The Hidden Obstacle to Women's Leadership: लीडरशिप में महिलाओं की भागीदारी बहुत जरूरी है क्योंकि अगर पुरुष और महिलाएं लीडरशिप में बराबर नहीं होंगे तो पुरुषों के मुद्दों पर ज्यादा ध्यान दिया जाएगा और महिलाओं की बात कम होगी। अगर हम आज के हालातों की बात करें तो महिलाओं के मुकाबले पुरुषों की लीडरशिप में भागीदारी ज्यादा है। हमारे समाज में आज भी ऐसा समझा जाता है कि महिलाएं घर की चार दिवारी में रहनी चाहिए। उनका काम परिवार की देखभाल करना है और खाना बनाना है। लीडरशिप जैसे काम महिलाओं के लिए नहीं बने हैं। यह सिर्फ पुरुषों का काम है। ऐसी सोच के कारण आज महिलाएं लीडरशिप में आगे नहीं बढ़ पा रही हैं-
लीडरशिप रोल में महिलाओं की योग्यता पुरुषों के बराबर फिर भी समाज को समस्या क्यों
लीडरशिप में महिलाओं की भागीदारी कम होने के कई कारण है। सबसे पहले तो पितृसत्तात्मक सोच आज भी हमारे समाज का हिस्सा है जहां पर महिलाओं से यह अपेक्षा की जाती है कि उन्हें घर पर रहना चाहिए। इसके साथ ही घर के बच्चों से लेकर बड़े बुजुर्गों तक देखभाल करने की जिम्मेदारी महिलाओं के ऊपर होती है। आज महिलाओं के लिए 'वर्क लाइफ बैलेंस' एक समस्या और चिंता का विषय है। महिला अगर बाहर जाकर काम कर रही हैं तो उसके ऊपर घर की जिम्मेदारियों का बोझ भी उतना ही है।
इसके अलावा अगर हम वर्कप्लेस पर बात करें तो एक ही काम के लिए महिलाओं के मुकाबले में पुरुषों को ज्यादा पे किया जाता है। वर्कप्लेस पर महिलाओं को टोकनिजम का बहुत सामना भी करना पड़ता है। इसके साथ ही आज भी बहुत सारे पेशे पुरुष प्रधान हैं इसलिए महिलाओं को आगे बढ़ने में चैलेंज आते हैं। पुरुषों की इगो भी महिला लीडरशिप में एक बाधा है। बहुत सारे पुरुषों को भी यह अच्छा नहीं लगता है कि महिलाएं उन्हें ऑर्डर दें। वर्कप्लेस पर लिंग भेदभाव भी होता है। एक ही योग्यता होने पर भी ऐसा समझा जाता है कि पुरुष ज्यादा समझदार है।
महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा भी कम नहीं है। हमारे देश में महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा की दर सबसे ज्यादा है। इसके साथ ही राजनीति में भी महिलाओं की भागीदारी पुरुषों के मुकाबले बहुत कम है। पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की पढ़ाई पर इतना खर्च भी नहीं किया जाता। इसके साथ ही महिलाओं को करियर बनाने के लिए इतना प्रोत्साहित भी नहीं किया जाता है।
हमें यह समझना होगा कि महिलाएं सिर्फ लाभार्थी नहीं है बल्कि उनकी भूमिका एक लीडर के रूप में भी है जहां पर वो योजनाएं और एजेंडा तय कर सकती हैं। अफसोस यह है कि महिलाएं आज भी राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक प्रगति में बहुत कम शामिल हैं। अगर हम चाहते हैं कि महिलाओं की भागीदारी की लीडरशिप में बड़े तो इसके लिए सबसे पहले हमें अपनी सोच को बदलना होगा और उनके लिए ऐसा माहौल पैदा करना होगा जहां पर वह सुरक्षित महसूस करें। सिर्फ जेंडर के कारण उनकी काबिलियत को जज न किया जाए। उनके उपर शादी या बच्चे का प्रेशर न डाला जाए। समाज और महिलाएं अगर मिलकर काम करेंगे तो स्थिति में सुधार आ सकता है।