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Photograph: (freepik)
कामकाजी महिलाओं को वर्कप्लेस पर माँ होने के नाते कई सुविधा नहीं मिलती, जो न ही उन्हें सिर्फ सामाजिक संरचना से अलग करता हैं, बल्कि उनकी काम की स्वतंत्रता और करिअर चुनने की आजादी पर भी प्रश्न लगाती हैं। भारत में लगभग आधी महिलाएं कार्यक्षेत्र में मातृत्व की सुख-सुविधा से वंचित हैं। यह महिलाओं के प्रति समाज की न ध्यान देने वाली प्रकति को दर्शाता हैं, जहां कंपनी महिला एम्प्लोयी को हाइर तो करना चाहती हैं, पर उसे उसके जीवन को जीने और उसे वर्कप्लेस से जोड़ने का प्रयास नहीं कर सकती हैं। आज भी महिलाओ को ऑफिस या पब्लिक प्लेस पर ब्रेस्टफीडिंग करते समय कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिसमें सबसे बड़ी समस्या हैं, ऑफिस में नर्सिंग एरिया का न होना।
ऑफिस में माँ होना आसान नहीं": आधी महिलाएं breastfeeding सुविधा से वंचित
माँ वर्कप्लेस पर किन समस्याओं का करती हैं सामना?
माँ होने के नाते महिला भावनात्मक रूप से पहले से स्ट्रगल कर रही होती हैं, लेकिन वह अपनी कार्य करने की जिम्मेदारी में बीच में नहीं आने देना चाहती हैं। जब महिला वर्कप्लेस पर जाते समय अपने बच्चे को भी साथ लाती हैं, तो ऐसे में यह आवश्यक हो जाता हैं कि उसे महिला होने के नाते वो सुबिधा मिले जो उसे आत्मनिर्भर और कार्य में बाधा न बने।जब महिला पब्लिक प्लेस या वर्कप्लेस पर अपने बच्चे को ब्रेस्टफीडिंग कराना चाहती हैं, तो वह नर्सिंग रूम और एरिया जहां वो अपने बच्चे का ध्यान रख सकें अक्सर उपलब्ध नहीं होती ऐसे में उन्हें अपने बच्चे के लिए अलग मिल्क substitute जैसे आर्टफिशल मिल्क या फार्मूला पर निर्भर होना पड़ता हैं।
यह बच्चे का पेट तो भर देता हैं, पर जो पोषण और आवश्यकता माँ के दूध से पूरी होती हैं वह नहीं हो पाती हैं। अक्सर जो महिलाएं माँ के तुरंत बाद अपना ऑफिस जोइन कर लेती हैं, उन्हें अपने बच्चे के ध्यान में कुछ ऐसे बदलाव करने पड़ते हैं, जो उनके मातृत्व के सुख को कम कर देते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संघठन के अनुसार बच्चे को माँ के दूध की आवश्यकता जन्म से 6 महीने तक होती हैं, लेकिन अगर बच्चा कमजोर या और अच्छी नींव के लिए ये समय 2 साल तक भी बढ़ सकता हैं। ऐसे में ऑफिस या वर्कप्लेस माँ को 12 से 26 सप्ताह की maternity leave तो देने का provision रखते हैं, पर इसके बाद क्या ? क्या यह छुट्टियाँ बच्चे के सम्पूर्ण विकास और आहार के लिए पर्याप्त हैं? क्या वर्कप्लेस पर महिलाओं को एक स्पेस जहां वे नर्सिंग कर सकें, नहीं होना चाहिए?
क्यों हैं आज भी Breastfeeding in public एक टैबू ?
आज भी समाज में माँ को लेकर जितना सम्मान दिया जाता हैं और भावनाएं जोड़ी जाती हैं, उतनी सुबिधा नहीं। समाज माँ को उच्चतम सम्मान देता हैं, फिर फिर माँ होने के नाते उसके जो कर्तव्य हैं उसमे सुबिधा देने से क्यों चूक जाता हैं। जब एक महिला अपने बच्चे को ब्रेस्टफीडिंग कराना चाहती हैं, तो वह अपने बच्चे को पब्लिक प्लेस पर होते हुए फार्मूला पर यह कई बार other substitute पर निर्भर रखती हैं, क्योंकि समाज में इसे आज भी बुरे नजरिए और अश्लील कृत्य का दर्ज दे दिया जाता हैं।
जब एक महिला घर से बाहर निकलती हैं तो वह अपने बच्चे को पहले से ब्रेस्टफीडिंग कराकर ले जाती हैं, कि "कहीं बच्चा परेशान न हो" लेकिन कहीं बार बच्चा लंबे सफर या बाहर होने के दौरान भूख से रोने लगता हैं, तो माँ बच्चे को फीडिंग कराने से पहले बहुत सोचती हैं और समाज की दोहरी सोच के कारण कहीं बार बच्चे को रोता ही सफर करती हैं। और यह प्रक्रिया उन्हें मातृत्व की इस यात्रा में गिल्ट से जोड़ देती हैं।
माँ का सफर आसान नहीं
माँ का सफर आसान नहीं और समाज भी इसी प्रक्रिया और इसी प्रेम के कारण जिंदा हैं, पर क्यों समाज इस मातृत्व की सुविधा को नकार देता हैं, बस इसलिए क्योंकि उनकी सोच का स्तर आज भी कहीं गिर हुआ हैं। क्या किसी महिला के जीवन की स्वतंत्रता समाज की पिछड़ी सोच पर निर्भर करेंगी, जो एक वर्ग को भरपूर स्वतंत्रता और एक को संकुचित आजादी देता हो? समाज महिला को स्वतंत्रता के नाम पर सिर्फ आर्थिक स्वतंत्रता तो दे रहा हैं, पर उन सुख-सुविधाओं का क्या जो उसे जीवन के महत्वपूर्ण पड़ाव पर मिलनी चाहिए ?
समाज कब तक अपनी इस पीड़ित सोच को लेकर चलेगा? माँ का सफर कहीं बदलाव लाता हैं, और एक नारी उससे स्वयं को निखारती हैं, इस निखार की प्रक्रिया में जब उससे जुड़े समूह उसकी सहायता करते हैं तो वह और अधिक मजबूत और स्वतंत्रत महसूस करती हैं। मातृत्व का सुख सिर्फ माँ तक नहीं समाज के हर इंसान से जुड़ा हैं जो समाज का अंग हैं, ऐसे में माँ को उसका हक देना समाज की सबसे बड़ी जिम्मेदारी बन जाता हैं।