Not About Clothes: कैसे पितृसत्तात्मक सोच महिलाओं की एजेंसी को सीमित करती है

युगों से पितृसत्तात्मक सोच महिलाओं की स्वतंत्रता और निर्णय क्षमता को सीमित करती रही है इस लेख में जानें कैसे समाज और सोच उनके अधिकारों को प्रभावित करती है।

author-image
Kopal Porwal
New Update
Feminism

Photograph: (iStock)

युगों से महिलाएं समाज में पितृसत्तात्मक सोच का शिकार रही हैं। उनके पहनावे, बोलने के तरीके, चलने-फिरने की आदतें, पढ़ाई, मतदाता बनने का अधिकार, खानपान और शारीरिक बनावट, ना जाने कितने मानकों के आधार पर उन्हें “अच्छी” महिला के रूप में परिभाषित किया जाता है। इस मानसिकता ने न केवल महिलाओं की स्वतंत्रता और पहचान पर असर डाला है, बल्कि उनके निर्णय लेने की क्षमता यानी एजेंसी को भी सीमित किया है।

Advertisment

Not About Clothes: कैसे पितृसत्तात्मक सोच महिलाओं की एजेंसी को सीमित करती है

महिलाओं को निर्णय न लेने देना

पितृसत्तात्मक सोच महिलाओं को घर या कार्यस्थल पर अपने हिसाब से निर्णय लेने की आज़ादी नहीं देती। उनके पहनावे, बाहर घूमने की स्वतंत्रता, करियर से जुड़े फैसले और व्यक्तिगत पसंद उनके पति, सास, माता-पिता या पुरुष परिवारजनों द्वारा तय किए जाते हैं। इसके विपरीत पुरुषों को ऐसे किसी भी बंधन का सामना नहीं करना पड़ता। यही असमानता महिलाओं के जीवन में बुनियादी स्वतंत्रता को बाधित करती है और सामाजिक भेदभाव को बढ़ावा देती है।

पहनावे पर तंज और नियंत्रण

वहीं, जिस समाज में ‘आइटम सॉन्ग’ और पश्चिमी पहनावे प्रचलित हैं, वहां की महिलाएं अपने पसंद के कपड़े भी नहीं पहन सकतीं। उनका पहनावा लगातार सामाजिक नजरों और आलोचना का विषय रहता है। महिलाओं पर स्टॉकिंग, ईव-टीजिंग और यौन हिंसा जैसी घटनाओं का दोष अक्सर उनके कपड़ों पर थोप दिया जाता है, जबकि अपराध करने वाले पुरुषों पर सवाल नहीं उठाए जाते और कड़ी सजा का प्रावधान भी नहीं होता। यह स्वयं में एक विकृत और असमान मानसिकता को दर्शाता है।

Advertisment

महिलाओं को अपने से ऊपर पद पर देखने की असहमता

मैरी क्यूरी, इंदिरा गांधी, कंगना रनौत, जयललिता जैसी महिलाएँ समाज के लिए प्रेरणा रही हैं। उन्होंने पुरुष प्रधान कार्यस्थल और समाज में अपनी योग्यता साबित की और पुरुषों की विकृत मानसिकता को चुनौती दी। बावजूद इसके, समाज आज भी सशक्त महिलाओं को पूरी तरह स्वीकार नहीं करता। ऐसे महिलाओं को अक्सर ‘बड़बोला’, ‘अनुभवहीन’ या ‘अत्यधिक महत्वाकांक्षी’ जैसे अपमानजनक दृष्टिकोण से देखा जाता है। यह सोच केवल उनके करियर या पद तक सीमित नहीं है, बल्कि उनकी निर्णय क्षमता, आत्मविश्वास और नेतृत्व क्षमता को भी कमतर आंकती है।

सिंगल महिलाओं पर दोषपूर्ण नजर

अविवाहित महिलाएँ, तलाकशुदा महिलाएँ या सिंगल मदर, यह सभी समाज की पूर्वाग्रही और दोषपूर्ण सोच के सबसे आम लक्ष्य रही हैं। अफवाहें फैलाना, उनका निजी जीवन पर सवाल उठाना, उन्हें समाज में नकारात्मक रूप में पेश करना, यह व्यवहार अक्सर देखा जाता है। सबसे दुखद पहलू यह है कि कई बार इन महिलाओं के अपने रिश्तेदार और पड़ोसी ही उनके जीवन को कठिन बनाने में लगे रहते हैं। उनकी स्वतंत्रता, व्यक्तिगत निर्णय और जीवन शैली पर लगातार निगरानी रखना, उन्हें मानसिक और सामाजिक दबाव में डाल देता है।

समाज में बदलाव की आवश्यकता

सशक्त महिलाओं को सम्मान और अवसर देना केवल उनका अधिकार नहीं है, बल्कि समाज की प्रगति के लिए भी आवश्यक है। महिलाओं के नेतृत्व, निर्णय क्षमता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को स्वीकार करना जरूरी है। समाज में जागरूकता बढ़ाने, नकारात्मक मानसिकता को चुनौती देने और महिलाओं के समर्थन में कदम उठाने की आवश्यकता है।

Advertisment
पितृसत्तात्मक