Slut Shaming और Double Standards: क्यों हमेशा औरतों को ही निशाना बनाया जाता है?

कपड़े, करियर या रिश्तों में महिलाओं को झेलना पड़ता है जजमेंट और ट्रोलिंग, जबकि पुरुषों को वही आज़ादी मिलती है। जानिए क्यों मौजूद हैं Slut Shaming और Double Standards

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Deepika Aartthiya
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Photograph: (Pinterest & Freepik)

हम सबने अक्सर महिलाओं को उनके कपड़ों को लेकर ताने सुनते देखा है। ये कहना गलत नहीं होगा कि जब से महिलाओं ने अपने जीवन की बागडोर संभाली है, तब से पुरुष समाज का एक बड़ा हिस्सा लगातार महिलाओं की हर तरह की choices पर सवाल उठाता रहा है।चाहे बात महिलाओं द्वारा अपना करियर चुनने की हो, अपनी पसंद के कपड़े पहनने की हो या रिश्तों में फैसले लेने की हो, हर कदम पर उसे गलत या शर्मनाक करार दिया जाता है। लेकिन यही सब अगर एक पुरुष करता है तो उसे सराहनीय माना जाता है। आखिर हमारे समाज में ये दोहरापन क्यों है? क्या इसे बदला जा सकता है? आइए जानते है 

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Slut Shaming और Double Standards: क्यों हमेशा औरतों को ही निशाना बनाया जाता है?

1. कपड़ों और लाइफस्टाइल पर डबल स्टैंडर्ड

हमारे देश में चाहे परिवार का सदस्य हो या अनजान इंसान, हर कोई महिलाओं से ये उम्मीद करता है कि वे वेस्टर्न कपड़ों में न दिखाई दें। महिलाओं के पहनावे से उन्हें जज किया जाना तो जैसे एक आम सी बात है। Slut Shaming इसी का नाम है। और अब ये केवल सामने ही नहीं बल्कि कई social media प्लेटफॉर्म्स पर भी नॉर्मल बात बन चुकी है।

कई बार ऑनलाइन भी महिलाओं को शॉर्ट ड्रेसेस, स्ट्रेप टॉप या स्टाइलिश आउटफिट्स के लिए ट्रोल किया जाता है। दूसरी ओर अगर कोई पुरुष वेस्टर्न कपड़ों में दिख जाए तो कभी किसी को कोई परेशानी नहीं होती। जहां महिलाओं को उनके लाइफस्टाइल और उनके सोशल एक्टिविटीज़ पर सवाल उठाए जाते हैं, वहीं पुरुष हर तरह से स्वतंत्र घूम सकते हैं।

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2. रिश्तों और सेक्स को लेकर भेदभाव

समाज में आज भी अगर कोई महिला अपने रिलेशनशिप या सेक्सुअल लाइफ के बारे में खुलकर बात करती है तो उसके चरित्र पर सवाल उठाए जाते हैं। उसकी अपनी ज़िंदगी के फैसलों पर भी उससे सवाल किए जाते हैं। लेकिन पुरुषों के ऐसा करने पर उन्हें एक खुले विचारों वाला और प्रगतिशील इंसान के तौर पर देखा जाता है। इसी डबल स्टैंडर्ड के चलते अक्सर महिलाएं अपने सपनों और खुशियों को दबा देती हैं और डर के साथ अपनी ज़िंदगी जीने को मजबूर हो जाती हैं।

3. सोशल मीडिया और मीडिया का असर

दुर्भाग्यवश, मीडिया और social media ने इस सोच को बदलने की बजाए इसे और भी मज़बूती देने का काम किया है। आज महिलाओं को उनकी choices को लेकर ट्रोल करना और हर छोटी से छोटी बात को भी आग की तरह फैलाना आम हो गया है। यहां तक कि आज के म्यूज़िक वीडियोज़, फिल्में, इंस्टा ट्रेंड्स के ज़रिए भी अक्सर महिलाओं को ऑब्जेक्टिफाई करते दिखाया जाता है। इससे उनके फैसले लेने पर समाज का दबाव और बढ़ जाता है।

4. समाज में बदलाव की ज़रूरत

आज की स्थिति देखते हुए कहा जा सकता है कि समाज में अब भी बदलाव की ज़रूरत है। महिलाओं को उनके फैसले लेने, पसंद-नापसंद का सम्मान करने, और अपने हिसाब से ज़िंदगी जीने का पूरा अधिकार है। जब समाज और महिलाएं पुरुषों पर किसी तरह का दबाव या सवाल नहीं उठाते तो महिलाओं पर क्यों? हर महिला को अधिकार है अपनी लाइफ को आज़ादी के साथ जीने का, और महिलाओं को उनके जेंडर, कपड़ों या उनकी choices के आधार पर जज नहीं किया जाना चाहिए।

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