Women's Matters: आज आपसे हम एक सवाल पूछते हैं कि महिला होना कितना आसान है? बहुत सारे लोग यह सोचेंगे कि यह कैसा सवाल है। इसमें क्या पूछने वाली बात है। सचाई यह है, हर महिला को यह सवाल अपने आप से पूछने की जरुरत है। महिलाएं भी नहीं जानती कि वे एक दिन में कितनी शारीरिक और मानसिक रूप से परेशानियों से गुजरती हैं। इसके कई कारण हैं ।उन्हें सोचने ही नहीं दिया जाता और कामों में उलझा कर रखा जाता है। जिस कारण उन्हें अपने लिए टाइम ही नहीं मिलता। इसके साथ उनके ऊपर इतनी चीजों का बोझ होता है जो उनकी खुद की पहचान को कहीं छुपा देता है। उन चीजों का भार इतना बढ़ जाता है कि अगर वे अपने लिए सोचने लगते हैं तो लगता है कि हम सेल्फिश है। हमारा काम तो दूसरों के बारे में सोचना है। चलिए आज बात करते हैं कि महिला होना कितना आसान है-
Women's Matters: महिला होना कितना आसान?
महिला होना उतना आसान नहीं है,जितना हम सोचते हैं। एक महिला जब बचपन से ही पैदा हो जाती है। कई बार तो उसके पैदा होने से पहले ही उसे मारने की साजिश बनने लगती है। अगर पता लग जाएं कि महिला के पेट में लड़की है तो महिला का अबॉर्शन करवा दिया जाता है। महिला अगर पैदा हो जाए, तब से ही वह समाज और लोगों के ताने सुनने शुरू कर देती है। उसे पता भी नहीं होता कि उसका कसूर क्या है? लड़की पैदा हो जाने पर, मां को बातें सुननी पड़ती है। जब प्यूबर्टी की उम्र आती है शारीरिक और मानसिक तौर पर इतने बदलाव होते हैं, जिसके बारे में महिला को बताया नहीं जाता। इस उम्र में पीरियड्स आने भी शुरू हो जाते हैं और ब्रेस्ट बढ़ने लगती है जिस कारण उन्हें ब्रा पहनने को कहा जाता है।
नजरिया बदलने लग जाता है
इसके साथ ही लोगों का आपकी तरफ नजरिया बदलने लग जाता है। मर्द लड़कियों को ऐसी निगाह से देखने लगते हैं जो उन्हें कई बार बहुत ज्यादा असहज महसूस करवा देता है। ब्रा पहननी पड़ती है जो इतनी ज्यादा असहज होती है, कई बार पहनने का मन नहीं करता। समाज की आपसे अपेक्षाएं बढ़ जाती है कि कम कपड़े मत पहनो। उनके लिए रूल्स बना दिए जाते हैं। अकेली रात को बाहर मत जाओ, लड़कों के साथ मत घूमो, रात को पार्टी मत करो और जॉब करने मत जाओ। इसके उल्ट ये कहा जाता है घर संभालो और शादी करके बच्चे पैदा करो।
अपने आप को कहीं खो देती है
इसके बाद एक फेस शादी के बाद का महिलाओं आता है जब महिलाएं प्रेग्नेंट होती है, उस समय हार्मोनल असंतुलन से गुजरना पड़ता है। एक महिला जब बच्चे को जन्म देती है, उस समय वह जिन परिस्थितियों से गुजरती है उसका कोई अंदाजा भी नहीं लगा सकता। 40 के बाद, मेनोपोज़ के दौरान भी इतने सारे लक्षण आ जाते हैं इसके बारे में कोई बात ही नहीं करना चाहता। इन सब में महिला अपने आप को कहीं खो देती है। जब उसे कोई कहता है कि तुम अपने बारे में सोचो तो उसे लगता है कि मैं कैसे अपने बारे में सोच सकती हूं। मेरा जन्म तो दूसरों के लिए हुआ है। अगर मैं अपने बारे सोचूंगी तो शायद सेल्फिश हो जाऊंगी। महिलाओं को लगता है उनके लिए दूसरों की अपेक्षाओं पर खरा उतरना जरुरी है। अंत, यह ही एक महिला होना बिलकुल भी आसान नहीं है।