Ab Soch Badlo Yaar: औरतों के लिए घर के कामों की लिस्ट कभी ख़त्म नहीं होती। बर्तन साफ करना, डस्टिंग, पंखे साफ करना, कपडे धोना, धुले हुए कपड़ों को सुखना, सूखे कपड़ों को फोल्ड करना और फोल्ड किए कपड़ों को अलमारी में सजा कर रखने जैसे काम तो कभी खत्म नहीं होते। हर औरत की लाइफ में एक दिन ऐसा ज़रूर आता है, जब वो यह सोचती है कि जो मैं इतना काम रोज़ करती हूँ, उसकी किसी को कदर भी है।
घर का काम-काज सिर्फ महिलाओं की जिम्मेदारी नहीं है।
(Household Chores Are Not Sole Responsibility Of Women)
अक्सर औरतों को यह कहा जाता है कि अपने घर के लिए काम करने के लिए तुम्हें अप्रेसिअशन या पैसे क्यों चाहिए, लेकिन अगर घर में सब लोग रहते हैं तो घर को साफ रखने, सजाने-सवारने और उसे फंक्शनल रखने की ज़िम्मेदारी सिर्फ औरतों की क्यों है?
घर के काम-काज को लोग अक्सर जितना आसान समझते हैं, वो उतने होते नहीं है। यह एक ऐसी अंधी खाई है, जिसमें अगर आप एक बार कूद गए तो न-जाने कब बहार निकल पाएंगे। अभी आपने झाड़ू मार कर रखी नहीं, बालों का गुच्छा न-जाने कहाँ से उड़ के फर्श पे आ जाता है। बड़ी मेहनत से सारे बर्तन धो के आपने अभी रखे ही थे कि एक गंदा चम्मच सिंक में आ जाता है। डस्टिंग किए आपको अभी घंटा भी नहीं हुआ कि मिटटी की मोती परत डाइनिंग टेबल पर फिर से जम जाती है।
कोरोना वायरस लॉक डाउन ने हमें समझाया है कि घर को चलाना कितना मुश्किल होता है, ख़ास कर जब हमारे पास मदद नहीं होती। आज भी हमारे देश में घर के काम-काज की ज़िम्मेदारी औरतों पर ही पड़ती है। उनसे यह भी उम्मीद की जाती है कि वो ये सारे काम बिना किसी मदद और बिना किसी पेमेंट के फ्री में कर दें। लेकिन क्यों?
एक डाटा के अनुसार भारतीय महिलाएं 352 मिनट् रोज़ खर्च करती हैं आपने घर के काम को निपटाने के लिए। भारतीय मर्दों के लिए यह आंकड़ा 52 मिनट का है। लगभग 7 गुना का अंतर है यहाँ, जिसे खत्म करने की ज़रूरत है। हम सब को पता है कि घर का काम करना कितना थैंकलेस जॉब है। इसी लिए लोग इससे कतराते हैं और घर के कामों को करने से बचते भी हैं।
हमारे देश में यह सोच सिर्फ आदमियों में नहीं बल्कि औरतों में भी आम है। औरतों के हिसाब से अगर घर में औरतों के होते हुए भाई, पति या पिता को उठ कर आपने लिए पानी का गिलास भी लेना पड़ रहा है तो यह बड़े ही शर्म की बात है। हम अक्सर घरों में देखते हैं कि लड़कियों को छोटी उम्र से ही घर के छोटे-मोटे काम करने के लिए एनकॉरेज किया जाता है। कपड़े फोल्ड करने के लिए या किसी को पानी देने के लिए भी लड़कियों को ही बोला जाता है।
कितने घरों में लड़कों को काम करने के लिए एनकॉरेज किया जाता है?
कितने घरों में लड़कों को यह सिखाया जाता है कि तुम अब बड़े हो रहे हो, तुम्हें खाना बनाना आना चाहिए, तुम्हें अपने कपड़े धो कर, प्रेस कर या फोल्ड कर अपनी अलमारी में जमा कर रखना आना चाहिए। जब हम इस सवाल के जवाब को समझ लेंगे, तब हम यह भी समझ लेंगे कि यह जो 7 गुना का अंतर है, उसे कैसे खत्म करना है।
हमारी सोसाइटी में लेबर की कीमत तब तक नहीं है, जब तक उस पर कोई प्राइस टैग न हो। ऐसा काम कोई नहीं करना चाहता, जिसके लिए न उन्हें शाबाशी मिले और न ही पैसे। फिर भी हम औरतों से यह एक्सपेक्ट करते हैं कि अपने दिन का 6 घंटा वो घर के काम पर खर्च करें, जिसकी न किसी को कदर है और न उस काम को कोई और करना चाहता है। इस काम पर हम प्राइस टैग लगा दें तो शायद लोग समझ पाएं कि अपने घर को ठीक रखने के लिए औरतें कितनी मेहनत करती हैं।
घर का काम-काज सिर्फ औरतों की ज़िम्मेदारी है, इस सोच को अब बदलने की ज़रूरत है। झाड़ू उठाइए और लगाईए, बर्तन धोने में मदद करवाईए, वाशिंग मशीन से कपड़े निकालिए और छत पर सुखा कर आइए। अगर औरतों ने सच में यह सोच लिया कि घर का काम करने के पैसे मिलने चाहिए तो सब को बहुत महंगा पड़ने वाला है।