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क्या महिलाओं के लिए शादी के बाद सुहाग की निशानी पहनना जरूरी है

भारतीय समाज में महिलाओं की शादी के बाद उनके लिए कुछ बातें मान्य कर दी जाती हैं जिनका पालन करना उनके लिए जरूरी कर दिया जाता है। जिनमें से एक है सुहाग के प्रतीक। मान्यता होने के बावजूद किसी पर प्रेसर बनाना कोई अच्छी बात नहीं हैं।

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Priya Singh
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Symbol Of Suhaag After Marriage(Unsplahs.com)

Is It Necessary For Women To Wear The Symbol Of Suhaag After Marriage (Image Credit - Unsplahs.com)

Is It Necessary For Women To Wear The Symbol Of Suhaag After Marriage: भारतीय समाज में महिलाओं की शादी के बाद उनके लिए कुछ बातें मान्य कर दी जाती हैं जिनका पालन करना उनके लिए जरूरी कर दिया जाता है। जिनमें से एक है सुहाग के प्रतीक। ये अलग-अलग संस्कृतियों में अलग होते हैं लेकिन उन्हें पहनकर रखना या उन्हें डेली अपने साथ रखने को इतनी मान्यता दी जाती है कि लोग महिलाओं को उनके बिना रहने पर पाबन्दी भी लगाने लगते हैं। ऐसे में अगर बात की जाए कि ये पहनना कितना जरूरी है तो यह अलग-अलग हर व्यक्ति की चॉइस हो सकती है। मान्यता होने के बावजूद किसी पर प्रेसर बनाना कोई अच्छी बात नहीं हैं।

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क्या महिलाओं के लिए शादी के बाद सुहाग की निशानी पहनना जरूरी है

क्या है सुहाग की निशानी 

सुहाग के प्रतीकों में अलग-अलग संस्कृतियों के हिसाब से अलग होते हैं जैसे हिन्दू संस्कृति में आम तौर पर सिन्दूर, मंगलसूत्र, चूड़ियाँ और बिच्छुआ जैसी चीजों को शामिल किया जाता है, कुछ समुदायों में यह एक विवाह के अंगूठी के रूप में होता है। ये विभिन्न संस्कृतियों और समुदायों में भिन्न होती हैं। कई पारंपरिक समाजों में, इन प्रतीकों को एक महिला की विवाहित स्थिति का महत्वपूर्ण मार्कर माना जाता है। जिन महिलाओं के शरीर पर ये चीजें दिखाई देती हैं उनकी पहचान एक विवाहित महिला के रूप में की जाती है। 

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कितना जरूरी है सुहाग की निशानियों को धारण करना

शादी होने के बाद यह कोई जरूरी नहीं है कि महिलाएं सारी निशानियाँ पहनकर ही रहें। शादी के बाद किसी महिला के लिए इन प्रतीकों को पहनना जरूरी है या नहीं, यह उनकी व्यक्तिगत पसंद, सांस्कृतिक मान्यताओं और व्यक्तिगत मूल्यों का मामला है। जो महिलाएं जैसे रहना चाहती हैं वो उस प्रकार से रह सकती हैं। कई आधुनिक समाजों में, महिलाओं को यह चुनने की स्वतंत्रता है कि वे इन प्रतीकों को पहनें या नहीं। कुछ महिलाएं इन्हें अपनी वैवाहिक स्थिति और सांस्कृतिक पहचान के प्रतीक के रूप में पहनती हैं। जबकि कुछ व्यक्तिगत पसंद से इसे नहीं पहनना भी चुनती हैं।

क्या हैं सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व

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विभिन्न संस्कृतियों में सुहाग के प्रतीकों से जुड़े अलग-अलग रीति-रिवाज हैं। जैसे कुछ भारतीय हिन्दू संस्कृति में एक महिला के बालों के बीच में लगे सिन्दूर को विवाह का प्रतीक माना जाता है और अक्सर इसे विवाह के बाद पहना जाता है। कुछ धार्मिक परंपराओं में वैवाहिक प्रतीकों के बारे में अलग दिशानिर्देश हैं। उदाहरण के लिए, हिंदू धर्म में, मंगलसूत्र विवाहित महिलाओं द्वारा पहना जाता है और माना जाता है कि इसमें सुरक्षात्मक और अच्छे गुण होते हैं।

सिर्फ महिलाओं के लिए क्यों हैं ये निशानियाँ 

जहाँ तक बात जब पुरुषों की आती है तो उनके लिए किसी भी समाज में विवाहित होने की किसी भी निशानी को नहीं रखा गया है जिससे उनकी पहचान की जाए। लेकिन महिलाओं के लिए अलग-अलग मानदंड तय किये गये हैं और पुरानी सोच के रुढ़िवादी लोग महिलाओं को ऐसा करने के लिए बाध्य भी करते हैं। ऐसी दोहरी मानसिकता सिर्फ महिलाओं को लेकर ही क्यों है। जब पुरुषों को बिना किसी निशानी के स्वीकार किया जाता है तो लोग ऐसी महिलाओं के लिए अलग विचार क्यों रखते हैं जो सुहाग की निशानियों को नहीं पहनती हैं। यह किसी भी व्यक्ति का व्यक्तिगत निर्णय हो सकता है।  

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सुहाग की निशानियों को पहनना या ना पहनना एक महिला का पर्सनल निर्णय होना चाहिए कि वह क्या करना चाहती है ना कि समाज या लोगों की जबरदस्ती के कारण महिलाएं इसे अपनाने पर बाध्य हों। ये निर्णय स्वयं महिलाओं को लेना चाहिए कि वह क्या करना चाहती हैं और क्या नहीं और पुराने मानदंड और रूढ़ियाँ समय के साथ बदलते हैं परम्पराओं में भी बदलाव आते हैं। जिन्हें सभी को अपनाना भी चाहिए।

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