महिलाओं के Cleavage दिखने पर इतना बवाल क्यों?

शुरुआत से ही महिलाओं को यह बताया जाता है कि उन्हें कैसे कपड़े पहनने चाहिए। इससे पता चलता है कि उनके पास कपड़े पहनने की भी आजादी नहीं है। इसके लिए भी उन्हें दूसरों की परमिशन या वैलिडेशन की जरूरत पड़ती है।

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Rajveer Kaur
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Cleavage

Image Credit: Freepik

TheFightForCleavageFreedom: शुरुआत से ही महिलाओं को यह बताया जाता है कि उन्हें कैसे कपड़े पहनने चाहिएं। इससे पता चलता है कि उनके पास कपड़े पहनने की भी आजादी नहीं है। इसके लिए भी उन्हें दूसरों की परमिशन या वैलिडेशन की जरूरत पड़ती है। बहुत सारी महिलाओं ने कभी अपनी पसंद के कपड़े पहने ही नहीं। अगर आप अपनी मां और दादी से पूछेंगे तो उन्होंने हमेशा समाज की अपेक्षाओं के अनुसार जीवन को व्यतीत किया है। उन्होंने कभी इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया कि उनका मन क्या है। धीरे-धीरे उन्हें अपनी पसंद भी भूल गई। आज स्पेशल आर्टिकल में हम बात करेंगे कि क्यों महिलाओं के लिए क्लीवेज पर इतना बवाल हो जाता है?

महिलाओं के Cleavage दिखने पर इतना बवाल क्यों?

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महिलाओं की बॉडी को हमेशा ही ऑब्जेक्टिफाई और सेक्शुअलाइज किया जाता है। इस बात को बहुत ही नॉर्मल माना जाता है। इसी कारण ही महिलाओं के क्लीवेज को भी गलत समझा जाता है। इसे अश्लील माना जाता है लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है  यह एक महिला की पर्सनल चॉइस है कि उसे किस तरीके के कपड़े पहनते हैं। आमतौर पर क्लीवेज पहनने वाली महिला के चरित्र पर सवाल उठने लग जाते हैं जो कि बहुत शर्मनाक बात है। डीप क्लीवेज पहनने के बाद बहुत सारे पुरुषों की तरफ से महिलाओं को बहुत ज्यादा अनकंफरटेबल फील करवाया जाता है या फिर उन्हें नीचा दिखाया जाता है। ऐसा समझा जाता है कि जो महिला क्लीवेज पहनती है, उसके साथ कोई भी किसी तरीके का व्यवहार भी कर सकता है  अक्सर ही महिलाओं के साथ होने वाले यौन उत्पीड़न को यह कहकर टाल दिया जाता है कि इस महिला ने छोटे कपड़े पहने थे या फिर इसके कपड़ों ने रेपिस्ट को उकसाया था।

महिलाओं के पास अपनी बॉडी पर ऑटोनॉमी नहीं है जिस कारण उनके फैसले हमेशा ही दूसरों के हाथ में होते हैं। उन्हें हमेशा ही कंट्रोल किया जाता है। आज भी परिवार के लोग यह डिसाइड करते हैं कि एक महिला को क्या पहनना चाहिए लेकिन उसे कोई नहीं पूछता है। पुरुषों के साथ ऐसा नहीं होता है। उन्हें कभी भी अपने कपड़ों की चॉइस के लिए दूसरों से परमिशन नहीं लेनी पड़ती। इसके साथ ही महिलाओं से यह अपेक्षा की जाती है कि वह हमेशा ही ट्रेडिशनल तरीके से रहें। यह कोई गलत बात नहीं लेकिन जब यह चीज महिलाओं के लिए बोझ बन जाती है तो समस्या बन जाती है।

अगर हम चाहते हैं कि महिलाओं को ऐसा माहौल मिले जहां पर महिलाएं अपनी मर्जी के कपड़े पहन सके और उनके फैसलों के लिए उन्हें सपोर्ट मिले तो हमें महिलाओं के हाथ में कंट्रोल देना होगा। उनकी जिंदगी के फैसले लेना बंद करना होगा। महिलाओं को बॉडी पॉजिटिविटी और सेल्फ अवेयरनेस के बारे में बताना होगा ताकि वह खुद को जान पाएँ और अपने आप को वैसे ही स्वीकार कर पाएं जैसे वह हैं। हमेशा महिलाओं के साथ यह समस्या आती है कि उन्हें खुद में कमियां दिखाई देती हैं क्योंकि उन्हें महसूस करवाया जाता है कि उन्हें कैसे दिखना चाहिए या फिर क्या पहनना चाहिए।

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