Breastfeeding in Public: पब्लिक में ब्रेस्टफीडिंग से शर्म क्यों? जानें समाज के नजरिए और सच्चाई

मां बनना हर महिला के जीवन का सबसे खूबसूरत अनुभव होता है। इस सफर का एक अहम हिस्सा है ब्रेस्टफीडिंग, यानी बच्चे को मां का दूध पिलाना। समाज में इसे लेकर कई तरह की झिझक और शर्म देखी जाती है।

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Tamnna Vats
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Why the shame around breastfeeding in public? Understand society’s perspective and the truth: मां बनना हर महिला के जीवन का सबसे खूबसूरत अनुभव होता है। इस सफर का एक अहम हिस्सा है ब्रेस्टफीडिंग, यानी बच्चे को मां का दूध पिलाना। यह न सिर्फ बच्चे के लिए सबसे पोषक आहार होता है, बल्कि मां और बच्चे के बीच एक गहरा रिश्ता भी बनाता है। लेकिन जब बात पब्लिक प्लेस में ब्रेस्टफीडिंग की आती है, तो आज भी हमारे समाज में इसे लेकर कई तरह की झिझक और शर्म देखी जाती है।

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Breastfeeding in Public: पब्लिक में ब्रेस्टफीडिंग से शर्म क्यों? जानें समाज के नजरिए और सच्चाई

पब्लिक में ब्रेस्टफीडिंग

बच्चे को समय पर दूध पिलाना उसकी सेहत और विकास के लिए जरूरी होता है। लेकिन जब मां बाहर होती है, किसी पार्क, मॉल या ट्रैवल में, तो उस समय बच्चे को दूध पिलाना एक ज़रूरी काम बन जाता है। यह कोई शर्म की बात नहीं बल्कि एक नेचुरल और हेल्दी प्रक्रिया है।

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समाज की सोच

हमारे समाज में पब्लिक में ब्रेस्टफीडिंग को लेकर आज भी दकियानूसी सोच देखने को मिलती है। कुछ लोग इसे अश्लील मानते हैं, तो कुछ इसे "संस्कृति के खिलाफ" कहते हैं। महिलाओं को अक्सर घूरा जाता है या असहज महसूस कराया जाता है, जिससे कई बार वे बच्चे को दूध पिलाने से हिचकिचाती हैं। यह सोच न सिर्फ मां को मानसिक दबाव में डालती है, बल्कि बच्चे की सेहत पर भी असर डाल सकती है।

कानून और अधिकार

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भारत में महिलाओं को पब्लिक में ब्रेस्टफीडिंग का पूरा अधिकार है। यह उनका कानूनी हक है और किसी को भी इसमें बाधा डालने का अधिकार नहीं है। कई देशों में तो इसके लिए खास “ब्रेस्टफीडिंग जोन” बनाए गए हैं, जहां महिलाएं आराम से अपने बच्चे को दूध पिला सकती हैं। भारत में भी अब कुछ बड़े मॉल, एयरपोर्ट और रेलवे स्टेशनों पर इस तरह की सुविधाएं देखी जा रही हैं, लेकिन अब भी यह बहुत सीमित है।

समझने की ज़रूरत

समाज में बदलाव लाने के लिए सबसे ज़रूरी है जागरूकता। हमें यह समझना होगा कि ब्रेस्टफीडिंग एक मां की ज़िम्मेदारी और बच्चे की ज़रूरत है। इसे शर्म से नहीं, सम्मान से देखा जाना चाहिए। मीडिया, फिल्मों और सोशल मीडिया को भी इस विषय को सामान्य रूप से दिखाना चाहिए ताकि लोगों की सोच बदले।

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