और हालात पर निर्भर करता है। कुछ महिलाएं शादी के बाद माँ बनती हैं, तो कुछ बिना जीवनसाथी के भी यह फैसला लेती हैं। इसके पीछे कई वजह हो सकती हैं, जैसे आज़ादी, तलाक, साथी की गैरमौजूदगी या सिर्फ माँ बनने की चाहत। अब तो IVF, सरोगेसी और स्पर्म डोनेशन जैसे विकल्प भी मौजूद हैं। ऐसे में अगर कोई महिला इन तरीकों से माँ बने, तो क्या समाज को उस पर सवाल उठाने का हक है?

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सामाजिक नजरिया

भारत में जहां पारिवारिक ढांचे को बहुत महत्व दिया जाता है, वहां बिना पति के माँ बनना आज भी एक बड़ा मुद्दा माना जाता है। लोग मानते हैं कि बच्चे को माँ-बाप दोनों चाहिए। ऐसे में जब कोई महिला अकेले बच्चे की परवरिश करती है, तो लोग उसकी क्षमता से ज्यादा उसके हालात पर सवाल उठाते हैं। कई बार उसे 'अधूरी' माँ माना जाता है, जबकि सच ये है कि एक अकेली माँ भी अपने बच्चे को पूरा प्यार, देखभाल और अच्छी परवरिश दे सकती है।

अकेले माँ बनने का हौसला

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जो महिलाएं बिना जीवनसाथी के माँ बनने का फैसला लेती हैं, वे बड़ा साहस और आत्मविश्वास दिखाती हैं। यह रास्ता आसान नहीं होता मानसिक, सामाजिक और आर्थिक तौर पर कई चुनौतियाँ होती हैं। लेकिन जब वे अपने फैसले पर कायम रहती हैं और बच्चे की अच्छी परवरिश करती हैं, तो यह उनकी ताकत और आत्मनिर्भरता को दिखाता है। खासकर शहरों में ऐसी महिलाओं की संख्या बढ़ रही है, जो यह साबित कर रही हैं कि माँ बनना किसी रिश्ते पर निर्भर नहीं, बल्कि एक निजी अनुभव है।

 समाज की सोच बदलने की जरूरत

समाज को यह समझना होगा कि हर महिला की ज़िंदगी की परिस्थितियाँ और प्राथमिकताएँ अलग होती हैं। एकल मातृत्व को अधूरी नहीं, बल्कि साहसी और जिम्मेदार निर्णय के रूप में देखा जाना चाहिए। ऐसे परिवारों को भी उतना ही सम्मान मिलना चाहिए, जहाँ माँ अकेले पूरे परिवार की भूमिका निभाती है।

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