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Photograph: (Freepik & Pinterest)
आज के दौर में महिलाएं घर की जिम्मेदारीयां निभते हुए, हर फील्ड में पुरुषों के बराबर काम कर रही हैं। फिर चाहे ऑफिस की मीटिंग हो या देर रात की डेडलाइन। इसके बावजूद, घर में उनकी नौकरी को “कम जरूरी” समझा जाता है। वही जब घर के पुरुष की जॉब की बात आती है तो अचानक से माहौल बदल जाता है। भले ही दोनों बराबर मेहनत और ऑफिस ऑवर्स में काम कर रहे हैं, लेकिन महिला की नौकरी को गंभीरता से नहीं लिया जाता। उसकी मेहनत को अक्सर “टाइमपास” “सपोर्टिव या एक्स्ट्रा इनकम” कह दिया जाता है। सवाल ये उठता है कि जब दोनों समान रूप से घर और फाइनेंशियल जिम्मेदारियों में योगदान देते हैं, तो औरत का काम कमतर क्यों माना जाता है?
Same Work, Unequal Respect: क्यों घर की महिलाओं की जॉब को सीरियसली नहीं लिया जाता?
महिलाओं के काम प्राथमिकता से नहीं देखा जाता
अगर कभी घर में कोई जरूरी काम आ जाए या बच्चों की देखभाल करनी पड़े, तो छुट्टी लेने या समय देने की उम्मीद सबसे पहले महिला से ही की जाती है। वहीं अगर पुरुष छुट्टी लें, तो उसे जिम्मेदार या flexible माना जाता है। यही असमानता जैसी सोच की जड़ है।
घर और ऑफिस दोनों की डबल शिफ्ट
आज बहुत सी महिलाएं वर्क फ्रॉम होम कर रही हैं। दिन में मीटिंग्स और डेडलाइन्स संभालना, बच्चोंकी देखभाल, किचन और घर के छोटे बड़े काम, इन सबको मैनेज करना उनके लिए आम दिनचर्या बन चुका है। वहीं अगर पुरुष घर से काम करें, तो उनका वातावरण आरामदायक बना दिया जाता है, उन्हें सुविधाएं दी जाती हैं। ऑफिस के बाद पुरुष दोस्तों से मिलते हैं या अपने शौक में समय बिताते हैं, जबकि महिलाएं उसी समय घर की दूसरी पारी संभालने में व्यस्त रहती हैं।
इमोशनल लेबर की अनदेखी
महिलाएं सिर्फ physical काम ही नहीं करतीं, बल्कि घर के हर रिश्ते में emotional balance भी बनाए रखती हैं। बच्चों के मूड, रिश्तेदारों की जरूरतें, त्यौहार और परिवार की प्लानिंग, ये सारा invisible load किसी सैलेरी स्लिप में नहीं दिखता, लेकिन इसका असर सबसे ज्यादा महिलाओं पर पड़ता है।
“मदद” नहीं, बराबर जिम्मेदारी चाहिए
महिलाएं हर दिन सारा समय किचन में बिज़ी रहती है लेकिन उन्हें कभी कोई अप्रिसिएशन नहीं मिलता। लेकिन वहीं अगर किसी दिन पुरुष घर के एक काम में भी हाथ बंटा दें, तो उसे हर किसी से तारीफें मिलती है। उसे मॉडर्न और प्रोग्रेसिव बता दिया जाता है जबकि ये तो बेसिक स्किल्स है। पर सोचने वाली बात ये है कि घर की जिम्मेदारीयों की बात आते ही ये भेदभाव क्यों होने लगता है। क्या घर सिर्फ़ औरत की जिम्मेदारी है या दोनों की? जब दोनों समान रूप से कमाते हैं, तो घर और बच्चों की जिम्मेदारी भी बराबर क्यों नहीं मानी जाती। घर की देखभाल किसी एक की “मेहरबानी” नहीं, बल्कि दोनों की साझी जिम्मेदारी है।
सक्सेस और सम्मान की असमानता
जब पुरुष को प्रोमोशन मिलता है तो पूरा परिवार खुश होता है। पर महिला की सफलता पर अक्सर सवाल उठते हैं, “अब घर कैसे संभालेगी?” यही माइंडसेट दिखाता है कि respect सिर्फ पैसा या मेहनत नहीं, सोच से तय होता है।
समाधान का नजरिया
असल बराबरी तब आएगी जब औरत की मेहनत और कमाई को उतना ही गंभीरता से लिया जाएगा, जितना कि एक मर्द की कमाई को लिया जाता है। दोनों को बराबर सम्मान दिया जाएगा। साथ ही, घर और ऑफिस दोनों में उनकी भूमिका को समझा जाए। इमोशनल लेबर को नजरअंदाज ना करके उनके काम और सफलता को भी इक्वली सेलिब्रेट किया जाए। तभी हम कह सकते हैं कि समाज में सच में “same work, equal respect” पॉसीबल है।
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